देश में पांच राज्यों के चुनाव संपन्न होते ही मंहगाई का ग्राफ बढ़ने लगा है। पेट्रोलियम पदार्थों में कीमतों को एक तरह से आधार बना सभी मदों में वृद्धि हो रही है। किरयाणा, फल सब्जी, दूध-घी, खाने के तेल, दालें, दवाएं, भवन निर्माण सामग्री सब मँहगे हो रहे हैं। देश की अस्सी से ज्यादा प्रतिशत आबादी जो कि मध्यम वर्ग है को बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्गों के ईलाज एवं पारिवारिक खर्चों को संभालना बूते से बाहर हो रहा है। यहां विपक्षी सांसद सरकार से सवाल कर रहे हैं कि जब चुनावों का दौर हो तब मँहगाई कैसे काबू कर ली जाती है? चुनावों के बाद मँहगाई को काबू कर सकने की तरकीब या क्षमता क्यों कर जवाब दे जाती है? मांग पूर्ति के हिसाब से एक बात साफ समझ में आती है कि जब मांग ज्यादा है पूर्ति कम है तब दाम बढ़ जाते हैं।
परंतु चुनावों में तो मांग कम नहीं होती बल्कि ज्यादा रहती है तब भी मंहगाई न बढ़ना तो साफ समझ आता है कि मँहगाई बढ़ाने के खेल में सरकार व पंूजीपति दोनों शामिल हैं। अर्थव्यवस्था में बाजार का सारा खेल पूंूजीपतियों के हाथों में ही रहता है जब सरकार उन पर सख्ती करती है तब वह अपना मुनाफा सही मात्रा में वसूलने लगते हैं। जब सरकार ढील दे देती है तब वह अपने मुनाफे को बहुत ऊंची दर पर वसूलना शुरू कर देते हैं। फिर सरकार भी उपभोक्ताओं से छल करती है जिसका उदाहरण, पिछले दो सालों में कोविड के दौरान गिरी कच्चे तेल की कीमतों में आमजन ने देख लिया है कि कैसे विश्व बाजार में कच्चा तेल प्रति बैरल एक डॉलर से भी नीचे आ गया था लेकिन देश के घरेलू बाजार में तेल की कीमतें आसमान पर थीं। हाल-फिलहाल जीएसटी दरों से आमजन की बहुत ज्यादा हालत पतली हो रही है। इस दौर में बिना छत वाले गरीब व महलों वाले अमीर दोनों को ही जीवन निर्वाह की दौड़ में एक समान करों का वहन कर रहे हैं। जिससे कि अमीर व गरीब की खाई चौड़ी हो रही है।
जिस तेजी से अमीर ज्यादा अमीर हो रहे हैं वह अपने कारोबार के जरिये सेवाओं एवं उत्पादों पर अपनी मुनाफा वसूली को बढ़ाते जा रहे हैं। शिक्षा, ईलाज, इंटरनेट, दवाएं, पेट्रोल, डीजल यहां तक कि सड़क पर चलना भी इतना मँहगा हो चुका है कि लोग सड़कों से उतर कर कच्ची पगडंडियां ढूंढने लगे हैं कि किसी न किसी तरह वह अपना काम-धन्धा कर कुछ कमा भी लें एवं सड़क के मँहगे टोल की लूट से भी बच जाएं। इस परिस्थिति में भगवान न करे कि देश को कोई प्राकृतिक आपदा या युद्ध आदि की आपदा का सामना करना पड़ गया तो सबसे ज्यादा जानें आमजन को गंवानी पड़ेंगी। सरकार, आर्थिक व बाजार विशेषज्ञों को चाहिए कि वह आमजन को उनका जीवन निर्वाह एवं भविष्य संवारने के लिए अच्छे रोजगारों की व्यवस्था करने में सहायक बनें एवं मंहगाई को रोकने के प्रयास करें।
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