प्रकाश के उस अथाह पुंज में

Boundless Beam
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धरा पर आकाश नन्ही बूंद क्यों बरसा रहा?
शीतल मंद समीर भी सुन सन सन सन कुछ गा रहा!
धरा ने भी धुंध का परिधान क्यों धारण किया?
बन गई दुल्हन संवर के किससे ये घूंघट किया!
हरित-हार श्रंगार करके किसका इंतजार करती?
अलंकृत हो करके क्यों है? खुशी का इजहार करती!
चहकती चिड़ियों का झुंड किस बात को समझा रहा?
आकाश में परिहास करता ये किधर को जा रहा?
सारी प्रकृति नहाकर किसका स्वागत कर रही?
मीठी वायु की मधुरता ह्रदय को क्यों हर रही है?
कह रही है ये हवा आ रहे शाहों के शाह!
इसीलिए गायन किया है और संवारी है ये राह!
कह रहे खग-वृंद आ जाओ है आना यदि,
जा रहे हैं हम तो सारे श्री जलालाना में ही।
जिस जगह की गायों का दूध था रब ने पिया,
उस घेर की मुंडेर पर कुछ देर को बैठेंगे जा।
यदि सूर्य के तेज से खिल जाती हैं कलियां सभी
तो अलग के अथाह तेज से ये जमीं ही खिल गई।
मिल गर्इं खुशियां धरा को प्रीतम प्यारे के मिलन की
छोह पाएगी ये अब मुर्शीद प्यारे के चरण की
जलाल ही जलाल आज श्री जलालाना में छाया
श्री जलालाना भी आज अनंत सूरज बन गया।
गंध ने पुष्पों की आज रूप वो धारण किया,
मानो परमाणु सुगंध ने अपना विस्तारण किया!
सैकड़ों नदियां हो जातीं सागर में एक रूप जैसे
प्रकाश के उस अथाह पुंज में सूरज भी आज समा गया।
चांद तारे सारे जैसे सूर्योदय में छुप जाते हैं।
छुप गया सूरज भी आज जोत इलाही के आने से
पहले थीं अनाथ रूहें हो गई सनाथ अब
शाह सतनाम जी के रूप में आए उनके नाथ जब।
रहमते अपार का वर्णन न कोई कर सके
‘बघियाड़’ की औकात क्या कोई कर सका, ना कर सके।

Boundless Beam

-बघियाड़

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