पश्चिमी बंगाल व उड़ीसा में अम्फान तूफान चरम पर है, जिसने दोनों राज्यों में तबाही मचा दी है। इस तबाही में पश्चिम बंगाल में 72 लोगों की मृत्यु हो गई, पशु भी मारे गए हैं। मकान और बिजली के खंबे गिरने से राज्य को भारी नुक्सान हुआ है। तूफान की भयानकता का अंदाजा इसी से भी लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो दिन तक राज्यों का हवाई दौरा किया और दोनों राज्यों बंगाल के लिए 1000 करोड़ और उडीशा के लिए 500 करोड़ की मदद की घोषणा की।
राजनेता इस संवेदनशील मुद्दे पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे। कर्नाटक में विपक्षी दल के कांग्रेस नेताओं ने प्रधानमंत्री के दौरे को राज्यों में नजदीक आ रहे विधान सभा चुनावों के साथ जोड़ दिया है। मामले की संवेदना इस बात से भी झलकती है कि पूरा देश इस तबाही में पीड़ित लोगों के साथ संवेदना प्रकट कर रहा है इसीलिए प्रधानमंत्री के दौरे पर बयानबाजी करना शोभनीय नहीं। कर्नाटक के कांग्रेसी नेताओं को समझने के लिए यह जानकारी ही काफी है कि तूफान आने पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ही प्रधानमंत्री को हवाई दौरा करने व मदद की अपील की थी दूसरी तरफ यदि प्रधानमंत्री इस आपदा में दौरा न करते तब विपक्षी दलों का बयान क्या आना था इसका अंदाजा लगा पाना भी कठिन नहीं। इन परिस्थितियों में विपक्षियों ने प्रधानमंत्री को ताना ही देना था कि इतनी बड़ी आपदा के बावजूद प्रधानमंत्री दिल्ली में बैठे रहे।
अच्छी बात यह है कि अम्फान ने 1999 के चक्रवात की तरह जीवन का नुक्सान नहीं किया। 1999 में उड़ीसा में दस हजार से अधिक मौतें हुई थीं। उस वक्त आर्थिक नुक्सान भी बहुत हुआ था लेकिन इस बार अग्रिम सूचना होने के कारण लाखों लोगों को सही समय पर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया था। फिर भी आर्थिक नुक्सान बड़े स्तर पर हुआ है। ममता बनर्जी एक लाख करोड़ रूपये के नुक्सान का दावा कर रही हैं व केंद्र की मदद को अपर्याप्त बता रही हैं। फिर भी नुक्सान का वास्तविक अंदाजा अभी लगाया जाना है और नुक्सान की पूर्ति में केंद्र को मदद करनी चाहिए। लेकिन तूफान के इस मुद्दे को विधान सभा चुनावों से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। ममता बनर्जी व केंद्र में शुरूआत से ही संबंध तकरारपूर्ण रहे हैं, इस मामले में दोनों पक्षों को चुनावी फायदे को एक तरफ रखकर इंसानियत, नैतिक व कानूनी जिम्मेदारी के साथ पीड़ित लोगों की मदद करनी चाहिए।
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