संयुक्त राष्ट्र में लश्कर आंतकी के बचाव में फिर खड़ा हुआ चीन

China Population

न्यूयाॅर्क। दुनिया भर में आतंक का पर्याय बन चुका पाकिस्तान समर्थित लश्कर ए तैयबा के सदस्य शाहिद महमूद के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के प्रस्ताव पर चीन ने एक फिर अड़ंगा लगा दिया है। भारत और अमेरिका चाहते हैं कि लश्कर सदस्य महमूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जाये और दुनिया के विभिन्न देशों में उसकी यात्रा पर रोक लगाने के साथ आतंकवादी की संपत्ति को जब्त किया जाये मगर संयुक्त राष्ट्र में इस प्रस्ताव पर सभी 15 सदस्य देशों की रजामंदी जरूरी है। महमूद लश्कर के एक फ्रंट फलाह इ इंसानियत का उप प्रमुख है।

उसे भारत ने अक्टूबर 2020 में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आतंकवादी की सूची में शामिल किया है। फलाह इ इंसानियत को 2012 मे संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवादी इकाई माना है। यह पहली बार नहीं है जब चीन ने 1267 प्रतिबंध समिति में आतंकवादियों की सूची में बाधा डाली है। वास्तव में इस साल यह चौथी मौका है जब चीन पाकिस्तान स्थित खूंखार आतंकवादियों के बचाव में सामने आया और संयुक्त राष्ट्र में उन्हें ब्लैकलिस्ट करने के भारत के प्रयासों पर दीवार बन कर खड़ा हुआ है।

इससे पहले इस साल अगस्त में चीन जैश ए मोहम्मद के उप प्रमुख अब्दूल राउफ असगर के बचाव में खड़ा हो गया था जब उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में असगर को आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध करने के भारत के प्रयास को विफल कर दिया था। उसने असगर को आंतकी के रूप में सूचीबद्ध करने के प्रस्ताव पर अध्य्यन के लिये समय मांगा था जबकि सुरक्षा परिषद के अन्य सभी 14 सदस्य मसूद अजहर के छोटे भाई असगर पर प्रतिबंध लगाने के भारत के प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त कर चुके थे। असगर 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी 814 का अगवा किये जाने, 2001 में संसद भवन पर हमला करने और 2016 में पठानकोट में भारतीय वायु सेना के अड्डे पर हमले समेत कई आतंकी हमलों की योजना और उनके क्रियान्वयन में शामिल रहा है।

इसी साल जून में चीन ने प्रतिबंध सूची में लश्कर ए तैयबा के उप प्रमुख अब्दुल रहमान मक्की को सूचीबद्ध करने के लिए भारत और अमेरिका के संयुक्त प्रस्ताव को रोक दिया था। मक्की 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों समेत भारत में आतंकवादी वारदातों की योजना बनाने के लिए धन जुटाने, युवाओं को भर्ती करने और उन्हे कट्टरपंथी बनाने में शामिल रहा है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि जब आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय की साझा लड़ाई की बात आती है तो चीन की कार्रवाइयां उसके दोहरे चरित्र और दोहरे मानकों को उजागर करती हैं। चीन के इस फैसले से नई दिल्ली और बीजिंग के बीच संबंधों में और तनाव आने की संभावना है।

दोनों देशों के बीच अप्रैल 2020 से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य गतिरोध कायम हैं। विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने चीन द्वारा आतंकवादियो के बचाव में संयुक्त राष्ट्र में खड़ा होने के सवाल पर पिछले महीने कहा था कि अगर कोई देश आतंकवादियो को सूचीबद्ध करने के प्रस्ताव में बाधा उत्पन्न करता है तो उसे समझना चाहिये कि वह अपने हित और अपनी प्रतिष्ठा को खतरे में डाल कर खुलकर ऐसा करता है।

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