ऊंची दुकान, फीका पकवान

National Emergency in America, Donald Trump

दुनिया के ताकतवर देश अमेरिका में राष्टÑपति चुनाव के लिए मैदान में उतरे रिपब्लिकन उम्मीदवार व मौजूदा राष्टÑपति डोनाल्ड ट्रंप व डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बायडेन की बहस नैतिकता की नजर से निचले स्तर की है। दोनों नेता बहस के दौरान इतने गर्म हो गए कि एक दूसरे को स्टअप जैसे शब्द भी बोल गए। मेजबान पत्रकार ने बहुत ही समझदारी पूर्ण मौके को संभाला, दोनों नेताओं को शांत किया। इस बहस पर अमेरिका सहित दुनिया भर की नजर टिकी हुई थी। इस बहस में कोविड-19, अर्थ व्यवस्था, नस्लीय हिंसा सहित बहुत से मुद्दे हैं, जिनका अमेरिका के साथ-साथ पूरी दुनिया के लोगों के साथ संबंध है।

विकसित देशों के हर काम को दुनिया में मॉडल के तौर पर देखा जाता है। नस्लीय हिंसा व प्रदर्शनों के मामले में दर्शक ट्रंप से भी जवाब का इंतजार कर रहे थे लेकिन इस मामले में वह हिंसा परएक तरफा बात करके चुप हो गए। हिंसा बुरी है लेकिन प्रदर्शन को रोकने के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले महीनों में जिस तरह गोली मारने की चेतावनी दी थी वह काले अमेरिकि यों के साथ-साथ गोरे अमेरिकियों को भी नागवार गुजरी थी। ऐसे मामलों में टंÑप की ओर से जिम्मेवारी पूर्ण जवाब मिलने की उम्मीद थी, लेकिन वह अपने पहले वाले अंदाज में ही नजर आए। नस्लीय हिंसा को रोकने के लिए किसी भी तरह की दृढ़ता उनके शब्दों से नहीं झलकी। टंÑप की अपने आप के गुण गाने की आदत भी बहस में नजर नहीं आई।

विपक्षी विचारों को सद्भावना के साथ सुनना व समझना भी ट्रंप को बहुत अच्छा नहीं लगा। विपक्ष के आरोपों को तर्क के साथ खण्डित करने की बजाय कठोर शब्दों का प्रयोग ज्यादा हुआ। अमेरिका जैसे देश में सार्वजनिक मुद्दों पर बहस एक अच्छा कदम है, जिससे करोड़ों लोग बिना किसी भेदभाव के अपने घरों में बैठकर अपने राष्टÑीय नेताओं के विचार सुन सकते है, लेकिन जिस तरह का रवैया बहस के दौरान नजर आया, वह अमेरिका की राजनीति में बदले की राजनीति के बीज ही बोएगा। कोरोना के दौरान दुनिया में सबसे अधिक मौतों वाला देश होने के बावजूद मृतकों के परिवारों के प्रति संवेदना जताने की बजाय सरकारी प्रबंधों को बढ़ा-चढ़ा कर बखान करते रहना अनुचित है। चुनावों में एक पक्ष की जीत व एक पक्ष की हार तय है, लेकिन राजनीति में सद्भावना, धैर्य, विवेक जैसे गुणों की मौजूदगी से विभिन्न विचारधाराओं में एकजुटता बनी रहती है। इस बात में कोई दोराय नहीं कि आर्थिक व तकनीकी तरक्की के बावजूद अमेरिकी राजनेता आदर्श व्यवहार के रास्ते से भटक गए हैं।

 

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