नौकरियां भी देगा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

Artificial Intelligence
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Artificial Intelligence : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से हुई मुलाकात में सुरक्षित और भरोसेमंद साइबर स्पेस, हाई-टेक वैल्यू चेन, जेनरेटिव एआई, 5जी और 6जी टेलीकॉम नेटवर्क जैसे विषयों को रणनीतिक महत्व मिला है। दोनों देश निर्यात नियंत्रण और उच्च-प्रौद्योगिकी वाणिज्य को बढ़ाने के तरीकों का पता लगाने के लिए नियमित प्रयास करने पर भी सहमत हुए हैं। साथ ही भारत और अमेरिका ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और क्वांटम कंप्यूटिंग से लेकर अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की संपूर्ण श्रृंखला तक के क्षेत्रों में सहयोग के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया है। दोनों देशों की सरकारें उन नीतियों और विनियमों को अपनाने के लिए काम करेंगी जो अमेरिकी और भारतीय उद्योग तथा शैक्षणिक संस्थानों के बीच अधिक प्रौद्योगिकी साझाकरण, सह-विकास और सह-उत्पादन के अवसरों को सुविधाजनक बनाती हैं। इस मुलाकात के बाद से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में अब और भी प्रगति देखने को मिलेगी।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रभाव से हम सभी भली-भांति परिचित हैं। आज इशारे, बोली या चेहरे के संकेतों से बहुत कुछ कर गुजरने की क्षमता हासिल होती जा रही है। इसमें दो राय नहीं कि 21वीं सदी का यह दौर एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या कृत्रिम बुद्धिमत्ता का है। हालांकि इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई। लेकिन निर्णायक मुकाम तक पहुंचने में थोड़ा वक्त लगा। इसका मतलब ये नहीं कि यह एकाएक पैराशूट से आ गिरा और दुनिया में छा गया। एआई 1970 के दशक में लोकप्रिय होने लगी थी जब जापान इसका अगुवा बना। 1981 के आते-आते सुपर कम्प्यूटर के विकास की 10 वर्षीय रूपरेखा तथा 5वीं जनरेशन की शुरुआत ने रफ्तार दी। जापान के बाद ब्रिटेन भी चेता उसने एल्बी प्रोजेक्ट तो यूरोपीय संघ ने भी एस्पिरिट की शुरुआत की। अधिक गति देने या तकनीकी रूप से विकसित करने के लिए 1983 में कुछ निजी संस्थानों ने एआई के विकास के लिए माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी संघ बना डाला।

कृत्रिम बुद्धि की दौड़ इंसानी बुद्धि पर भारी | Artificial Intelligence

सच तो यही है कि एआई की कहां-कहां और कैसी दखल होगी जिसकी न तो कोई सीमा है और न अंत। हर दिन नए-नए फीचरों के साथ करिश्माई तकनीक पहले से बेहतर विकल्पों के साथ परिवर्तित, सुधारित या विकसित होकर सामने होती है। दुनिया सबसे पहले इसके सहज रूप रोबोट से रू-ब-रू हुई जो सबकी पहुंच में नहीं रहा। लेकिन इस तकनीक ने घर-घर दस्तक देकर अपनी निर्भरता खूब बढ़ाई। अब साल भर में मोबाइल, टीवी, गैजेट्स आउटडेटेड लगने लगते हैं। आगे क्या होगा अकल्पनीय है। सच है कि कृत्रिम बुद्धि की दौड़ इंसानी बुद्धि पर भारी दिखने लगी है। एआई ने व्यापार के पूरे तौर तरीके बदल दिए। हरेक उद्योग, व्यापार इसके बिना अधूरा और अनुपयोगी है।

