154 गौशालाओं पर तूड़ी का संकट, गोवंश का पेट भरना हुआ मुश्किल

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सच कहूँ/राजू, ओढां। इस बार गेहूं की बिजाई कम होने के चलते तूड़ी को लेकर बड़ी किल्लत देखी जा रही है। तूड़ी कम होने के चलते दामों में इस कदर बढ़ोतरी देखी जा रही है कि जहां पशुपालकों के लिए पशुओं का पेट भरना दुश्वार साबित हो रहा है तो वहीं बड़ी समस्या गौशालाओं के समक्ष देखी जा रही है। जो नई तूड़ी हर वर्ष 100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल होती है वही तूड़ी अब 4 से 5 गुना अधिक दामों पर बामुश्किल मिल रही है।

मौजूदा स्थिति ये है कि तूड़ी के लिए हर तरफ हाहाकार मचा हुआ है। पशुपालकों को समझ नहीं आ रहा कि वे पशुओं का पेट किस तरह से भरेंगे। इस बार जैसी तूड़ी की किल्लत पहले कभी नहीं हुई। इस बार ज्यादातर किसान तूड़ी बेचने की वजाए अपने पशुओं के लिए ही भंडारण कर रहे हैं। हालांकि बड़े खेतिहर किसान मध्यमवर्गीय लोगों से तूड़ी के बदले गेहूं का कटान करवाते थे। लेकिन इस बार ऐसा न होने के चलते तूड़ी की समस्या से हर वर्ग परेशान है।

उधर जिन गौशालाओं में लोग गोवंश के लिए दानस्वरूप तूड़ी डालते थे वो भी इस बार नहीं डाली जा रही। ऐसी स्थिति में गौशाला प्रबंधकों के लिए गोवंश का पेट भरना मुश्किल साबित हो रहा है। अगर गौशालाएं जैसे-तैसे कर ऊंचे दामों पर तूड़ी खरीदती भी है तो उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा। इस समस्या बारे जब कुछ गौशालाओं के पदाधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने एक स्वर में कहा कि अगर तूड़ी का कोई समाधान नहीं हुआ तो गोवंश का पेट भरना मुश्किल हो जाएगा।

इस बार तूड़ी की जितनी किल्लत हुई है ऐसी कभी नहीं देखी। गौशाला ग्रामीणों के सहयोग से ही चलती है। हर बार ग्रामीण तूड़ी डालते हैं। लेकिन इस बार बहुत कम तूड़ी डाली गई है। गौशाला में करीब 900 की संख्या में गोवंश है। जिनके लिए करीब 9 हजार क्ंिवटल तूड़ी की आवश्यक्ता होती है। गौशाला में प्रतिदिन करीब 20 क्विंटल तूड़ी की आवश्यक्ता होती है। इस समय हम बड़ी मुश्किल से महंगे दामों पर तूड़ी के लिए संपर्क साध रहे हैं। लेकिन फिर भी तूड़ी नहीं मिल रही। समझ नहीं आ रहा कि गोवंश का पेट किस तरह से भरा जाएगा। हम सरकार से ये मांग करते हैं कि गौशालाओं में डाली जाने वाली तूड़ी कम दामों पर मुहैया करवाई जाए।

महेंद्र निमीवाल, प्रधान (गौशाला नुहियांवाली)।

इस बार तूड़ी की किल्लत ने परेशान कर रखा है। गौशाला में करीब 400 गोवंश है। जिनके लिए प्रतिवर्ष करीब 4 हजार क्विंटल तूड़ी की आवश्यक्ता होती है। गौशाला में हर रोज करीब 14 क्विंटल तूड़ी की लागत है। पहले गांव के अलावा आसपास के गांवों से भी काफी तूड़ी दानस्वरूप मिल जाती थी। लेकिन इस बार बहुत कम तूड़ी मिल पाई है। समझ नहीं आ रहा कि तूड़ी का इंतजाम कैसे होगा। हम सुबह से लेकर शाम तक तूड़ी के लिए इधर-उधर संपर्क साध रहे हैं, लेकिन ऊंचे दामों के बावजूद भी तूड़ी बहुत मुश्किल से मिल रही है। हम सरकार से मांग करते हैं कि इस समस्या का कोई हल निकाला जाए। गांव में जो पंचायती भूमि है वो चारे के लिए दी जाए।

रामपाल भाकर, प्रधान (गौशाला रत्ताखेड़ा-राजपुरा)।

तूड़ी की किल्लत ने सभी पशुपालकों को पशोपेश में डाल रखा है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या गौशालाओं के समक्ष आ रही है। क्योंकि गौशालाओं के लिए काफी मात्रा में तूड़ी की आवश्यक्ता होती है। हमारी गौशाला में करीब 600 गोवंश है। जिनके लिए प्रतिवर्ष करीब 5 हजार क्विंटल तूड़ी की आवश्यक्ता होती है। हर रोज करीब 20 क्विंटल तूड़ी की लागत है। हर बार तूड़ी का भंडारण आसानी से हो जाता है, लेकिन इस बार गौशाला में तूड़ी बेहद कम आई है। हम तूड़ी व्यापारियों से संपर्क कर रहे हैं, लेकिन वे काफी ऊंचे दाम मांग रहे हैं। गौशाला के पास इतना बजट नहीं है। हम सुबह से लेकर शाम तक तूड़ी के लिए ही इधर-उधर संपर्क साधते रहते हैं। हम सरकार से यही मांग करते हैं कि इस समस्या का कोई न कोई हल निकलवाया जाए, अन्यथा गोवंश का पेट भरा मुश्किल हो जाएगा।

कृष्ण खीचड़, प्रधान (गौशाला पन्नीवाला मोटा)।

तूड़ी की ऐसी किल्लत कभी नहीं देखी। जो तूड़ी 100-150 रुपये मिलती थी वो अब किसी भी दाम में नहीं मिल रही। गौशाला में करीब सवा 300 गोवंश है। पूर्व की अपेक्षा 25 प्रतिशत ही तूड़ी दानस्वरूप आई है। हमेंं हर वर्ष करीब साढ़े 3 हजार क्विंटल तूड़ी की आवश्यक्ता होती है। हर रोज करीब 10 क्विंटल तूड़ी की लागत है। समझ नहीं आ रहा कि तूड़ी का इंतजाम कैसे करेंगे और गोवंश का पेट कैसे भरेंगे। हम सरकार से यही निवेदन करते हैं इस समस्या का कोई समाधान करवाया जाए। इसके अलावा गांव की पंचायती भूमि चारे के लिए और दी जाए।

साहब राम शर्मा, सचिव (गौशाला बनवाला)।

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