हमें सतलोक से वापिस आना पड़ा

Satguru ji sachkahoon

पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज जब भी डेरा सच्चा सौदा की तेरावास में होते तो अधिकतर समय अपने मुर्शिद की याद में मग्न रहते, कभी न सोते। बेपरवाह जी को कभी भी किसी ने सोते हुए नहीं देखा। यदि रब्बी देह के आराम के लिए एक-आध घंटा लेटते तो भी ध्यान मालिक से जुड़ा ही रहता और अपनी देह से चले जाया करते। यह बात नियामत जी और पलटु आदि पुराने सेवादार ही जानते थे। ऐेसे ही एक बार पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज तेरावास में लेटे हुए अपनी मस्ती में मग्न होकर पवित्र देह छोड़कर चले गए।

उस समय ड्यूटी वाला पुराना सेवादार किसी काम के लिए साथ वाले कमरे में चला गया। बेपरवाह जी के पास वह एक नए सेवादार (बुल्ला) की ड्यूटी लगाकर चला गया। ड्यूटी वाला सेवादार बच्चा था। उसको पता नहीं था कि साई जी सोते नहंी बल्कि नाम की मस्ती में देह से दूर चले जाते हैं। वह सेवादार प्यार से सतगुरू के लिए चाय बनाकर ले आया और पीने के लिए प्रार्थना करते हुए पूजनीय बेपरवाह जी को आवाज लगाई परंतु कोई उत्तर नहीं मिला। फिर आवाज लगाई और साई जी के चरणों को हाथ से हिलाया। कोई उत्तर नहीं मिला।

उसने सोचा साई जी अभी-अभी तो मजलिस फरमाकर आएं हैं , इतनी जल्दी नींद कैसे आ गई? वह घबरा गया और उसने सोचा कि शायद दाता जी देह छोड़कर रूप बदल गए हैं। उसे कुछ नहीं सूझा। उसके मुंह से चीख निकल गई। चीख सुनकर सेवादार भी तुरंत तेरावास की तरफ आ गए। शहनशाहों के शहनशाह अपनी पवित्र देह में पधारे और नए सेवादार को रोते हुए देखा। पूजनीय बेपरवाह जी ने पास खड़े पुराने सेवादारों को फरमाया, ‘‘यह तो बच्चा है, अभी नया आया है। तुम्हें तो पता था। इसकी चीख सुनकर हमें सतलोक से वापिस आना पड़ा।’’

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