रेत के टिब्बों पर लहलहा रहे मौसमी व किन्नू के बाग, कमा रहे लाखों

  • परंपरागत खेती को छोड़कर गाँव देवसर के धरतीपुत्रों ने लिखी नई इबारत

  • राज्य सरकार का बागवानी विभाग दे रहा 15 हजार से 50 हजार तक सब्सिडी

भिवानी (सच कहूँ/इन्द्रवेश)। भिवानी जिला के गाँव देवसर में कभी रेत के टिब्बे थे। इन टिब्बों पर सिर्फ घास होती थी, वो भी जंगली। यहां खेती तो दूर-दूर तक सम्भव नहीं थी। लेकिन आज यहां किसान खेती की पुरानी पद्धति को छोड़कर मौसमी और किन्नू के बाग लगाकर लाखों रुपये कमाने लगे हैं। इन्हीं किसानों में शुमार हैं राकेश, संजय व रमेश यादव। किसान राकेश कहते हैं कि किसानों को अब परम्परागत खेती को छोड़कर दूसरी उन्नत किस्म की खेती करनी चाहिए, ताकि वह लाभ कमा सकें। उन्नत खेती से वो लाखों रुपये की कमाई करेगा, वहीं सरकार भी उसे फायदा देगी।

क्या कहते हैं अधिकारी ?

जिला बागवानी अधिकारी देवीलाल ने बताया कि आज बागवानी प्रगतिशील किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प बनकर उभरा है, जो उनकी आय को दोगुना करने में सहायक है। सरकार द्वारा 43 हजार रुपए प्रति एकड़ सब्सिडी किसानों को उपलब्ध करवाई जा रही है। इसके अलावा जो किसान धान छोड़कर बागवानी लगाते हैं, उन्हें 7 हजार रुपए अतिरिक्त सब्सिडी मेरा पानी-मेरी विरासत योजना के तहत दी जा रही है। इसी प्रकार हाईब्रीड सब्जी उगाने वाले किसानों को 15 हजार रुपए प्रति एकड़ सब्सिडी के साथ सात हजार रुपए धान की खेती छोड़ने पर सब्सिडी के रूप में अतिरिक्त उपलब्ध करवाई जा रही है। इससे इन योजनाओं से इस क्षेत्र के किसान काफी लाभ कमा रहे हैं तथा अपनी आय को तीन से चार गुणा तक बढ़ा पा रहे हैं।

जहरमुक्त उत्पादों को दे रहे बढ़ावा, मंडी की दरकार

राजेश बताते हैं कि वो दवाई भी देशी बनाते हैं और उससे ही किन्नू व मौसमी की फसलों का उपचार करते हैं। इस दवाई में गुड़, गोमूत्र का इस्तेमाल होता है, जोकि खाने वाले की सेहत के लिए भी नुक्सानदेह नहीं होता। वहीं किसान संजय देवसरिया का कहना है सरकार मंडी का इंतजाम कर दे तो किसानों की ओर अधिक फायदा हो सकता है। उन्होंने बताया कि वे बिना रसायनिक खाद के फसले बोते हैं। उन्होंने बताया कि सरकार अलग मंडी बनवाये ताकि फसलो के उचित दाम भी मिल सके।

प्रति एकड़ एक लाख तक का फायदा

किसान राजेश कहते हैं कि यहां उन्होंने 17 एकड़ में किन्नू व मौसमी का बाग लगाया था। अब वह बाग किसान राकेश व संजय के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रहा है। उनका कहना है कि वे 1 लाख रुपये प्रति एकड़ उससे फायदा ले रहे हैं, जबकि परम्परागत खेती में 30 से 40 हजार रुपये प्रति एकड़ फायदा किसान को मिलता है। राजेश का कहना है कि सरकार ऐसी फसलों पर शुरूआत में ही सब्सिडी देती है ताकि किसान इस ओर अग्रसर हो सके। चाहे बात टैंक बनाने की हो या टपका सिंचाई के लिए तार या दवाई की।

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