बनवास खत्म, अब ‘वचन’ पूरा करने की चुनौती

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2018 ने जाते-जाते कांग्रेस को लाईफ लाईन दे गया है। तीनों राज्यों में कांग्रेस की जीत उसके लिए बहुत अहमियत वाली है इससे देश की राजनीति में लम्बे समय से अपना मुकाम तलाश रहे उसके नेता राहुल गांधी को आखिरकार एक राजनेता के रूप में अपना मुकाम मिल गया है। कांग्रेस के लिये मध्यप्रदेश की जीत बहुत खास है यह भाजपा का सबसे मजबूत किला माना जाता था यहां शिवराज सिंह चौहान जैसे मजबूत नेता मुख्यमंत्री थे मध्यप्रदेश को भाजपा विकास के मॉडल के तौर पर भी प्रस्तुत करती रही है, मध्यप्रदेश में कांग्रेस पिछले तीन चुनावों से लगातार सत्ता से बाहर रही है।

वर्ष 2003 में उमा भारती को दिग्विजय सिंह की सरकार को उखाड़ फेकने का श्रेय दिया जाता है तब उन्होंने कुशासन, बिजली, पानी और सड़क को मुद्दा बना कर चुनाव लड़ा था और भारी बहुमत के साथ जीती थीं। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 58 सीटें मिली थीं, 2008 में कांग्रेस को 71 सीटें मिली थीं जबकि 2003 के चुनाव में कांग्रेस मात्र 38 सीटों पर सिमट कर रह गयी थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 114 सीटें मिली हैं जोकि बहुमत से दो कम हैं दूसरी तरफ भाजपा को 109 मिली हैं पिछली बार के मुकाबले उसे 56 सीटों का नुकसान हुआ है।

वोट प्रतिशत की बात करें तो बीजेपी को 41 प्रतिशत वोट मिले हैं, जबकि कांग्रेस को 40.9 प्रतिशत। यानी भाजपा को 0.1 प्रतिशत ज्यादा मत मिले हैं। दूसरी पार्टियों की बात करें तो इस बार बहुजन समाज पार्टी को दो सीटें समाजवादी पार्टी को एक और निर्दलियों को 4 सीटों मिली हैं। बसपा-सपा और निर्दलीयों ने कांग्रेस को समर्थन दिया है जिसके बाद कांग्रेस मध्यप्रदेश में 121 सीटों के साथ सरकार बनाने में कामयाब हो गयी है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने बहुत ही थोड़े समय में कांग्रेस ने अपना कायाकल्प करने का चमत्कार किया है और इसका श्रेय निश्चित रूप से राहुल गांधी को दिया जायेगा।

मध्यप्रदेश में लम्बे समय से कांग्रेस संगठन में भ्रम, असमंजस और अनिर्णय की स्थिति बनी हुई थी ऐसे में राहुल ने कमलनाथ, सिंधिया और दिग्विजय सिंह की जिम्मेदारी तय करते हुये इन्हें एक साथ काम करने को प्रेरित किया। क्रेडिट कमलनाथ को भी जाता है जिन्होंने बहुत कम समय में लम्बे समय से से सुस्त पड़ चुके संगठन को सक्रिय करके पार्टी को मुकाबले में ला दिया। उन्हें 1 मई 2018 से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गयी थी। शिवराज के बाद मध्यप्रदेश को कमलनाथ के रूप में नया मुख्यमंत्री मिला है जीत के बाद कांग्रेस के लिये यह फैसला अपेक्षाकृत काफी आसान रहा विधायक दल की बैठक में खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा मुख्यमंत्री पद के लिए कमलनाथ का प्रस्ताव रखा गया।

अपने चार दशक लम्बे राजनीतिक कैरियर में यह पहला मौका है जब कमलनाथ मध्यप्रदेश की राजनीति में इस तरह से सक्रिय भूमिका में हैं। इससे पहले राज्य की राजनीति में वे अपने आप को छिंदवाड़ा तक ही सीमित किये रहे। कमलनाथ के लिये शिवराज जैसे लोकप्रिय, जमीनी और हमेशा जनता के बीच रहने वाले मुख्यमंत्री की जगह भर पाना आसान नहीं होगा। कमलनाथ की दूसरी चुनौती चुनाव अभियान के दौरान किये गये भारी-भरकम वादों पर खरा उतरना होगा चुनाव प्रचार के दौरान कमलनाथ ने ‘कर्ज माफ, बिजली का बिल हाफ और इस बार भाजपा साफ’ का नारा दिया था।

कांग्रेस का सबसे बड़ा चुनावी वादा किसानों की कर्जमाफी का है जिसके तहत दो लाख तक के कर्ज को माफ करने का वादा किया गया था कर्जमाफी के इस दायरे में करीब 40 लाख किसान आ रहे हैं। इस कर्जमाफी के लिये तकरीबन 56 हजार रुपए कि जरूरत पड़ेगी लेकिन इस दिशा में सबसे बड़ी परेशानी ये है कि मध्यप्रदेश के सरकारी खजाने की हालत बहुत खस्ता है राज्य पर लगभग पौने दो लाख करोड़ रुपये का कर्ज पहले से ही था ऊपर से विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से ठीक पहले निवर्तमान सरकार द्वारा 500 करोड़ रुपए के कर्ज लेने की खबरें आयीं थी। दूसरी तरफ केंद्र की भाजपा कि सरकार कभी नहीं चाहेगी कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के खाते में कर्जमाफी की उपलब्धि दर्ज हो ऐसे में मध्यप्रदेश में नवगठित सरकार को इस मामले में केंद्र की तरफ मदद की उम्मीद नहीं है।

हालांकि कांग्रेस को अपने किये गये वादों को बायपास करके आगे निकलना उतना आसान भी नहीं है इस बार उसे मजबूत विपक्ष मिला है। इस्तीफा देने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि प्रदेश की जनता ने हमें एक चौकीदार की भूमिका सौंपी है हम एक सशक्त और जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएंगे। शिवराज सिंह ने प्रदेश की सत्ता संभालने जा रही कांग्रेस को अभी से ही उसका सबसे बड़ा चुनावी वादा याद दिलाते हुये कहा है कि राहुल गांधी ने कहा था कि अगर 10 दिन में किसानों की कर्जमाफी नहीं हुई तो हम मुख्यमंत्री बदल देंगे अब कांग्रेस अपने वादे पूरे करे।

जावेद अनीस

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