चीन व भारत दोनों को नए संबंध व अवसरों की चाहत

China and India

भारत और चीन दोनों पड़ोसी देश हैं। 1962 के युद्ध के बाद आज तक सीमा पर विवाद जारी है। सीमाओं पर कई बार तनावपूर्ण स्थिति बनी किंतु दोनों देशों ने बातचीत से हल कर लिया। हाल ही में 5 मई को भी लद्दाख में तनाव बना था, जिसका फिर से भारत-चीन ने बातचीत के माध्यम से समाधान निकालने की बात कहकर मामले को शांत कर दिया है। दोनों देशों ने विवादित भूमि से अपनी सेनाओं को पीछे हटा लिया है। विशेष रूप से चीन ने ढाई किलोमीटर तक अपनी सेना को पीछे हटाया है, जिसके बाद भारत ने भी पहल करते हुए सेना को पीछे हटा लिया।

महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत ने इस मामले को सूझ-बूझ से सुलझाया और इसे बड़ा विवाद बनने नहीं दिया अन्यथा जिस प्रकार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस मामले में मध्यस्थता के लिए कूद पड़े थे, यह मुद्दा तूल पकड़ सकता था और दो देशों के बीच हालात बिगड़ सकते थे। कोई भी देश युद्ध नहीं करना चाहता है और न ही इस मामले का हल कोई युद्ध है। चीन जैसे महत्वपूर्ण देश के साथ युद्ध जैसे हालत पैदा करना समझदारी वाली बात नहीं। सीमा विवाद को आपसी बातचीत से सुलझाया जाना आवश्यक है। कूटनीतिक तौर पर चीन को मित्र की श्रेणी में ही गिना जा रहा है।

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने तीन जून को कहा, बातचीत और मशविरे के जरिये प्रासंगिक मुद्दों को सुलझाने में दोनों ही पक्ष सक्षम हैं। किसी तीसरे पक्ष की दखलअंदाजी की जरूरत नहीं है। चीन के साथ शत्रुता का फायदा पाकिस्तान को मिलता है, भारत कभी भी चीन को गंवाना नहीं चाहेगा। इसी मामले में नेपाल भी हमारे खिलाफ खड़ा हो सकता है। आजकल टेÑड वार का युग है, कोविड-19 से बने हालातों ने नया आर्थिक युद्ध छेड़ दिया है।

नई परिस्थितियां नए अवसर पैदा करती हैं। भारत जैसे विकासशील देश को अपने उत्पादों के बेहतर अवसर पैदा करने की क्षमता पैदा करनी है। नए मैदान में हथियारों की अपेक्षा व्यापारिक रणनीतियां बनाने की आवश्यकता है। अमेरिका जैसे देश की अंतरराष्ट्रीय रणनीतियां उसके स्वार्थों से बाहर नहीं। अत: अमेरिका का सहयोग लेने की बजाय अमें नए अवसर तलाशने की आवश्यकता है।

 

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