बंटवारे के वक्त ठाकुर दास के कस्बे में 32 हिन्दुओं को उतार दिया था मौत के घाट

time of partition SACHKAHOON

1947 के विभाजन का दर्द-बुजुर्गों की जुबानी

  • लोगों की जान बचाने में भी कई मुसलमानों ने दिखाई थी आत्मीयता

  • बंटवारे के समय चौथी कक्षा में हुए थे ठाकुर दास आहुजा

सच कहूँ/संजय मेहरा, गुरुग्राम। भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो दो धर्मों के बीच एक तरह से जंग छिड़ गई थी। यह अलग बात है कि मारने वालों के पास हथियार थे, वे अपना काम कर रहे थे। पीड़ितों को तो किसी भागकर, छिपकर अपनी जान बचाने की चिंता थी। उस समय के प्रत्यक्षदर्शी ठाकुर दास की मानें तो अकेले उनके कस्बे में ही 32 हिन्दुओं की नृशंस हत्या कर दी गई।

ठाकुर दास आहूजा के मुताबिक उनका जन्म 20 फरवरी 1937 को वर्तमान में पाकिस्तान के हजरत सखी सरोवर क्षेत्र में हुआ था। बंटवारे के समय वे चौथी कक्षा में पढ़ते थे। उनका कहना है कि सखी सरोवर सुलेमान के पहाड़ में बसी एक छोटी सी रियासत थी। जिसके नवाब थे जमाल खान लंगारी। वहां सैराकी व बलूची जबान बोली जाती थी। लांगरी, खोसे मजारी, वीरानी, गुरचानी, हेतराम बुजदार, केसरानी वहां के जागीरदार थे। सखी सरोवर छोटी-सी रियासत डेरा गाजी खान से कोई 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सखी सरोवर के आगे चढ़ाई शुरू होती है। थोड़ी दूरी पर चोटी जरीन व चोटीवाला के छोटे कस्बे हैं, वहां ऊंटों की सहायता से पहुंचा जा सकता है। कबाइली सरदार बलोच कबीलों का विभाजन भी अंग्रेजों ने किया था।

दंगाइयों ने चलती ट्रेन पर चलाई थी गोलियां

ठाकुर दास बताते हैं कि बंटवारे के बाद वे अपने परिवार के साथ सिन्धु नदी को पार करके मिलिट्री ट्रक तक पहुंचे। वहां से ट्रक में मुजफ्फरगढ़ पहुंचे। फिर रेलगाड़ी में सवार होकर हिंदुस्तान की तरफ चल पड़े। खानेवाल से जब ट्रेन रवाना हुई तो कुछ मुसलमानों ने चलती ट्रेन पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। लोगों ने तुरंत ट्रेन की खिड़कियां, दरवाजे बंद करके अपने आप को बचाया। वे बताते हैं कि बंटवारे के समय उनके कस्बे में 32 हिन्दुओं को बलोच कबीले के लोगों ने कत्ल किया था। उन्होंने स्वयं अपने दो भाईयों के साथ जानकार मुसलमान के घर में शरण लेकर अपनी जान बचाई।

दिल्ली में टीचर की नौकरी मिली

पाकिस्तान से भारत में वे सबसे पहले अपने परिवार के साथ अटारी बॉर्डर पर पहुंचे। वहां उन्हें टैंटों पर जगह मिली। वहां से सब जालंधर आ गये। इसके बाद फरीदाबाद पहुंचे। फरीदाबाद से दसवीं कक्षा पास करके टीचर की ट्रेनिंग ली। एक साल बाद उनकी दिल्ली में क्लर्क की नौकरी लगी। इसके बाद टीचर बने। आखिर में 28 फरवरी 1997 को वे सेवानिवृत्त हो गये।

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