जानिए गुरु क्यों बनाना जरूरी है और गुरु बनाने से क्या होता है | Ram Rahim

Ram Rahim

बरनावा (सच कहूँ न्यूज) पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने (Ram Rahim) आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से रूहानी वचनों की वर्षा की। पूज्य गुरु जी ने फरमाया, शाह सतनाम जी धाम सरसा में बहुत बड़ी तादाद में साध-संगत बैठी है, आशीर्वाद, आशीर्वाद। इसके अलावा पूरे भारत में यूटयूब के माध्यम से साध संगत जुड़ी हुई है और जूम के माध्यम से जुड़े है, जो हमारे सामने स्क्रीनों पर है, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, यूपी, दिल्ली, महाराष्टÑ, मध्यप्रदेश, गोवा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ़, कर्नाटका के अलावा विदेशों में जो लाइव है कनाडा, अमेरिका हांगकांग, ओमान, आॅस्ट्रेलिया, सिंगापुर, इटली, जर्मनी, फिलिपिंस, स्वीडन, न्यूजीलैंड, नेपाल, मलेशिया, इंग्लैंड, सउदी अरब, जाबिया, कुवैत, दुबई, फ्रांस, यूएई, अबूधाबी, पूर्तगल, स्पेन जापान, मोरिसस, बहरीन और इस तरह 130 जगहों पर आज जूम के माध्यम से हमारे सामने स्क्रीनों पर आप लोग जुड़े हैं, तो आप सबको आशीर्वाद। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हम आपको बता रहे थे कि दो चीजें काफी देर से चली आ रही है, एक तो ब्रहमचार्य आश्रम जो हमारे पवित्र वेदो में बताया था और एक राम-नाम से कैसे फायदे है, क्यों लेना चाहिए राम का नाम, वो पवित्र नाम जो हमने खुद जाप किया, इससे सब कुछ मिला, जिससे कभी चेहरे से नूर नहीं जाता, कभी अंदर से सरूर नहीं जाता, चाहे दुनिया किधर से किधर हो जाए, ऐसी शक्ति है उस राम के नाम में और आज करोड़ो लोग उसे महसूस कर रहे हैं, 6 करोड़ के लगभग लोग नशा छोड़ चुके है, 70 प्रतिशत नौजवान है, तो ऐसा क्या है राम के नाम में क्यों जुड़े, पैसा है, बच्चे है, घर है, परिवार है, गाड़ियां है, बंगले है, बगीचे है, या ऐसा कुछ भी नहीं है, तो क्यों जुडेÞ, वो आपको बताने जा रहे हैं।

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गुरु कर्मयागी और ज्ञान योगी होता है | Ram Rahim

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि राम-का नाम, कैसे, कब, किस तरह असर करता है, जब आप सच्चे गुरु से मिलते हैं, गु का मतलब होता है अंधकार, रू का मतलब प्रकाश, गुरु का मतलब जो अज्ञानता रूपी अंधकार में, ज्ञान का दीपक जला दे और बदले में कुछ भी ना ले, वो सच्चा गुरु होता है। मंत्र, शब्द, तरीका, मैथड, युक्ति, गुरुमंत्र, गुरु मंत्र देता है, अपना नहीं, गुरुमंत्र का मतलब गुरु भगवान के जिन शब्दों का अभ्यास खुद करता है और कहता है, कि मुझे वो परम पिता परमात्मा के दर्शन हुए, मुझे उसके नजारे मिलते है, वो खुद उसका जाप करता है और फिर दूसरों को बताता है, अपने शिष्यों को कि भाई मैं भी इन्सान हूं आप भी इन्सान है, मैंने इन शब्दों का जाप किया, मुझे सब कुछ मिला, आप जाप करोगे आपको क्यों नहीं मिलेगा, जबकि मैं भी इन्सान हूं आप भी इन्सान है तो ऐसा गुरु मिल जाए, फिर गुरुमंत्र मिले, आगे है बात, गुरु को मानते है, गुरु की नहीं मानते कोई फायदा नहीं, गुरु को मानो, पर गुरु की उससे भी ज्यादा मानो, क्योंकि गुरु अपनी सेवा नहीं करवाता, वो गुरु नहीं होता, मेरे पांव दबा दे, मेरे हाथ दबा दे, मेरा सिर दबा दे, जी नहीं, गुरु कर्मयोगी होता है, हमारे पवित्र वेदों में लिखा है, गुरु कर्मयागी और ज्ञान योगी होता है। तभी वो दूसरों को कर्म करना सिखायेगा, तभी दूसरों को ज्ञान करना सिखाएगा, हमारा धर्मों में लिखा है, सभी धर्मों में, शुरूआत हिंदू धर्म से हम इसलिए करते हैं, क्योंकि पुरातन समय से कोई धर्म है तो ये ही है। सनातन कह लिजिए, पुरातन कह लिजिए, बात एक ही है, तो इसमें लिखा है, कर्मयोगी बनो और ज्ञानयोगी बनो। दोनों एक दूसरे के बिना अधुरे हैं, कर्म कर रहे हो, कर्म का ज्ञान नहीं, तो गलत कर्म कर जोओगे तो दूखी होते रहोगे। ज्ञानयोगी हो, कर्म नहीं करते, उस ज्ञान का बोझ ढोहने के अलावा कोई फायदा नहीं। आपको पता है धरती में पानी है। बाहर बैठके ज्ञान है आपको, धरती पे बैठ जाओ, बोलो निकल पानी बाहर तो क्या निकल आएगा। जी नहीं कर्म, पता है बोरिंग करानी पड़ेगी, मोटर डालनी पड़ेगी, यहां पानी है तो बाहर आ जाएगा, तो ज्ञान और कर्म, दोनों जब जुड़ जाते हैं, तो आदमी सम्पूर्ण हो जाता है।

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