रूस से तेल खरीदना भारत के लिए फायदे का सौदा

Indian Exports

इस वर्ष भारत का निर्यात प्रदर्शन बहुत दमदार होगा। निर्मित वस्तुओं का निर्यात 400 अरब डॉलर से अधिक होगा, जो अब तक का अधिकतम है। यह बीते साल से 40 फीसदी से ज्यादा है और सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की वृद्धि दर से पांच गुना अधिक है। यह वाणिज्य मंत्रालय द्वारा पूरा ध्यान देने से संभव हो सका है, जिसने उत्पाद और देश के स्तर पर लक्ष्य निर्धारित किया था और उस पर निगरानी रखी गई। सबसे बड़े निर्यातित पदार्थ पेट्रोलियम, कीमती पत्थर, आभूषण, इंजीनियरिंग वस्तुएं और रसायन रहे। उल्लेखनीय है कि 100 डॉलर शोधित पेट्रोलियम निर्यात करने के लिए हमें 90 डॉलर का कच्चा तेल आयात करना पड़ता है। इसलिए जहां हमारा निर्यात बढ़ा है, वहीं आयात में भी वृद्धि हुई है। कच्चे तेल और मोबाइल फोन जैसी चीजों का आयात करीब 600 अरब डॉलर है। सोने का आयात भी एक हजार टन पार कर गया, जिसका मतलब है कि 70 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा बाहर चली गयी।

इस वित्त वर्ष में कुल व्यापार घाटा संभवत: 200 अरब डॉलर हो जायेगा। निर्यात की तुलना में आयात अधिक होने से डॉलर की कमी होती है। यह संतोषजनक है कि भारत सेवाओं, विशेषकर सॉफ्टवेयर, आईटी से जुड़ी सेवाओं के निर्यात से भी डॉलर हासिल करता है। इसके अलावा पर्यटन, जो महामारी के कारण दबाव में है तथा कंसल्टेंसी जैसे क्षेत्र भी हैं। भारत दूसरे देशों में कार्यरत नागरिकों के भेजे धन को पानेवाला दुनिया का सबसे बड़ा देश है। यह आंकड़ा करीब 80 अरब डॉलर है, जो सोने के आयात से बाहर जानेवाले धन के बराबर है। इस प्रकार, हमारा घाटा कम हो जाता है। अमेरिका के नेतृत्व में विभिन्न देशों द्वारा रूस पर लगाई गई पाबंदियों का मतलब यह है कि रूसी निर्यात का भुगतान डॉलर में नहीं किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है कि भुगतान के लिए न्यूयॉर्क की मंजूरी चाहिए और अमेरिका रूसी निर्यातकों के ऐसे किसी दावे को मानने के लिए तैयार नहीं है।

रूसी धनिकों के विदेशी धन को भी जब्त किया जा रहा है। अमेरिका स्विस बैंकों पर भी निश्चित ही दबाव डालेगा। तेल और गैस रूस के बड़े निर्यात हैं। जो देश इनका रूस से आयात करते हैं, वे तुरंत किसी और स्रोत से इनकी खरीद शुरू नहीं कर सकते। इनमें प्रमुख आयातक जर्मनी है और खरीदारों में भारत भी है। इसलिए रूस इन पदार्थों पर बड़ी छूट दे रहा है। भारत अपनी जरूरत का एक फीसदी से भी कम तेल रूस से खरीदता है। लेकिन यदि उसे आधे दाम पर तेल मिलेगा, वह भी तब, जब कच्चे तेल की कीमत सौ डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है तथा इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को खतरा हो गया है, तो उसे यह अवसर क्यों छोड़ना चाहिए? ऐसी स्थिति में भारत और रूस को रुपये-रूबल व्यापार के लिए कोई समझौता करना होगा, जिसके तहत भारत तेल के आयात के लिए रुपये में भुगतान करेगा और उस रुपये से रूस भारत से वस्तुओं की खरीदारी करेगा।

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