हमारी जिंदगी खुली किताब है, इसलिए हमारे शिष्य अडोल हैंः पूज्य गुरू जी

Baba Ram Rahim News

बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने ऑनलाइन गुरुकुल के माध्यम से साध-संगत के सवालों के रूहानी जवाब दिए। आइयें पढ़ते हैं पूज्य गुरु जी के सवालों के जवाब…

सवाल: अगर गलती मन करता है तो सजा आत्मा को क्यों भोगनी पड़ती है?

जवाब: क्यों कि मन से कई गुणा ज्यादा पावरफुल है आत्मा। और जब आप आत्मा की आवाज नहीं सुनते तो खामियाजा आत्मा को भुगतना पड़ता है। गलत मन करता है, आप करते हैं, लेकिन सजा तो आत्मा को मिलती है क्योंकि वो ऐसी ताकत, ऐसी शक्ति है जो कभी मर नहीं सकती, पर सजा भोगनी पड़ती है, इसलिए आप सुमिरन करें, आत्मा की आवाज सुनें, तो मालिक रहमत करेंगे। और फिर आत्मा ये सब भोग ही नहीं पाएगी।

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सवाल: आज कल फ्लेवर हुक्का का बहुत ज्यादा प्रचलन है, नौजवान इसका बहुत ज्यादा सेवन करते हैं, क्या ये गलत है?

जवाब: हमें तो पता नहीं, फ्लेवर हो, अगर उसमें तम्बाकू है, तो गलत ही गलत है और उसमें से धुंधा निकालने
से मिलेगा क्या? धुंआ कुछ भी जाता है, लेकिन कैमिकल तो होगा ही है, वो फ्लेवर ये तो हैं नहीं की नेचूरल है, उसमें कुछ कैमिकल होंगे, और वो धुंधा अगर फेफड़ों में जाता है तो वो फायदा करने से तो रहा, हमें तो लगता नहीं करनी चाहिये ये सब चीजें।

सवाल: कहा जाता है कि इंसान अपनी आत्मिक शक्ति को, आंखों के द्वारा ज्यादा बर्बाद करता है, इसकी क्या वजह है?

जवाब: कोई जरूरी नहीं है आंखों से, अपने कर्मों से भी इंसान बर्बाद करता है। आंखें, क्योंकि देखती हैं, आप ये सोचते हैं कि आंखें पहचानती नहीं कि गलत कर्म कर रहे हो, बुरा कर्म कर रहो, लेकिन नहीं। उतना मार्इंड का भी असर है, वो सोचता नहीं, सिर्फ आंखों को दोष नहीं दे सकते आप, क्योंकि आंखें तो एक मैसेज भेजती हैं मार्इंड तक और बेसिक मार्इंड ही डिसाइड करता है, क्या करना है, क्या नहीं नहीं करना। और उसके स्वामी आप हैं। क्योंकि आत्मिक दौर पर उसे कंट्रोल करते हैं तो आपके अंदर आवाज जरूर आएगी आत्मा की, कि मत कर बुरा कर्म, फिर भी करते हैं तो दोषी आप हो जाते हैं, आंखें या मार्इंड नहीं। इसलिए गलत कर्म नहीं करना चाहिये।

सवाल: मुसीबतों में सब डगमगा जाते हैं, आप के भक्तों पर लाख मुसीबतें आई, लेकिन उनका हौंसला और विश्वास बुलंद रहा। डेरे के घोर निंदक भी इस बात को सरे आम स्वीकारते हैंं, इसका क्या राज है?

जवाब: क्योंकि बेटा, हम अपने बच्चों के सामने कुछ पर्दा रखते ही नहीं। सारे बच्चों के सामने खुली किताब हैं, और उनको पता है अपने पीर-फकीर का, और हमें पता है अपने बच्चों का, जो दिल से जुडे हैं, और ये समाज का भला करते हैं, ये कोई ऐसा नहीं है कि आकर हमारे हाथ-पांव दबाते हैं, जी नहीं, ये सेवा करते हैं, समाज की, सर्वधर्म की और सबकी इज्जत करते हैं, कोई गाली दे तो भी। इसलिए एक बच्चा भी टस से मस नहीं हुआ। हमें इस बात की बड़ी खुशी है कि ये अपने जिस धुरे से जुटे थे, ज्यों के त्यों खड़े हैं और ये खड़े ही रहेंगे। समाज के लिए लगे ही रहेंगे और मालिक सतगुरु उनको खुशियों से मालामाल करते रहेंगे।

सवाल: गुरु जी, स्टडी और इंटरटेनमेंट में कैसे बैलेंस बनाया जाए?

