जानें शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा की रोचक बातें…

परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज वाली दो जहान कुल मालिक जी ने सन् 1980 में यू.पी. प्रान्त में यह पहला आश्रम शाही दरबार स्थापित किया।

 सच्चे नाम का खूब प्रचार किया

डेरा सच्चा सौदा बरनावा, तहसील बड़ौत, जिला बागपत में बड़ौत-मेरठ सड़क पर बिनौली व बरनावा गांवों के बीच कृष्णा नदी के तट पर बिनौली गांव की तरफ स्थित है। परम पूजनीय परम पिताजी का यू.पी. की साध संगत पर महान उपकार परम पूजनीय परम संत मस्ताना जी महाराज ने सन् 1948 में डेरा सच्चा सौदा सरसा (हरियाणा) दरबार स्थापित करके सत्संग लगाना आरम्भ किया तो यहां पर राजस्थान बागड़ एरिया की ही संगत आया करती थी। ज्यों-ज्यों दुनिया सच्चाई को समझने लगी त्यों-त्यों दरबार में आने वाली साध संगत की संख्या भी बढ़ने लगी। परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने पंजाब, हरियाणा राजस्थान आदि प्रान्तों के अलावा यू.पी. प्रान्त के भी बहुत से गांवों व शहरों में अपने सत्संगों के द्वारा मालिक परमात्मा के सच्चे नाम का खूब प्रचार किया।

सच्चा सौदा दरबार में आने वाली साध-संगत की संख्या हजारों से बढ़कर लाखों में होने लगी। यू.पी. प्रान्त से भी बहुत संख्या में संगत प्रत्येक माहवारी सत्संग पर सरसा आया करती थी। इस प्रकार वहां की साध संगत के प्रबल प्रेम व भारी उत्साह को देखते हुए परम पूजनीय परम पिताजी ने उन्हें वहीं यू पी. में ही एक बड़ा शहनशाही दरबार बनाने का अन्दर से शुभ ख्याल दिया क्योंकि परम पूजनीय प्यारे दातार जी वहां की गरीब व अति गरीब साध-संगत के सच्चे प्रेम परन्तु मजबूरी के बारे में अकसर फरमाया करते, भाई! यू.पी. की गरीब साध संगत को इतना भारी किराया-भाड़ा आदि खर्च करके यहां सत्संग में आना पड़ता है और समय भी बहुत लगता है। कोई ऐसा विचार बनाते हैं कि हम स्वयं ही वहां पर चले जाया करेंगे, बेचारी साध संगत का बहुत खर्चा बच जाएगा।

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इस प्रकार परम दयालु दातार जी ने सन् 1974 से 5-6 वर्ष तक मेरठ बुलंदशहर, मुजफ्फर नगर आदि जिलों के बहुत से गांवों, कस्बों आदि में रात-दिन एक करके बहुत सत्संग लगाए इस प्रकार पूजनीय परम पिताजी ने अपनी साध संगत की सुख-सुविधा के लिए अपने सुख-आराम की भी कभी परवाह नहीं की । सन् 1976 की बात है। परम पूजनीय बेपरवाह जी ने वहां कुछ गांवों में सत्संग मन्जूर कर दिए। हालांकि आपजी का स्वास्थ्य कुछ दिनों से ठीक नहीं था और डॉक्टर साहिबानों ने पूरा आराम करने को कह रखा था परन्तु परम दयालु दातार जी ने निश्चित प्रोग्राम के अनुसार सभी सत्संग किए और जब पूज्य शहनशाह जी किशनपुरा बराल में पहुंचे तो उस समय 105 डिग्री बुखार था। हालांकि सेवादार व साधु-भाई सत्संग कैंसल कर देने के लिए बराबर प्रार्थना करते रहे परन्तु खुद खुदा मेहरबान दातार जी ने उस स्थिति 105 डिग्री बुखार में भी किशनपुरा बराल में बहुत प्रभावशाली सत्संग फरमाया। डेढ हजार से भी ऊपर नए जीवों को नाम-दान प्रदान किया। इस दौरान कुल मालिक प्यारे दातार जी के अनेक करिश्मामयी तथ्य भी देखने को मिले।

शायद सन् 1978 की बात है। परम दयालु परम पिताजी वहां पर (यू.पी. के अन्दर) कुछ गांवों में सत्संग करने के लिए पधारे। करीब 7-8 दिन का कार्यक्रम था। सुबह शाम रोजाना दो सत्संग निश्चित किए गए थे परन्तु प्रबन्धक भाइयों ने उस कार्यक्रम के दौरान एक दिन खाली छोड़ दिया। उससे पहले दिन भी केवल एक ही सत्संग (सुबह का) का कार्यक्रम निश्चित किया था। परम पूजनीय परम पिताजी को जब इस बात का पता चला कि सेवादार प्रबन्धक भाइयों ने अपनी सुविधा (नहाने व कपड़े आदि धोने) के लिए डेढ दिन खाली रख छोड़ा है तो सभी प्रबन्धकों को तुरंत बुला लिया। उस दिन शाम को भी सत्संग नहीं था और अगला दिन भी खाली था। वाली दो जहान दातार जी ने फरमाया, ‘‘बताओ बेटा ! अब डेढ़ दिन यहां पर खाली बैठकर क्या करेंगे? अब तो केवल दो दिन का ही कार्यक्रम और शेष था।

