प्रेरणास्त्रोत: एक ब्राह्मण की कथा
जिस धन के लिए मैंने जीतोड़ परिश्रम किया वह न तो धर्म-कर्म में लगा और न मेरे सुख भोग के काम ही आया। इस संसार सागर से पार होने के लिए वैराग्य एक नौका के समान है। अब मैं शेष बची हुई आयु से आत्म-लाभ लेकर अपना कल्याण करूँगा। वह ब्राह्मण मौनी-सन्यासी हो गया, वह अपना मन वश में करके पृथ्वी पर स्वतन्त्रता से विचरण करने लगा।