21वीं सदी की चुनौती युवाओं का कौशल विकास

21st Century Challenge Youth's Skills Development

विश्व युवा कौशल दिवस के अवसर पर यह जानकर सर शर्म से झुक जाता है कि विश्व आर्थिक फोरम के कौशल सूचकांक में भारत एक वर्ष पूर्व 130 देशों में 65वें स्थान पर था। ऐसा देश जो अपने कुछ लोगों के कौशल के माध्यम से अनेक उपलब्धियों पर गर्व करता है किंतु समग्र स्थिति के मूल्यांकन में वह काफी पीछे रह जाता है। यह सूचकांक शिक्षण अभिगम और प्रशिक्षण द्वारा मानव पूंजी के विकास के बारे में है और इसमें चार उप सूचकांक – क्षमता, तैनाती, विकास और ज्ञान हैं। भारत कौशल रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की गयी है कि शैक्षणिक संस्थानों से निकलने वाले केवल 47 प्रतिशत छात्र ही नियोजन योग्य हैं। यह बताता है कि शिक्षा और कौशल में भारी अंतर है।

ज्ञान और शिक्षा की तरह कौशल भी जीवन में बदलाव ला सकता है। कौशल की क्षमता के माध्यम से व्यक्ति समुदाय, देश और संपूर्ण विश्व समृद्ध भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं। किसी देश की दीर्घकालीन आर्थिक प्रगति इस बात पर निर्भर करती है कि उसकी मानव पूंजी का किस प्रकार विकास किया गया है और इसलिए आज सब देशों में कौशल विकास मिशन चलाए जा रहे हैं। कौशल विकास के माध्यम से युवा शैक्षणिक संस्थानों से रोजगार के बाजार में प्रवेश करते हैं और जहां पर कौशल विकास शिक्षा का अंग है वहां पर यह प्रक्रिया सरल रहती है। 21वीं सदी के कौशल में आज युवा वर्ग ज्ञान के साथ साथ कौशल की तलाश भी कर रहे हैं और शैक्षणिक संस्थानों से कहा जा रहा है कि वे ऐसे छात्र तैयार करें जो समस्या समाधान, गहरी सोच, संप्रेषण, सहयोग और प्रबंधन जैसे कौशलों में निपुण हों जो किसी भी कार्य के लिए आवश्यक होते हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने श्रीलंका द्वारा प्रशासित और जी-77 और चीन द्वारा समर्थित प्रस्तावों को स्वीकार किया जिसमें युवाओं के लिए कौशल विकास पर प्रकाश डाला गया और 15 जुलाई को विश्व युवा कौशल दिवस घोषित किया गया। इसका लक्ष्य रोजगार और बेरोजगारी की चुनौती का निराकरण करने के साधन के रूप में युवकों को बेहतर सामाजिक, आर्थिक दशाएं प्रदान करना है। विश्व युवा कौशल दिवस की घोषणा तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा, प्रशिक्षण, कौशल विकास और बेरोजगारी की समस्या के निराकरण के महत्व के बारे में जन जागृति पैदा करने के लिए की गयी है।

लक्ष्य 8- सतत समावेशी आर्थिक विकास तथा पूर्ण उत्पादक रोजगार और गरिमापूर्ण कार्य के बारे में है। 15 से 59 वर्ष आयु समूह को श्रम शक्ति माना जाता है और भारत की 62 प्रतिशत जनसंख्या इस वर्ग में है। देश में कानूनों के बावजूद बाल श्रम और किशोर श्रम जारी है। व्यक्ति और देश के विकास के लिए जन शक्ति का कौशल विकास आवश्यक है। हमारे देश में श्रम शक्ति के लाभों के कारण युवा वर्ग का कौशल विकास आवश्यक है। हाथ से काम करने के बजाय मानसिक कार्य के लिए नए कौशल और क्षमताओं की आवश्यकता होती है। भारत में मेक इन इंडिया की सफलता के लिए कौशल विकास आवश्यक है इसलिए सरकार ने 2022 तक 50 करोड़ श्रम शक्ति को कुशल बनाने का लक्ष्य रखा है।

प्रधानमंत्री द्वारा 2015 में स्किल इंडिया अभियान चलाया गया जिसका लक्ष्य 2022 तक 40 करोड़ लोगों को कौशल प्रशिक्षण देना था। इसके लिए रोजगारपरक कौशल सीखने हेतु दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना शुरू की गयी। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कौशल को श्क्षिा का अंग माना गया इसीलिए शिक्षा और कौशल विकास के लिए एक ही मंत्रालय बनाया गया। बदलाव और रचनात्मकता की मांग दिनोंदिन बढती जा रही है जिसके लिए शिक्षा प्रणाली में बदलाव आवश्यक है।

कौशल एक व्यावहारिक प्रशिक्षण है और यह ज्ञान के प्रयोग से आता है। अभ्यास से इसमें सुधार होता है। रचनात्मकता को भी ज्ञान और कौशल के प्रयोग से विस्तार दिया जा सकता है। इसके लिए समुचित सोच की आवश्यकता है। कौशल वंशानुगत भी होता है। पुराने जमाने में कौशल हाथ से करने वाले कार्यों और हस्तशिल्प से जुड़ा हुआ था। किंतु मानसिक और बौद्धिक कार्यों और यहां तक राजनीति के लिए भी समुचित कौशल की आवश्यकता होती है। तकनीकी अभिनव प्रयोग, संस्थागत बदलाव और वैश्वीकरण ने हस्तशिल्प से यांत्रिक और मानसिक कौशल के बदलाव की प्रक्रिया में तेजी आयी है और इसीलिए कौशल शिक्षा की मांग बढ रही है। शिक्षा और कौशल विकास में अंतर को दूर करने के प्रयास भारत में देर से शुरू किए गए हैं।

कक्षाओं में शिक्षा के माध्यम से कौशल विकास की संभावनाएं कम हैं क्योंकि इसमें ज्ञान के उपयोग पर कम बल दिया जाता है और अब यह शिक्षा के लिए चिंता की बात बन गयी है। सर्व शिक्षा अभियान और शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत स्कूलों में पंजीकरण बढा है क्योंकि इससे कौशल विकास में मदद नहीं मिली है। जब सीखने और कार्य करने की सीमाएं समाप्त होने लगे तो शिक्षा प्रणाली में बदलाव आवश्यक है। इसलिए आवश्यक है शिक्षा प्रणाली में बदलाव कर उसमें कौशल विकास को भी शामिल किया जाए और शिक्षण विधियां रोजगार बाजार की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए

। इसके साथ ही यदि कार्यस्थलों को प्रासंगिक और उपयोगी बने रहना है तो उन्हें भी बदलाव करना होगा। इसके लिए शिक्षा की सत्तता और कौशल विकास आवश्यक है। ज्ञान की तरह कौशल भी सीमित है। इस बारे में भाषण देना और लेख लिखना आवश्यक है किंतु अभी हमें उन बच्चों की समस्या से जूझना है जो अभी स्कूली शिक्षा प्रणाली से बाहर हैं। बदलते वक्त के अनुसार आगे बढ़ना और नई आवश्यताओं के अनुसार स्वयं को ढालने के लिए हमें कम प्रतिरोध करने की प्रवृति से बचना होगा अन्यथा हम कौशल सूचकांक में उसी स्थान पर बने रहेंगे जहां हम आज हैं।
-डॉ. एस. सरस्वती

 

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