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उसके बाद दरबार में जाकर नहाना-धोना व आराम ही करना था ? खुद खुदा प्यारे दातार जी ने हुक्म फरमाया, ‘‘कल को भी सत्संग करेंगे, सत्संग का कार्यक्रम रखो।’’ अब सभी सेवादार भाई सोच में पड़ गए कि एक दिन से भी कम का समय बाकी बचा है। इतनी जल्दी किस गांव में सत्संग रखा जाए और वहां पर इतनी जल्दी कार्यक्रम भी कैसे संभव हो पाएगा ? अभी हम सेवादार भाई ऐसा कुछ सोच ही रहे थे कि सर्व-सामर्थ अन्तर्यामी दाता जी ने स्वयं फरमाया, ‘‘फलां सड़क पर फलों गांव के पास से जब भी अपने गुजरते हैं सड़क पर एक बीबी दूध की लुटिया लेकर खड़ी हुआ करती थी। वहीं से ही एक सड़क निकलती है। वहां जाओ और उस गांव में जाकर सुबह के सत्संग का प्रबन्ध करो।’’

यह भी एक अति दिलचस्प सच्चाई है। वह बहन गांव असावर जिला बुलंदशहर की रहने वाली श्री माम चन्द सूबेदार की पत्नी थी। मालिक-प्रभु अपने प्यारे मुर्शिद जी के प्रति उसके मन में सच्चा प्यार था, और अपनी उसी सच्ची श्रद्धा के अनुसार ही वह अपने प्यारे मुर्शिद कुल मालिक परम पिताजी के लिए दूध की एक लुटिया लेकर रोजाना सड़क पर खड़ी हो जाया करती क्योंकि उसे भी किसी तरह से पता चल गया था कि परम पूजनीय परम पिताजी दुनिया को तारने के लिए इस इलाके में पधारे हैं। उस दिन भी वह बहन रोजाना की तरह दूध की एक छोटी लुटिया लेकर खड़ी हुई थी। खुद-खुदा प्यारे दयालु दातार जी ने अचानक उसके नजदीक जाकर गाड़ी रुकवा ली। बहन अपने प्यारे खुदा के दर्शन करके बहुत खुश हुई। वाली दो जहान सच्चे दातार जी ने उसके सच्चे प्यार व सच्ची भावना को देखते हुए दूध की लुटिया स्वीकार कर ली और उसे अपने पावन आशीर्वाद के साथ बेअन्त खुशियां प्रदान कीं।

 

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अपने प्यारे खुदा जी के पावन निर्देशानुसार हम ठीक उसी स्थान पर पहुंचे। वहां असावर से दायीं तरफ की लिंक सड़क पर पहला गांव खंगावली है। धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा का नारा बोलकर हमने वहां पर सत्संग की तैयारी शुरू कर दी। केवल एक रात का समय ही बीच में था। उस थोड़े से समय में जो भी संभव हो सका, मालिक-दातार जी की दया मेहर से पूरी तैयारी हो गई। पूरे गांव में सत्संग की सूचना भी रातो-रात कर दी गई। गांव भी कोई बड़ा नहीं था। लगभग ढाई-तीन हजार की आबादी होगी। सत्संग हुआ तो लगभग पूरा गांव ही सत्संग में मौजूद था। सर्व-सामर्थ दातार जी ने वहां पर अपनी ऐसी रहमत बख़्शी कि 1600 नए जीवों को नाम-दान प्रदान किया। कुल मालिक जी के उस निराले खेल को देखकर हम सभी आश्चर्य में पड़ गए और इस सच्चाई को भी समझ गए कि मालिक अपनी रूहों को इसी तरह किसी न किसी बहाने अवश्य ही तार देता है।

आश्रम बनाना :-

इधर हम सभी भाई (यू.पी. साध-संगत के मुख्य प्रेमी भाई) भी परम पूजनीय परम पिताजी की पावन हजूरी में डेरा बनाने के लिए बराबर प्रार्थना करते रहे। यही प्रार्थना लेकर एक दिन हम कुछ भाई अपने प्यारे खुदा की पावन हजूरी में पेश हुए। उस समय प्यारे दातार जी दूसरे रविवार के सत्संग के लिए डेरा सच्चा सौदा मलोट, पंजाब में पधारे हुए थे लेकिन उससे पहले सच्चा सौदा दरबार के प्रबन्धक भाइयों के निर्देशानुसार हम लखनऊ तक भी जगह की तलाश कर चुके थे। जैसा कि सच्चे पातशाह दातार जी ने वचन फरमाया, ‘‘ऐसी जगह देखो, पक्की सड़क भी पास हो, पास में कोई नदी हो, और आगे भी खुली जगह हो, वहां पर डेरा बनाएंगे।’’ लेकिन ऐसी जगह हमें कहीं भी नहीं मिली। उस दिन खुद-खुदा दातार जी ने डेरे की मौजूदा जमीन के बारे स्वयं ही हुक्म फरमाया, बेटा ! बड़ौत मेरठ के बीच में जाकर कहीं देखो।’’ और हमें अपनी पावन रहमत का प्रसाद देकर जाने का हुक्म फरमाया।

डेरा सच्चा सौदा अब तो कोई शंका बाकी रह ही नहीं गई थी। हमने उस समय के दरबार के प्रबन्धक को भी अपने साथ ले लिया। वाली दो जहान प्यारे मुर्शिद जी के दिशा-निर्देशशानुसार जब हम कृष्णा नदी के पुल पर पहुंचे तो हमें प्यारे मुर्शिद जी द्वारा समझाई सभी निशानियां वहां पर दिखाई दीं। गाड़ी को उसी समय एक तरफ रोक लिया और उतर कर अच्छी तरह से जांच पड़ताल की। बिल्कुल वही जगह, वही स्थिति जैसा कि सच्चे पातशाह खुद-खुदा जी ने फरमाया था। जंगलात का खुला व स्वच्छ प्रदूषण रहित वातावरण, पास में पक्की सड़क व वही नदी का किनारा, आबादी व गांव से दूर, बिल्कुल बात जंच गई। दरबार के प्रबन्धक साधु भाई हमारे साथ ही थे। हमने उसी वक्त जमीन के मालिक से बात की और 18 बीघे जमीन पक्की कर ली। यह बात जून 1980 की है। उन्हीं दिनों वाली दो जहान पूजनीय परम पिताजी ने बिनौली तथा आस-पास के कुछ अन्य गांवों में सत्संग भी मन्जूर कर दिए थे।

