भेदभाव रहित व भाईचारे वाले समाज का हो निर्माण

Creating a society of discrimination and brotherhood

मिर्चपुर कांड के आरोपियों को उम्रकैद की सजा एक बड़ी घटना है जो हमारे समाज की समस्याओं व कुरीतियों को उजागर करती है। 21वीं सदी में ऐसी समस्याओं का जारी रहना हमारे सामाजिक ढ़ांचे और शासन-प्रशासन की कमियों की तरफ ऊंगली उठाता है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि देश के महान नेताओं, जिन्होंने देश को आजाद करवाने के लिए अपनी सारी जिंदगी ही लगा दी। उनकी विचारधारा को आम लोगों तक पहुंचाने में शासन-प्रशासन नाकाम साबित हुआ है। खासकार ग्रामीण स्तर पर पंचायती राज का मतलब केवल अनुदान राशियों की मांग व प्रयोग तक ही सीमित होकर रह गया है। गांवों में सद्भावना, समानता, भाईचारे का संकल्प मजबूत नहीं हो सका है। दरअसल शासन-प्रशासन का विकास मॉडल ही जाति भेदभाव को मजबूत करने वाला है। जाति के आधार पर अनुदान राशि देने के राजनीतिक पैंतरे ने समाज को जोड़ने की बजाए तोड़ने का काम किया है। राजनीतिक पार्टियों ने जाति वोट बैंक की राजनीति के तहत विभिन्न जातियों के लिए लुभावने वायदे कर जाति भावना को उत्साहित किया है। ऊपर से लेकर नीचे तक जाति सिस्टम ही चलता है। चुनावों में टिकटों के वितरण के समय अधिकतर जाति समीकरण ही देखे जाते हैं। ऐसे हालातों में समानता व भाईचारे वाले समाज की स्थापना नहीं की जा सकती। मिर्चपुर जैसे कांड फिर से न दोहराए जाएं, इसलिए सामाजिक समानता व सद्भावना की लहर की जरूरत है जो हाल की घड़ी राजनेताओं की चिंता का हिस्सा नहीं। राजनेता समाज के विभिन्न वर्गाें को केवल वोट के रूप में देखते हैं। केवल मिर्चपुर कांड संबंधी आए निर्णय के बाद समाज की बेहतरी के लिए राजनेता, सामाजिक संगठनों के जिम्मेवारा लोगों को समाज में भाईचारा व अहिंसा कायम करने के लिए प्रयास करने चाहिए। राजनेता इसे सामाजिक मसला समझकर अपनी जिम्मेवारी से मुंह न मोड़ें। नि:संदेह उपरोक्त हिंसा देश को आगे लेजाने के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम में नुक्स का ही परिणाम है। निचले स्तर पर सिस्टम में सुधार के साथ ही सामाजिक ढ़ांचा बदल सकता है। जातिवाद और हिंसा के चलते कोई देश प्रगति नहीं कर सकता। सिर्फ पुलिस कार्रवाई ही हिंसा नहीं रोक सकती। हिंसा, नफरत दिलों से निकालनी होगी।

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