जवाब: स्टडी का टाईमिंग रखिये बेटा! आप सुबह मॉर्निंग में उठकर जैसे भक्ति करते हैं, फ्रैश हो जाएं और नींद पूरी कर लें, मॉर्निंग में जो स्टडी की जाती है वो दिलों दिमाग में बैठ जाती है। ये हमारा खुुद का तर्जुबा है। ये हम लोग किया करते थे, और जहां तक इंटरटेनमेंट की बात है तो हम लोग तो सारा कुछ ही करते थे, ये राम जी कृपा कहो, हमारे में ऐसा कुछ नहीं है। 32 के लगभग नेशनल लेवल के गेम, स्टेट लेवल के खेले हमने, खेला करते थे, और ये ही नहीं शनिवार के दिन जो बाल सभा हुआ करती थी, उसमें भी पार्टीसीपेट लेते थे, और हम अफीम पे, शराब पे बहुत से गीत तब भी गाते थे और कुछ नाटक भी हमने लिखें भी थे तब वो भी किया करते थे। तो पढ़ाई में भी अव्वल रहते थे राम जी की कृपा से। तो ये तालमेल बिठाया जा सकता है। क्योंकि इंटरटेनमेंट से मार्इंड फ्रैश होता है और फ्रैश के बाद जब आप मार्इंड स्टडी में लगाएंगे तो और ज्यादा अच्छा फील करेंगे।

सवाल: एक नशा मुक्त भारत के नाम से मैराथन का आयोजन किया जाए, जिससे युवाओं को बहुत फायदा होगा?

जवाब: जी, जिम्मेवार नोट कर लें, जो भी पॉसिबल होगा नशा छुड़वाने के लिए हर कदम उठाने के लिए हम तैयार हैं, और सारा नौजवान भी हमारा साथ देंगे तो ये जरूर संभव हो पाएगा। आशीर्वाद बेटा!

सवाल: गुरु जी, आपके सत्संग, मॉटिवेशन, सेल्फ अवेयरनेस और लीडरशीप बहुत ही उपयोगी है, क्या एक बुक भी आप इस पर लिखेंगे ?

जबाव: जी, हम चाहेंगे कि जो हमारे जिम्मेवार बच्चे हैंं जो लिखते हैं, जिनको शौंक हैं, इस चीज का, वो लगे हुए हैं। एक को हमने बोला था, कि बेटा लिख, तो वो लिख रहे हैं। हमने जो उनको बताया, उसी को लिख रहे हैं, और भी जो बच्चा यहां लिखने का शौंक रखता हो, तो वो जल्दी से लिखे, हमारे पास टाईम नहंी है। हालांकि हमें लिखने का बहुत शौंक है, हमने 800 भजन लिख दिये हैं। और इस पर अगर एक बुक आपने कहा है तो हम जरूर सोचेंगे, बेटा । समय के अकॉर्डिंग इस पर लिखने की कौशिश करेंगे।

सवाल: इतिहास रहा है कि गुरु, पीर, फकीर हो ही हमेशा मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, जो खुद हमेशा सारी सृष्टि का भला करते हैं, ऐसा क्यो होता है?

जवाब: बेटा, ये ओरों का तो हम कह नहीं सकते, ये सतगुरु मौला के खेल हैं, जैसे वो खिलाता है, संत-पीर फकीर चलते रहते हैं, क्योंकि फकीर अगर रजा में राजी नहीं रहेगा तो उसके शिष्य, उसके भक्त रजा में राजी कैसे रहेंगे। तो इसलिए संत, पीर, फकीर, अपने ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, सतगुरु मौला के रजा को टालते नहीं। और सुमिरन करें, सेवा करते रहें, जरूर मालिक सबकी सुनता है और जरूर सुनेगा।

सवाल: कुछ डॉक्टर का सवाल है कि, गुरु जी, आप जी ने जो 7 से 9 डिजीटल फास्टिंग प्रण करवाया है, तो क्या सेवादार जो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सेवा कर रहे हैं कर सकते हैं और कुछ डॉक्टर्स को एमरजेंसी कॉल लेनी होती है और मैसेज लेने होते हैं। तो क्या वो कर सकते हैं?

जवाब: डॉक्टर साहेबानों को अगर एमरजेंसी कॉल लेनी होती है तो, सिर्फ एमरजेंसी ही कॉल ही लेनी है। उसके बहाने कुछ ओर नहीं लेना है। ये ध्यान रखें और जिनकी ड्यूटी है वो अगर उस टाईम में करते हैं तो कोई बात नहीं वो ड्यूटी करें। टाइमिंग आगे पीछे कर सकते हैं। ताकि परिवार को टाइम दिया जा सके।

सवाल: गुरु जी , बरनावा डेरे में भी ब्लड डॉनेशन कैंप लगाया जाए?