बिनौली के सत्संग से पहले यानी 14 जून की रात को जो सत्संग हुआ था उस रात को हम पूजनीय शहनशाह जी से मिलना चाहते थे। जमीन के बारे अर्ज करना भी बहुत जरूरी था लेकिन हुक्म यह हो चुका था कि किसी ने कोई बात नहीं करनी। बैठकर सच्चे दिल से पांच मिनट स्ुामिरन करें। जो भी किसी की हार्दिक इच्छा और जो भी मांग है, मालिक – दातार जी स्वयं पूरी करेंगे। हमने भी सत्वचन कह कर अपने प्रीतम प्यारे मुर्शिद जी का हुक्म माना। बेशक उस दिन हम अपनी दिली भावना बोलकर अर्ज नहीं कर पाए लेकिन कहने को कुछ बाकी रह भी नहीं गया था। बाद में सच्चे पातशाह जी ने हम सब को अपनी हजूरी में बुलाकर बहुत खुशी दी और वहां पर डेरा बनाने की तैयारी आरम्भ करने का हुक्म फरमाया।

इसी तरह हमारे साथ किशनपुरा बराल तथा बड़ौत के कुछ अन्य भाई भी थे। वे भी बहुत तमन्ना लेकर बैठे हुए थे। कोई अपनी सन्तान के लिए चिंतित था और कोई अपनी कुछ अन्य गम्भीर समस्याओं के कारण दु:खी था। उन्होंने भी अपने मुर्शिद जी का हुक्म माना और उन सबकी समस्याओं का भी तुरंत समाधान हो गया। खुद- खुदा जी की रहमत को पाकर सभी बहन-भाई बहुत खुश थे।

अगले दिन 15 जून की रात का सत्संग बिनौली गांव का था। 15 जून को लगभग चार बजे परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज अपनी साध-संगत के बहुत बड़े काफिले के साथ डेरा सच्चा सौदा आश्रम बरनावा वाली जमीन में जा पधारे। वहां पर सेवादारों ने अपने प्यारे मुर्शिद जी के पधारने की खुशी में स्टेज सजा रखा था और डेरे की जमीन की सीमा पर झंडियां लगा रखी थीं। शहनशाह जी वहां पहुंचकर स्टेज पर विराजमान हो गए। दो घण्टे तक मजलिस का कार्यक्रम चलता रहा। शहनशाह जी ने स्टेज पर बैठे-बैठे ही साध-संगत में टॉफियां, आम आदि का प्रसाद फेंका। शहनशाह जी बहुत ही प्रसन्न थे। इसलिए साध-संगत की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था।

साध-संगत को खुशियां प्रदान करने के बाद परम पिताजी जहां पहले वाली गुफा है, उस जमीन में जाकर खड़े हो गए। काफी समय प्रबन्धकों से विचार-विमर्श करने के बाद फिर बाग वाली जमीन में चले गए। शहनशाह जी ने वहां पर काफी समय लगाया। बाग वाली जमीन के बाद परम पिताजी वापस गुफा वाली जगह पर आ गए। वहां पर कुछ समय रुकने के बाद शहनशाह जी अपनी कार में सवार होकर बिनौली गांव के सत्संग के लिए बिनौली चले गए। रात को बिनौली में सत्संग करने के बाद सारी संगत जो दूर-दूर से आई हुई थी, सभी को मिले और जाने की आज्ञा देकर आप डेरा सच्चा सौदा सरसा के लिए रात को ही रवाना हो गए।

आश्रम के निर्माण कार्य का शुभारंभ :-

परम पूजनीय परम पिताजी कुल मालिक पहली अक्तूबर 1980 को यहां पर पधारे और अपने पवित्र कर-कमलों से आश्रम का निर्माण कार्य आरम्भ करवाया। कुल मालिक जी के हुक्मानुसार सेवादार – भाइयों ने पहले जरूरत के अनुसार जमीन को फावड़ों (कसियों) से समतल किया और बिना नींव खोदे शहनशाही दो मंजिली गुफा तथा अन्य कुछ कमरों की चिनाई आरम्भ कर दी। सेवादारों व मिस्त्री भाइयों में बहुत भारी उत्साह देखने को मिला। अधिकतर सेवादार व मिस्त्री भाई पंजाब के ही रहने वाले थे। खुद- खुदा प्यारे मुर्शिद जी की दया मेहर से एक-एक सेवादार दस-दस आदमियों के बराबर काम कर रहा था। देखते ही देखते 4-5 घंटों में ही 6-7 कमरों की पहली मंजिल तक चारों तरफ की दीवारें पूरी कर ली गई थीं और दूसरी मंजिल का निमार्ण शुरू कर दिया गया था।