स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि या फिर नागरिक शासन प्रणाली सब में जबरदस्त दखल बेइंतहा है। आसमान में सैटेलाइट, उड़ता हवाई जहाज, पटरी पर दौड़ती रेल-मेट्रो सभी कृत्रिम मेधा के नियंत्रण में हैं। घर में साफ-सफाई से लेकर खाना बनाना, टीवी आॅन-आॅफ करना, चैनल बदलना, एसी चालू-बंद करने जैसे काम एआई आधारित होते जा रहे हैं। कल सुरक्षा व्यवस्थाएं भी मानव रहित तकनीक पर आधारित होकर अधिक चाक चौबंद होना तय है। भारत में डीआरडीओ सहित कई स्टार्टअप पर काम चल रहा है। स्वचलित स्वायत्तता के एआई वाले दौर में कल्पना से भी बेहतर उपकरण होंगे जो ज्यादा प्रभावी, आक्रामक तथा सटीक यानी चूक रहित होंगे। एआई से जनसंवाद भी आसान हुआ और लोगों को जल्द समाधान भी मिलने लगा। अब सच्चाई यह है कि जन शिकायतों और निपटारे के बीच इंसान नहीं सिर्फ निष्पक्ष तकनीक है।

अब एआई सपोर्टेड मशीनें आएंगी | Artificial Intelligence

हां तकनीक का मतलब सिर्फ यह भी नहीं कि लोग इंटरनेट और डिजिटल टेक्नोलॉजी तक सीमित रहें। अब एआई सपोर्टेड ऐसी मशीनें आएंगी जो इंसानी भावनाओं को भी पहचानेंगी। आगे रोबोट और ड्रोन युद्ध के मैदान तथा अस्पतालों के आॅपरेशन थियेटर में काम करते दिखें तो हैरानी नहीं होगी। एआई पढ़ाने से लेकर भाषण, एंकरिंग से लेकर किचन व घरों की साफ-सफाई और तमाम कामों में सक्षम हो रही है। इसके फायदे और भविष्य सबको समझ आने लगे हैं। कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों तथा उर्वरकों का दुरुपयोग रोकने व पशु-पक्षियों से फसल बचाव की क्रांति की शुरुआत हो चुकी है। शायद ही कोई क्षेत्र बचे जो इससे अछूता रहे।

खेल के मैदानों में एक-एक मूवमेंट और माइक्रो सेकण्ड तक हुई गतिविधियों की रिकॉर्डिंग से साफ-सुथरे फैसलों का दौर सामने है। कार्पोरेट सेक्टर, रियल स्टेट, विनिर्माण या मशीनों का संचालन यानी सब कुछ एआई आश्रित होकर कामयाब हो रहे हैं। एआई की बैंकों, वित्तीय संस्थानों के डेटा को व्यवस्थित, सुरक्षित और प्रबंधित करने के साथ-साथ तमाम स्मार्ट और डिजिटल कार्डों के सफल संचालन के साथ समुद्र के गहरे गर्भ में खनिज, पेट्रोल, ईंधन की पतासाजी और खुदाई में भूमिका जबरदस्त है। सबने देखा दिल्ली की चालक रहित मेट्रो या दुनिया में बिना ड्राइवर की आॅटोपायलट कार के भविष्य की शुरुआत और टेस्ला को लेकर उत्साह।

एआई तकनीक से जल्द ही चौक-चौराहों पर बिना पुलिस के अचूक स्मार्ट पुलिसिंग की पहरेदारी दिखेगी। अनेकों खूबियों से लैस 360 डिग्री घूमने में सक्षम कैमरे जो हरेक गतिविधियों को भांपने, पहचानने में दक्ष तथा कंट्रोल रूम में तैनात टीम को चुटकियों में सूचना साझा कर मौके पर पहुंचाने में मददगार होंगे। वहीं सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए वरदान बन हरेक वाहन में ऐसी सेंसर प्रणाली विकसित भी हो सकेगी जो खुद-ब-खुद सामने वाली गाड़ी की स्थिति, संभावित चूक या गड़बड़ी को रीड कर स्वत: नियंत्रित हो जाए तो भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

आईआरएएसटीई तकनीक ड्राइवरों को सचेत करेगी | Artificial Intelligence

इस पर भारत में भी काम चालू है। नागपुर में हैदराबाद की एक संस्था के साथ प्रोजेक्ट इंटेलिजेंट सॉल्यूशंस फॉर रोड सेफ्टी थ्रू टेक्नोलॉजी एंड इंजीनियरिंग यानी आईआरएएसटीई तकनीक वाहन चलाते समय संभावित दुर्घटना वाले परिदृश्यों को पहचानेगी और एडवांस ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम यानी एडीएएस की मदद से ड्राइवरों को सचेत करेगी। भारतीय सड़कों के लिए लेन रोडनेट यानी एलआरनेट से लेन के निशान, टूटे डिवाइडर, दरारें, गड्ढे यानी आगे खतरे की पहले ही जानकारी ड्राइवर को हो जाएगी।