जवाब: जी, बहुत अच्छा सुझाव है, अगर जरूरत होगी तो, जिम्मेवारों से प्रार्थना करेंगे, कि परमिशन के तहत ये पॉसीबल है तो हो जाएगा। क्यों कि हम बिना परमिशन के तो कोई चीज करते नहीं। शुरू भी ऐसा ही था, आश्रम में ब्लड डोनेशन कैंप लगते थे, तो उनमें भी परमिशन, सफाई महाअभियान होते थे तो उनमें भी परमिशन ली जाती थी। तो भलाई के कामों के लिए जरूरी है परमिशन। ये तो बनता ही है। तो जिम्मेवार इस बारे बता देंगे उसके अकॉर्डिंग कर लेंगे।

सवाल: गुरु जी, कुछ लोग खांसते व छिकते समय मुंह नहीं ढांपते, जिससे इंफें शन फैलता है, ऐसे लोगों को कैसे समझाये?

जवाब: ऐसे लोगों को जो मुंह नहीं ढांपते, उनके सामने नकली छीक मारकर, हाथ मुंह पर रख लो, ताकि उन्हें कम से कम समझ आए कि छींक कैसे मारनी है। वैसे ये हमारे कल्चर का हिस्सा है। बह्मचार्य में ये भी सिखाया जाता था, कि आप को जब कभी थूकना भी पड़ जाए तो, असल में तो निगल जाओ क्योंकि वो टॉयलेट के रास्ते निकल जाना है। फिर भी अगर आपको थूकना भी पड़ जाए तो, ऐसी जगह जहां कचरे का स्थान हो, उसपर ही थूकें , तो हमें नहीं लगता लोग ऐसा करते हैं। दूसरा छींकना, झबाई लेना, अब कई तो मुंह फाड़-फाड़कर लेते रहते हैं, न हाथ करते हैं, चाहे अंदर बैठकर दांत गिन लो। उनको पता ही नहीं होता, क्योंकि नींद में होते हैं, कोई लेना देना नहीं। तो ये जरूरी है। हमने कई बार देखा है कि पीने वाले पानी में हाथ डूबोकर धोते रहेंगे, पेशाब करके आएं हैं, पानी एक जगह है वहां से अंजुली भरेंगे और हाथ धाएंगे। अरे भाई! तू पेशाब करके आया है, सबको क्यों पिला रहा है, क्यों उसमें हाथ डूबो दिया, वहां बर्तन भी पड़े रहते हैं

फिर भी नहीं, ऐसा करते हैं तो ये ठीक नहीं है। हमारे कल्चर में, हमारी सभ्यता में, पवित्र वेदों में साफ लिखा है कि ये सारी शिक्षा बह्मचर्य में सीखाई जाती थी, आज कोई ये सिखाता ही नहीं। तो मां बाप को चाहिये कि वो अपने बच्चों को सिखाया करें। छींक आती है तो बेटा हाथ आगे किया करो और झबाई आती है तो भी हाथ किया करो, खाच-खुजली करनी है तो साइट में हो सकते हैं और नेचर कॉल आती है तो साइट पर जा सकते हो, समझदार को ईशारा काफी है। सबके बीच में अच्छा नहीं होता, तो ज्यादा न बोले तो ठीक है। ये हमारी संस्कृति की देन है, सभ्यता है हमारी, इसलिए हमारी संस्कृति पूरे वर्ल्ड में नंबर-वन है।

सवाल: गुरु जी, क्या बेईमानी की कोई परिभाष होती है?

जवाब: बेईमानी अपने आप में बहुत बड़ी परिभाषा है। क्यों कि जो आदमी अपनी इमान पर नहीं रहता, धर्म पर, शिक्षा पर, संत, पीर, फकीर की नहीं मानता उसी का नाम बेईमान है। ईमान डगमगा गया तो वो कोई भी बेईमानी, ठगी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखौरी, कुछ भी कर सकता है। बहुत बड़ी परिभाषा है अगर देखा जाए तो। ईष्या, नफरत करना, ये भी उसी में शामिल है और चुगली निंदा भी।

सवाल: क्या गुरुमंत्र और गुरु एक ही हैं?

जवाब: गुरु वो होता है जो अज्ञानता रूपी अंधकार में ज्ञान का दीपक जला दे और गुुरुमंत्र वो होता है जो गुरु भगवान के शब्दों का जाप करे और फिर अपने शिष्यों को दें और ये कहें कि हम भी इंसान और आप भी इंसान हैं। अगर हमें इन शब्दों से भगवान की खुशियां मिली तो आपको क्यों नहीं मिलेगी। तो इसे गुरुमंत्र और गुरु एक ही चीज मानकर चलें। क्योंकि वो भगवान के शब्दों का जाप करता है और आपको भगवान के शब्दों का जाप करने की प्रेरणा देता है। तो गुरुमंत्र भगवान के शब्द, पर गुरु के बिना वो दिये नहीं जाते।

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