भारत-चीन की सेना वापसी राहतभरी

India China Army

प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर दुनिया भर में चीन का विरोध हुआ, बहुत से देशों ने चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों की समीक्षा की व चीन से रिश्ते तोड़ लिए या चीन को प्राथमिकता देना बंद कर दिया। चीनी विरोध का भारत को फायदा हुआ। कई बड़ी कम्पनियों ने भारत, थाईलैंड व इन्डोनेशिया जैसे देशों का रूख कर लिया।

दोनों देशों के लिए यह बेहद राहत भरी खबर है कि भारत-चीन ने लद्दाख में एलएसी से अपनी सेनाओं को कम कर लिया है और दोनों तरफ से सेनाएं पीछे लौट रही हैं। जून 2020 में दोनों देशों में तनाव चरम पर पहुंच गया था तब चीन की तरफ से भारी संख्या में सैनिकों ने एलएसी पार करने की कोशिश की थी और भारत ने उसका कठोर प्रतिक्रम किया था। उस वक्त भारत के 20 के करीब एवं चीन के 50 के करीब सैनिकों की जान चली गई थी। हालांकि चीनी सरकार ने कभी भी यह नहीं बताया कि एलएसी पर उनके कितने सैनिक मारे गए लेकिन पहले अमेरिका व अब रूस की तास न्यूज एजेंसी क अनुसार चीन के करीब 45 सैनिक मारे गए थे। भारत-चीन के बीच 1962 के युद्ध के बाद यह पहली दफा था कि तनाव युद्ध की स्थिति में पहुंच गया था। गलती चीन की रही है।

चीन पहले ही भारत की हजारों वर्गमील भूमि पर अवैध कब्जा किए बैठा है और अब भी कभी लद्दाख, कभी सिक्किम एवं अरूणाचल में घुसपैठ की कोशिशें करता रहता है। भारत-चीन के बीच विवाद सीमा को लेकर ही है अन्यथा दोनों देशों में अच्छा संवाद एवं कारोबार है। अब जब चीन ने फिर से तनाव बढ़ाने की चेष्ठा की है तब भारत ने चीनी आयात को हतोत्साहित किया है, जो सही भी है। 2020 का पूरा साल-पूरी दुनिया कोविड-19 वायरस की महामारी से जूझती रही है। कोविड-19 फैलाने के आरोप भी चीन पर लगे हैं, जिस कारण पूरी दुनिया में आना जाना, कारोबार ठप्प होकर रह गए, लेकिन इस बुरे वक्त में भी चीन ने अपनी सम्राज्यवादी नीति एवं मक्कारी को नहीं त्यागा। कोविड-19 पर चीन पूरी दुनिया से अलग-थलग पड़ गया, जिस कारण उसे अमेरिकी प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ा।

प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर दुनिया भर में चीन का विरोध हुआ, बहुत से देशों ने चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों की समीक्षा की व चीन से रिश्ते तोड़ लिए या चीन को प्राथमिकता देना बंद कर दिया। चीनी विरोध का भारत को फायदा हुआ। कई बड़ी कम्पनियों ने भारत, थाईलैंड व इन्डोनेशिया जैसे देशों का रूख कर लिया। चीन ने लद्दाख में भारत को चुनौती देकर भारत की सुरक्षा ताकत को भी भांप लिया, जिस कारण शायद चीन ने सीमा पर तनाव को कम करने में ही अपनी भलाई समझी। परंतु भारत को युद्ध के लिए उकसाने एवं भारतीय-चीनी सैनिकों की झड़प में हुए जान-माल के नुक्सान के लिए चीनी नेतृत्व की जिम्मेवारी तय की जानी चाहिए।

हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भले ही चीन को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन चीन के आम नागरिक इससे अच्छी तरह से परिचित हो जाएंगे कि किस तरह चीनी नेताओं ने देश का नुक्सान किया है। भारत को वर्ष-2020 की चीनी हरकत से बहुत फायदा हुआ है, इससे भारत ने हिमालय में अपनी सैन्य तैयारियों को यहां अच्छी तरह से परख लिया है, वहीं पाकिस्तान जैसे राष्ट्र को साफ संदेश गया है कि जिस भारत से भिड़ने से चीन कतरा गया, उससे अगर पाकिस्तान भिडेगा तो पाकिस्तान का भविष्य क्या होगा? फिर भी भारत को अपने अंतरराष्ट्रीय शांति सिद्धांतों पर अडिग रहकर ही पाक व चीन के साथ अपने सीमा विवादों का हल करने के प्रयास करते रहने चाहिए, निश्चित ही एक दिन भारत की कूटनीतिक जीत होगी व भारत के खोये हुए भूभाग भारत का पुन: भूगोलिक तौर पर हिस्सा होंगे।

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