यानी पहले ही दिन शाम तक एक तरफ की दोनों मंजिलों की चारों दीवारों की? लगभग पूरी हो गई थी। दूसरी तरफ साथ-साथ मिट्टी की सेवा भी पूरी जोश से चल रही थी। हम तो सेवादारों को इतनी तेजी से सेवा करते देख कर ही आश्चर्यचकित थे। एक सैकिण्ड के लिए भी न तो सेवादारों का हाथ रुक रहा था और न ही फावड़ा रुक रहा था। यानी एक-एक सेवादार मिट्टी ढ़ोने वाली संगत के तसलों को इस तेजी से बराबर भरता जा रहा था कि किसी को आकर एक पल के लिए भी नहीं रुकना पड़ता था परम पूजनीय परम पिताजी के ठहरने व आराम करने के लिए घास-फूस आदि की एक छोटी सी झोंपड़ी बनाई गई थी लेकिन दिन में अधिकतर समय पूज्य शहनशाह जी बाहर सेवादारों में ही गुजारते।

उन दिनों पंजाब में ट्रक गाड़ियां की हड़ताल चल रही थी। दरबार के कुछ सेवादार भाइयों को मण्डी गोबिन्दगढ़ से गार्डर-सरिया आदि लेने के लिए भेजा गया था। जरूरत के अनुसार माल तो सारा खरीद लिया गया था परन्तु उठाने के लिए ट्रक आदि नहीं मिल रहा था। इधर बहुत इंतजार हो रही थी कि गार्डर आदि आएं और छतों का काम सम्पन्न हो। दूसरा दो मंजिली मिट्टी-गारे में बनाई नई दीवारों का तेज हवा के झोकों से वैसे ही गिरने का खतरा हो सकता था और पहली रात को ऐसा हो भी गया था। दो मंजिली दीवारों का कार्य अभी पूरा ही हुआ था कि अचानक तेज हवा चलनी शुरू हो गई और देखते ही देखते जबरदस्त अन्धेरी व तूफान का रूप धारण कर गई। मिट्टी-गारे की गीली दीवारें और हालांकि उन्हें कोई सहारा भी नहीं लगाया गया था, ऐसे हिलने लगीं जैसे वृक्ष की शाखाएं हवा में झूलती हैं। सेवादार भाई भी तेज अन्धेरी से बचने के लिए दीवारों की ओट में सो रहे थे।

हालांकि परम पूजनीय परम पिताजी के लिए बनाई गई झोंपड़ी के ऊपर लगाया गया शामियाना भी उस तेज अन्धेरी में उखड़ कर कहीं दूर जा गिरा और बांस-बल्लियां आदि भी उखड़ कर गिर गई लेकिन खुद-खुदा कुल मालिक जी ने अपनी रहमत से दीवारों का जरा भी नुकसान नहीं होने दिया। सतगुरु सर्व-सामर्थ है। मालिक – खुदा को अपने बच्चों का खुद फिक्र रहता है। हालांकि प्यारे मुर्शिद दातार जी तम्बू आदि उड़ जाने के कारण स्वयं तो अन्धेरी में रहे परन्तु अपने बच्चों को इस बात का बिल्कुल भी पता नहीं लगने दिया कि वे जिन गीली दीवारों की ओट लेकर पड़े हुए हैं, वे तेज अन्धेरी में गिर भी सकती थीं जबकि उस अन्धेरी में बड़े-बड़े व मजबूत वृक्ष भी उखड़ कर धराशाही हो गए थे।

पहले दिन सेवा आरम्भ करने से पहले परम पूजनीय खुद खुदा जी ने डेरे के लिए खरीदी गई बीघे 18 जमीन तथा इसके आसपास पड़ी जंगलात की जमीन पर अपनी पावन दृष्टि डाली और पवित्र मुख से वचन फरमाया, ‘‘ऐसे लगता है हम पहले भी यहां पर आए हैं।’’ वास्तव में हमें भी ऐसा ही महसूस हो रहा था क्योंकि प्यारे मुर्शिद जी ने जमीन पर ज्यों ही अपने पवित्र चरण टिकाए और घूम फिर कर थोड़ा चहल-कदमी की तो वहां की स्थिति तथा आस-पास के पेड़-पौधों के बारे में अपने आप में बहुत धीमी आवाज में कुछ न कुछ वचन कर रहे थे।

सच्चे पातशाह जी ने यहां पर रूहानी मजलिस लगाई। ‘अभी हमने जीअ भर के देखा नहीं है, यह कव्वाली बुलाई गई। कुल मालिक जी की ऐसी इलाही मस्ती छाई कि संगत तो नाच ही रही थी बल्कि पूरे का पूरा वातावरण भी उस खुदाई नूर को पाकर झूम उठा था। प्यारे खुदा जी ने खुशी में नाचती हुई साध-संगत व सेवादारों पर मुट्ठियां भर-भर कर टॉफियों का प्रसाद फेंका और इस प्रकार शहनशाह प्यारे दाता जी ने अपनी बेअंत व अथाह खुशियां लुटाई।

मालिक की कृपा से उसी रात गार्डर आदि पहुंच गए और सुबह कमरों पर चढ़ा कर दो मंजिली छतों के फर्में लगाकर सभी छतें पूरी कर दी गर्इं। इस प्रकार परम पूजनीय परम पिताजी ने स्वयं वहां पर रह कर कुछ ही दिनों में डेरे की निश्चित पहली योजना पूरी करवा दी। परम पूजनीय सर्व-सामर्थ दातार जी ने इस डेरे का नाम डेरा सच्चा सौदा आश्रम, बरनावा रख दिया। कुछ ही दिनों में उस सुनसान व डरावने जंगल में एक अति सुन्दर आलीशान शहनशाही दरबार बना देख कर दुनिया आश्चर्यचकित थी। उन दिनों उस इलाके भर में यह बात मशहूर हो गई थी कि सच्चा सौदा वाले भूत-प्रेतों से काम करवाते हैं। यानी इनके पास भूत हैं।

रात को उन्हें छोड़ देते हैं और वे रात-रात में ही कहीं से बने-बनाए मकान लाकर खड़े कर देते हैं। जो भी आदमी ऐसी बातें सुनता, वह देखने अवश्य आता और जब सेवादार बहन-भाइयों को सामूहिक रूप से तन-मन से सेवा करते देखता, तो धन्य-धन्य कह उठता क्योंकि क्या अमीर और क्या गरीब सभी बराबर सेवा कर रहे थे। बड़े-बड़े आॅफिसर साहिबान खुद व उनके बच्चे प्रत्येक समय बन्द कमरों व कूलरों में रहने वाले जिन्होंने कभी सिर पर दो किलोग्राम भार भी नहीं उठाया था (नौकर ही उनका सारा कार्य करते हैं।) वे अपने सिर पर मिट्टी की टोकरियां उठाते देखे गए। यहां तक कि कई ऐसी बहनों को न टोकरियां मिल पार्इं और न ही तसले क्योंकि सेवा करने वाली साध संगत अधिक संख्या में आई हुई थी तो कई बहनें मिट्टी अपनी साड़ी के पल्लू में ले जा रही थीं।

न उन्हें अपने नए वस्त्रों की चिन्ता थी कि ये खराब हो जाएंगे और न ही रेत-मिट्टी से उन्हें कोई घबराहट थी। इस प्रकार साध-संगत अपने मुर्शिद के हुक्मानुसार भाग-भाग कर सेवा कर रही थी। यह अद्भुत करिश्माई सच्चा दृश्य 5 जनवरी 1985 को सुबह देखने को मिला। उस माहवारी सत्संग पर रविवार को वार्षिक बड़ा भण्डारा मनाया गया था। इसलिए साध संगत शुक्रवार को ही आना शुरू हो गई थी। डेरे के अन्दर जो पहला सत्संग पंडाल था, वह साध संगत के भारी उत्साह को देखते हुए बहुत छोटा मालूम पड़ने लगा था। इसलिए वाली दो जहान सर्व सामर्थ दातार जी ने शुक्रवार को ही एक विशाल पंडाल का प्रबन्ध करने का आदेश फरमा दिया था। परम पूजनीय परम पिताजी ने उसी शाम को 7-8 बजे हमें अन्दर बुलाया और वचन फरमाया, ‘‘हमने गुरप्रीत सिंह ढोल वाले को कह दिया है कि सुबह चार बजे ढोल पर डग्गा मार देगा और संगत को बोल देवें कि चाय-पानी आदि पीकर सेवा में जुट जाएं। शाम की मजलिस हम नए पंडाल में ही करेंगे। ठीक तीन बजे हम स्टेज पर आ जाएंगे।’’

पंडाल वाली जगह पर बहुत गहरे गढ्ढे थे, जिन्हें भरना था। उनकी लम्बाई-चौड़ाई भी बहुत थी, वह कुछ घण्टों के अन्दर इतनी आसानी से होने वाला काम नहीं था। हुक्म था शाम को तीन बजे से पहले नए पंडाल में स्टेज सजा देनी है। इसलिए हमने (रांधी साहिब श्री गोरखी जी मुकीमपुरा वाले बरनावा के प्रधान जी आदि भाइयों ने) परम पिताजी से प्रार्थना की कि अगर आज्ञा फरमाएं तो यह काम शहर से मशीनरी मंगवा कर करवा देते हैं। लेकिन परम पूजनीय शहनशाह जी ने मशीनरी के लिए साफ इनकार कर दिया और पहले वाले वचन के अनुसार ही सेवा करने का हुक्म फरमाया। मालिक सतगुरु का काम मालिक स्वयं ही करता है। न तसला मिला तो वे अपने खेसों, कम्बलों व लोइयों में मिट्टी ले जा रहे थे और इसी प्रकार माता-बहनें जिन्हें टोकरी या तसला आदि नहीं मिल पाया था, वे अपनी साड़ियों के पल्लुओं में उसी तेजी से मिट्टी ले जा रही थीं, जिस तेजी से तसले टोकरियों वाली संगत सेवा कर रही थी।

इतनी भारी संख्या में साध-संगत और उधर से धूलभरी आंधी गुब्बार कि उठाने वाले बहने भाई तो नजर नहीं आते थे लेकिन उनकी टोकरियां और तसले ऐसे लगते थे मानो वे हवा में ही तैर रहे हों। धन्य हैं कुल मालिक पूजनीय परम पिताजी और धन्य हैं आपजी की प्यारी साध संगत। क्या बच्चे, बूढ़े और क्या जवान छोटे बच्चों वाली माता बहिनें जहां अपने बच्चों को गोद में लिए हुए थीं वहीं साथ ही टोकरी सिर पर रखे सेवा भी कर रही थीं। इसी प्रकार बूढ़ी माताएं भी क्यों पीछे रहतीं, वे भी सेवा करके अपने मुर्शिद प्यारे की खुशी हासिल कर रही थीं। कुल मालिक परम पूजनीय परम पिताजी स्वयं साध संगत पर अपनी पावन दृष्टि डालते हुए पवित्र वचनों से इलाही खुशियां बरसा रहे थे।

वह भी एक अलौकिक नजारा था। जो सचमुच ही देखने योग्य था। कुल मालिक की अपार रहमत से देखते ही देखते एक बहुत बड़ा लम्बा चौड़ा व शानदार सत्संग पंडाल तैयार हो गया। सत्संग की तैयारी आरम्भ हो गई। शहनशाही स्टेज सजा दी गई और सर्व-सामर्थ कुल मालिक प्यारे मुर्शिद जी ठीक तीन बजे आकर स्टेज पर विराजमान हो गए। खुद-खुदा मुर्शिदे-कामिल प्यारे परम पिताजी ने साध संगत को जो अपनी रहमतें व अलौकिक खुशियां प्रदान कीं, वे अकथनीय हैं और कहने-सुनने से परे हैं।

 

साध-संगत के दिन-प्रतिदिन बढ़ते उत्साह के आगे सब कुछ कम पड़ता मालूम पड़ा। साध-संगत के आराम करने के लिए पहले जो कुछ कमरे और जो एक दो बड़े-बड़े हाल बनाए थे और तथा नहाने-धोने आदि के लिए जो टूटियां फिट की गई थीं, सत्संग के समय कुछ भी पूरा नहीं पड़ता था। इसलिए वाली दो जहान दातार जी ने कमरों आदि की और अधिक सुविधा जुटाने का आदेश फरमाया। बस! फिर क्या देर थी? डेरे के दाहिनी ओर (बिनौली की तरफ) साथ लगती कुछ जमीन और खरीद ली गई। 1982-83 के दौरान तीसरी बार सेवा फिर आरम्भ हो गई। इस बार परम पिताजी 15-20 दिन तक स्वयं वहां पर रहे और 200 कमरों की अलग से एक तीन मंजिली अति सुन्दर बिल्डिंग का निर्माण करवाया। संयोजन से उन कमरों पर कुछ बड़े बड़े हाल कमरे भी हैं।

जिनमें सैकड़ों की संख्या में साध संगत आराम कर सकती है। इस नई बिल्डिंग के आगे एक खुला पडाल भी रखा गया है। जहां नाम के अधिकारी नए जीवों को नाम की दात प्रदान की जाती है। इसे नाम वाला पंडाल कहा जाता है। अब नाम दान सत्संग पंडाल में टेलीविजन लगा कर दिया जाता है। नाम-दान प्राप्त करने वाली हजारों की संख्या में आई हुई साध-संगत यहाँ पर बैठकर ही सत्संग सुनती है। इसके बाद तो कुल मालिक प्यारे दातार जी की हमारी (यू०पी० की) साध संगत पर बहुत जबरदस्त रहमत हुई। हमारी ज्यादातर साध-संगत बागपत, मेरठ, बुलन्दशहर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर आदि जिलों से आती है क्योंकि यू.पी. प्रान्त बहुत लम्बाई-चौड़ाई में दूर-दूर तक फैला हुआ है और सत्संग भी अभी तक लगभग इन्हीं जिलों के अन्दर ही हुए हैं। फिर भी यह बात पूरे दावे से कही जा सकती है कि पूरे प्रान्त के अन्दर हमारी साध-संगत की संख्या लगभग 9-10 लाख है जिनका हमारे पास रिकार्ड भी मौजूद है।

आश्रम कम्प्लैक्स में जो अन्य बिल्डिंगें हैं वे इस प्रकार हैं:-

लंगर घर :-

लंगर घर कम्पलैक्स 100*90 वर्ग फुट क्षेत्रफल में फैला हुआ है इसके अन्दर करीब 18 बड़ी तवीआं हैं जिनके ऊपर सत्संग वाले दिन (रात-दिन) लंगर पकता है और इसी प्रकार 11 भट्टियां हैं, जिन पर 5-6 क्विंटल की क्षमता वाले कड़ाहों के अन्दर दाल पकती है। सभी भट्ठियां व चूल्हे साफ सुथरे, प्रदूषण व धुआं रहित हैं। पकी हुई दाल को रखने के लिए 15.6′ लम्बा 9′ चौड़ा तथा 4-5 फुट ऊँचा साफ-सुथरा हौद बना हुआ है। राशन पानी आदि रखने के लिए इस बिल्डिंग में तीन कमरे बने हुए हैं। स्वच्छ पानी के लिए यहां पर एक अलग ट्यूबवैैल भी है। आधुनिक किस्म के इस साफ सुथरे लंगर घर का दृश्य सत्संग वाले दिन अति आकर्षक व देखने योग्य होता है।

जब हजारों की संख्या में माता-बहनें व सेवादार भाई सत्संग पर आई हुई लाखों की तादाद में साध-संगत के लिए बड़े-बड़े कड़ाहे भर-भर कर दाल तथा सैंकड़ों क्विंटल आटे का लंगर तैयार करते हैं।

माता-बहनों की कैंटीन :- डेरा सच्चा सौदा की पावन मर्यादा के अनुसार प्रेमी भाइयों व माता-बहनों के लिए जहां बैठने व आराम करने का अलग-अलग प्रबंध रहता है, वहीं लंगर व चाय पानी आदि के लिए भी अलग-अलग व्यवस्था की जाती है। आश्रम में माता-बहनों के लिए जो चाय-पानी आदि की कैंटीन बनाई गई है, उसकी लम्बाई 56 फुट व चौड़ाई 14 फुट है। कैंटीन में तीन कमरे बने हैं जहां सामान आदि रखा जाता है।

प्रेमी भाइयों की कैंटीन :-

इस कैंटीन में 31७11 वर्ग फुट लम्बाई-चौड़ाई के बरामदे के अलावा दो बड़े शैड भी बनाए गए हैं। एक शैड 140७28 वर्ग फुट का है और दूसरा 31.6७19.6′ का है। इन शैडों के अन्दर ही धुआं रहित भट्ठियां बनाई गई हैं जिन पर मिठाई, चाय-पानी व खाने-पीने का अन्य सामान पकाया जाता है। इस कैंटीन के साथ सात कमरे हैं जहां पर सामान आदि रखा जाता है।

साध संगत आवास:-

साध-संगत के आराम करने के लिए दो अलग अलग बिल्डिंगें बनी हैं। पहले वाली बिल्डिंग में 50*29′, 105′ *24 व 71*33′ के तीन हाल तथा 102 खुले कमरे और 3 बहुत लम्बे बरामदे हैं। इसी प्रकार आवास की नई बिल्डिंग में भी 168 काफी खुले कमरे साध-संगत के आराम करने के लिए बनाए गए हैं। यहां पर यह स्पष्ट किया जाता है कि सत्संग पर लाखों की संख्या में साध-संगत पहुंचती है। दोनों बिल्डिंगों के सभी कमरों में केवल माता-बहनें ही आराम करती हैं। प्रेमी भाइयों व शेष माता बहिनें जिन्हें कमरों में जगह नहीं मिल पाती उनके लिए अलग-अलग कई और बड़े-बड़े तम्बू व शामियाने आदि लगा दिए जाते हैं। यानी बाकी साध-संगत अलग-अलग टैंटों में ही आराम करती है। अब 200*200 वर्ग फुट का नया शैड भी बन गया है।

ट्रैफिक ग्राउंड :-

बड़ौत मेरठ रोड़ पर बड़ौत से जब हम 15 वें कि.मी. पर पहुंचते हैं तो हमें डेरा सच्चा सौदा आश्रम के दर्शन होते हैं। सड़क के बायीं ओर यह पावन दरबार है तो दूसरी ओर दाहिनी तरफ 5-6 एकड़ जमीन पर बना खुला ट्रैफिक ग्राउंड है। सत्संग व भंडारे के दिनों में ट्रैफिक ग्राउंड का दृश्य और भी आकर्षक दिखाई पड़ता है। एक तरफ कार-जीप आदि छोटी गाड़ियां क्रमानुसार लगाई जाती हैं तो दूसरी तरफ कैंटर, ट्रक, बसें व ट्रैक्टर-ट्रालियां अलग-अलग जिले के अनुसार लगाई जाती हैं ताकि साध-संगत को अपनी गाड़ी को तलाश करने में कोई परेशानी महसूस न हो। साइकिल व स्कूटरों आदि दो पहिया गाड़ियों के लिए स्टैंड अलग से बनाया जाता है। सत्संग पर आश्रम के सेवादार भाई हर समय सड़क पर काफी दूर दूर तक तैनात रहते हैं और संगत की गाड़ियों को संयोजन से ट्रैफिक ग्राउंड में बराबर लगवाते रहते हैं।

सत्संग पंडाल :-

आश्रम के अन्दर 760 फुट लम्बे तथा 404 फुट चौड़े सत्संग पंडाल की व्यवस्था की गई है परन्तु साध संगत के भारी उत्साह को देखते हुए यह पंडाल दिन प्रतिदिन छोटा पड़ता जा रहा है। हालांकि इस पंडाल को पहले से काफी बड़ा कर दिया गया है। पंडाल के अन्दर पीपल, जामुन आदि के करीब 384 पेड़ लगे हैं। ये पेड़ जहां गर्मी के दिनों में साध-संगत को छाया देते हैं वहां वातावरण को स्वच्छ, शुद्ध व प्रदूषण रहित रखने में सहायक हैं। इसके अलावा आश्रम में एक अति सुन्दर बाग भी लगाया गया है।

जिसमें अनार, केला, पपीता, अमरूद, आडू., आलू बुखारा, किन्नू, आम, जामुन, शहतूत आदि के फलदार पेड़ हैं। बढ़िया किस्म के अंगूर तथा बेरियों का अलग बाग है। खरबूजा, तरबूज आदि भी मौसम के अनुसार लगाए जाते हैं। इसके अलावा आश्रम में जो अन्य पेड़ लगाए गए हैं उनमें तून का पेड़, अशोक ड्राईजिसिया, बोतल ब्रुश, रबड़ प्लांट, पापुलरा, बड़ गुल्लर, शीशम, नीम आदि हैं। सुदर्शन, चम्पा, लैला-मजनूं आदि भी काफी संख्या में अपनी शोभा बनाए हुए हैं।

नर्सरी प्लांट :-

आश्रम के अन्दर रंग-बिरंगे फूलों का एक अति सुन्दर प्लांट भी लगाया गया है। प्लांट के अन्दर गुलाब की अलग अलग किस्में (देसी गुलाब, इंग्लिश गुलाब, सफेद गुलाब, गुलाबी गुलाब, मोतिया फल, रात की रानी, दिन का राजा, रजनी गंधा, बिगन बेल, गुलदावरी, चमेली, हार-श्रृंगार, कनेर, डबल- डेलिया, गलाई- डोला, कैलम डोला, आईस प्लांट, गुडहल, केली, गेंदा, जाफरी, लालिसटोगिया, कोचिया आदि भांति भांति के फूल वातावरण को सुगन्धि युक्त व शोभा बनाए हुए हैं। ऐसे हँसते, मुस्कराते फूलों को देखकर इन्सान खुश हो जाता है और उसका मुर्झाया हुआ चेहरा भी खिल उठता है।

फसलें व शाक सब्जियां आदि :-

डेरा सच्चा सौदा दरबार की आरम्भ से यह विशेषता रही है कि यहां पर किसी से दान-दक्षिणा या चंदा चढ़ावा आदि कुछ नहीं लिया जाता बल्कि हक- हलाल व मेहनत की कमाई की जाती है। दरबार के साधु व सेवादार भाई रोजाना 15-18 घण्टे काम करते हैं और इस प्रकार सख्त मेहनत से धरती में से सोना प्राप्त करने की कोशिश की जाती है। यानी सख्त मेहनत के द्वारा ज्यादा से ज्यादा पैदावार ली जाती है। यहां पर ज्यादातर अधिक आमदन देने वाली फसलें व सब्जियां ही लगाई जाती हैं जिन्हें बेचकर उसी से ही आश्रम का सारा खर्चा चलाया जाता है।

सब्जियों में :-

लगभग सारी सब्जियां जैसे आलू, मिर्च, गोभी, भिंडी, करेला, पेठा, हाथी चक जमीकंद, सेम, मूली, गाजर, टमाटर, मटर, तोरी, टीडा, घीया, कटहल, शलगम, बैंगन, लोबिया, खीरा आदि प्रसिद्ध हैं।

फसलों में :- गेहूं, चना, मक्का, बाजरा के अलावा अदरक, प्याज, मूंग, उड़द, बाकला, अरहर, हल्दी, जई, ज्वार, जौं, तिल, सरसों आदि फसलें भीअधिकतर पैदा की जाती हैं।

पानी का प्रबन्ध :-

आश्रम में आने वाली साध-संगत के पीने व नहाने धोने के लिए पानी का विशेष प्रबन्ध है। इस काम के लिए यहां पर 5 हैंड पम्प लगाए गए हैं और 6 नलकूप हैं। पेड़-पौधों व जमीन की सिंचाई भी इन्हीं नलकूपों के द्वारा ही की जाती है। एक ऐसा नलकूप भी है जिसका पानी गर्मी सर्दी में हर समय पूरा गर्म निकलता है। इसे गर्म पानी का नलकूप कहा जाता है। इस ट्यूब्वैल का पानी सर्दियों में भी इतना गर्म होता है कि नहाने के लिए उसमें कुछ ठण्डा पानी अवश्य मिलाना पड़ता है।

डेयरी फार्म :-

आश्रम में एक छोटा सा अपना ही डेयरी फार्म है। इसमें बढ़िया नस्ल की लगभग 14 भैंसे व 7 गायें हैं। इस प्रकार सांड व भैंसा मिलाकर कुल 24-25 पशु डेयरी फार्म में हैं। पशुओं को नहलाने के लिए अलग से एक छोटा सा तालाब बनाया गया है।

शहनशाही अनामी गुफा के दर्शन :-

आश्रम में शुरू-शुरू में परम पूजनीय परम पिताजी ने अपने लिए जो गुफा बनाई थी, वह आश्रम के मेन गेट के पास थी। अब क्योंकि साध संगत हर सत्संग पर लाखों की संख्या में आश्रम में पहुंचती है इसलिए साध संगत के बैठने व आराम करने के लिए और खुले पंडाल का प्रबन्ध करना जरूरी हो गया था। इसलिए परम पूजनीय हजूर महाराज जी ने पहली गुफा के नीचे सभी कमरों को साध-संगत के लिए खाली करवा दिया है और नई तेरावास सत्संग पंडाल के ऊपरी सिरे में पश्चिम की ओर बनवाई गई है।

शहनशाही गोल तेरावास ऐसे सुन्दर ढंग से बनाई गई है कि जब परम पूजनीय हजूर महाराज जी साध-संगत को दर्शन देने के लिए गुफा की खिड़की खोलते हैं तो समूह साध-संगत सत्संग पंडाल में बैठकर भी अपने मुर्शिद प्यारे के आसानी से दर्शन-दीदार कर लेती है। साफ व स्वच्छ वातावरण में बनी शहनशाही गुफा ने आश्रम की शान को सचमुच ही चार चांद लगा दिए हैं। तेरावास के सामने लगे मौलसरी के पेड़ से वहां का वातावरण और भी रंगीन नजर आता है।

Shah Satnam Ji Aashram, Barnawa

आश्रम बनने से पहले यहां पर सब जंगलात था। लोग दिन के समय में भी इधर आने से डरते थे। जंगली जानवरों के अलावा डकैती व लूटपाट की घटनाएं आमतौर पर सुनने में आती थीं । इलाका भर के लोगों का कहना है कि डेरा सच्चा सौदा वालों (परम पूजनीय परम पिताजी) ने यहां पर आश्रम बनाकर हमें भी आबाद कर दिया है। वर्षा होने पर पहले हम अपनी जमीन में बीज डाल आते थे, बस उसके बाद तो फिर जो भी थोड़ी-बहुत फसल होती, काटने ही जाया करते थे लेकिन अब उन लोगों ने आश्रम में लगाए गए नलकूपों को देखकर अपनी जमीनों में भी नलकूप लगा लिए हैं। अब वे हर समय अपने खेतों में ही रहते हैं। न अब उन्हें चोरी या डकैती का डर है और न ही अपनी फसल के उजड़ने का भय है क्योंकि आश्रम में लगभग हर रोज कोई न कोई सेवा चलती रहती है और आश्रम में रहने वाले साधु व सेवादार भाई लगभग हर समय प्रभु – परमात्मा की याद में जागते ही रहते हैं।

इस प्रकार यह डेरा सच्चा सौदा आश्रम इलाका भर के लोगों के लिए एक वरदान साबित हुआ है। आश्रम की शुभ स्थापना इलाका भर के लोगों के लिए जहां सुरक्षा व आर्थिक दृष्टिकोण से भी फायदेमंद साबित हुई है वहां आस-पास व दूर-दराज के लोग बहुत भारी संख्या में यहां पर आकर अल्लाह, राम, वाहिगुरु, परमात्मा, ॠङ्म,ि खुदा का यश प्रभु परमात्मा की भक्ति की सच्ची बात भी सुनते हैं। इसलिए आध्यात्मिक तौर पर भी परम पूजनीय परम पिताजी मुर्शिदे-कामिल और परम पूजनीय हजूर महाराज जी का यह पावन दरबार डेरा सच्चा सौदा आश्रम बरनावा (यू०पी०) जिज्ञासु जीवों के लिए सच्चा वरदान है।

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