जेनरेटिव एआई कंपनियों के आंतरिक वित्त विभागों में भी भूमिका निभाएगा। वित्तीय विश्लेषण, मॉडलिंग और पूर्वानुमान जैसी भूमिकाएँ प्रभावित होने की संभावना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जब बड़ी मात्रा में डेटा को संसाधित करने और संभावित परिदृश्य और विनियमन रिपोर्ट बनाने की बात आती है तो एआई के पास बढ़त है। अध्ययन में कहा गया है कि विशेष रूप से, एआई के उपयोग के विस्तार का मतलब नौकरी का नुकसान नहीं हो सकता है, लेकिन यह इन नौकरियों के कुछ हिस्सों को कैसे निष्पादित किया जाता है, इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। गूगल और आॅपनएआई (चैटजीपीटी बनाने वाली कंपनी) खुद कहते हैं कि इससे अतिरिक्त नौकरियां पैदा होंगी।

त्वरित इंजीनियरों और सिस्टम सलाहकारों जैसी नई भूमिकाओं की मांग होगी। एआई को लेकर डर वैसा ही है जैसा हमने 1980 के दशक में कंप्यूटर आने पर देखा था। ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस का उदाहरण सामने है, जो हमें आसमान से धरती की अनजान जगह पर बिना किसी से पूछे सुरक्षित रास्ते से पहुंचाता है। लोकेशन शेयर करने पर मूवमेण्ट की जानकारी देने जैसा सारा कुछ एआई की ही देन है। भारत सहित दुनिया का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए डिजिटल मैन्युफैक्चरिंग, बिग डाटा इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, रियल टाइम डाटा और क्वांटम कम्युनिकेशन में शोध, प्रशिक्षण, मानव संसाधन और कौशल विकास, स्मार्ट मोबिलिटी, स्मार्ट हेल्थकेयर, स्मार्ट कंसट्रक्शन जैसे स्टार्टअप्स को लेकर जबरदस्त होड़, निवेश और क्षमताएँ विकसित करने पर ध्यान केंद्रित है।

इससे तकनीक क्षेत्र में अत्याधिक रोजगार बढ़ेगा तो कई दूसरे क्षेत्रों में कुछ बुरा असर भी दिखेगा। इसको समझने, सीखने और दक्ष होने खातिर साक्षरता भी तो बढ़ेगी। जब ज्यादातर इंसानी जरूरतें जो इंसान पूरा करते थे, मशीनें पूरी करने लगेंगी तो ज्यादा आबादी वाले देशों में नई बहस तय है। सही भी है जो तमाम धार्मिक ग्रंथों में किसी न किसी रूप में लिखा है और जिसका सार यही कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। कह सकते है कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी उसी का एक हिस्सा है बस उफान देखना बाकी है। US President Joe Biden

हालांकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के खतरों को लेकर भी चिंता जताई जा रही है। ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ (ईटी) की रिपोर्ट के अनुसार, जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से भारत के 5.4 मिलियन आईटी कर्मचारियों में से लगभग एक प्रतिशत प्रभावित होने की संभावना है। शुरूआत में इसका असर सेल्स और सपोर्ट रोल में काम करने वालों पर पड़ सकता है। एक नए अध्ययन के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि जेनरेटिव एआई से आईटी क्षेत्र में 2-3 अरब डॉलर की अतिरिक्त राजस्व क्षमता पैदा होने की भी उम्मीद है। मौजूदा स्थिति के अनुसार, 245 अरब डॉलर के तकनीकी सेवा उद्योग में 3,00,000 कर्मचारी बिक्री और सहायक भूमिकाओं में काम कर रहे हैं। हालांकि,अगले तीन से पांच वर्षों में एआई तकनीक के कारण लगभग 50,000 कर्मचारियों के काम पर असर पड़ सकता है।

-ऋषभ मिश्रा
असिस्टेंट प्रोफेसर, स्तंभकार एवं प्रेरक वक्ता
मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग