भारत: हमारे पास जोश है, हम बदला लेंगे

India: We have a passion, we will take revenge

14फरवरी को प्रेम का दिन वेलेंटाइन डे था किंतु कश्मीर में यह प्रेम दिवस एक रक्त रंजित दिवस के रूप में देखने को मिला। यदि मैं युद्ध में मारा जाऊं तो मेरा शव कफन में बांधकर मेरे घर भेज देना मेरे पदकों को मेरे सीने में रखकर मेरी मां से कहना कि मैंने हर संभव प्रयास किया। मेरे राष्ट्र से कहना कि आंसू न बहाए क्योंकि मैं एक सिपाही हूं और मेरा जन्म ही मरने के लिए हुआ है। जब तुम घर जाओ तो उन्हें हमारे बारे में बताना और कहना हमने तुम्हारे कल के लिए अपना आज न्यौछावर कर दिया। ये पंक्तियां पुलवामा आतंकवादी हमले के सार को बताती हैं जिसमें 40 जवानों की निर्शंस हत्या की गई, उनके शव क्षत-विक्षत हो गए थे और बस के मलबे के साथ इधर-उधर फैल गए थे।

यह बस भी 78 वाहनों के उस काफिले का हिस्सा थी जिसमें सीआरपीएफ के 2500 जवानों को जम्मू से श्रीनगर ले जाया जा रहा था। यह हमारे सुरक्षा बलों पर अब तक का सबसे घातक हमला था। इस हमले में जैश-ए-मोहम्मद के कश्मीरी फिदायीन ने 300 किलो ग्राम विस्फोटक से भरी एसयूवी को बस से भिड़ाया और उसके बाद जो विस्फोट हुआ उससे सारा राष्ट्र हतप्रभ रह गया। यह पिछले दो दशकों में कश्मीर में सबसे भीषण आतंकवादी हमला था। इस हमले से गुस्साए भारत ने कहा कि हम इसे नहीं भूलेंगे और न ही माफ करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कठोर बातें की और रक्षा बलों को खुली छूट दी। वे जो उचित समझें कार्यवाही करें। उन्होंने कहा ‘लोगों का खून खौल रहा है, ये मैं समझ रहा हूं।’

हालांकि कश्मीर में पहले भी फिदायीन हमले होते रहे हैं किंतु इन नए कश्मीरी आतंकवांदियों को पुराने कश्मीरी आतंकवादियों के समान नहीं माना जा सकता है। पहले स्थानीय युवक आतंकवादियों की सहायता किया करते थे जिन्हें पाक स्थित आतंकवादी अड्डों से भारत भेजा जाता था। 2017 की गर्मियों में सेना द्वारा शुरू किए गए आॅपरेशन आॅल आउट के बाद आतंकवाद की घटनाएं बढ़ी हैं। यह आपरेशन आतंकवादियों के सफाए के लिए चलाया गया था। पुलवामा में हुए इस हमले से हमें समझना होगा कि कश्मीरी युवकों में कट्टरता भरी जा रही है। जिसके चलते आज कश्मीर के आतकंवादी प्रशिक्षण लेने हेतु युवकों को पाक अधिकृत कश्मीर में नहीं ले जाया जा रहा है अपितु जैश-ए-मोहम्मद ने प्रशिक्षण देने वालों को ही कश्मीर भेज दिया है।

सेना के अनुसार पिछले वर्ष 191 से अधिक स्थानीय युवक आतंकवादी गुटों में शामिल हुए और 2017 में उनकी संख्या 65 थी। हालांकि 2018 में 257 आतंकवादी मारे गए किंतु आतंकवादियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है और 250 से अधिक सक्रिय हैं जिनमें से 50 से अधिक अकेले पुलवामा से हैं। पुलवामा में पाक के जैश-ए-मोहम्मद के 15 आतंकवादी भी सक्रिय हंै। जिनमें से 3 आईईडी एक्पर्ट हैं। नई पीढ़ी के इन स्थानीय आतंकवादियों के लिए हिजबुल मुजाहिदीन का बुरहान वानी एक आदर्श था। कश्मीर के युवा निरंतर संघर्ष और हिंसा के बीच पले-बढ़े हंै इसलिए उनके मन से भय भी समाप्त हो गया है। वे कट्टरवादियों की स्वशासन की मांग के प्रति भी सजग रहते हैं और फिदायीन हमले करने वाले आतंकवादी का खूब गुणगान करते हैं। राष्ट्रीय या क्षेत्रीय नेताओं का वे कोई सम्मान नहीं करते हैं जिनमें हुर्रियत के गिलानी और मीरवाइज फारूख भी शामिल हैं।

पुलवामा की घटना बताती है कि पाकिस्तान भारत विरोधी आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए कितना गंभीर है। भारत निश्चित रूप से जैश-ए-मोहम्मद के आका मसूद अजहर और लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हफीज सईद के विरुद्ध कठोार कार्यवाही की मांग करेगा किंतु ये लोग अभी भी खुले घूम रहे हैं। यह आतंकवादी हमला पाकिस्तान सरकार, सेना और आईएसआई की सांठगांठ को भी दर्शाता है। भारत भूल जाता है कि हमारे पड़ोसी देश की मनोवृति सैनिक है जिसके चलते वह भारत को एक वैचारिक समस्या देखता है न कि केवल सैनिक समस्या और 1947 से ही पाकिस्तान का अस्तित्व भारत विरोधी भावना पर टिका हआ है। पाकिस्तान की ये सत्तारूढ़ त्रिमूर्ति सशस्त्र परंपराओं में डूब चुकी है और जिहादी तत्व उन्हें समर्थन देते हैं।

उनके लिए कश्मीर का मूल मुद्दा एक आस्था का विषय बन गया है। इसीलिए स्व0 जुल्फिकार अली भुट्टो ने कहा था कि वे भारत पर हजार घाव करेंगे। इस स्थिति में भारत हमेशा ही आतंकवादी संगठनों की दया पर निर्भर करेगा क्योंकि इन आतंकवादियों को अपने अगले हमले की समय और स्थान चुनने की स्वतंत्रता होगी। हमारे नेताओं को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि कुछ फिदायीनों की मौत से पाकिस्तान से काम कर रहे जिहादी या उनके आका इस जिहाद को रोकेंगे। वस्तुत: पाकिस्तान के कूटनयिक दृष्टि से अलग-थलग पड़ने के बावजूद वे हिंसा का खेल जारी रखेंगे। दूसरी ओर खुफिया तंत्र की विफलता के बारे में भारत सरकार को स्पष्टीकरण देना पड़ेगा। संघर्षरत क्षेत्र में इतने बडे पैमाने पर सैनिकों की एक साथ आवाजाही कैसे हो रही थी? क्या दक्षिण कश्मीर में 300 किग्रा विस्फोटक एकत्र करना इतना आसान है? 300 किलो विस्फोटक से भरे वाहन को इस काफिले के बीच आने कैसे दिया गया?

क्या घाटी में आतंकवादियों को स्थानीय लोगों का समर्थन बढ़ रहा है? हमारी सजग खुफिया एजेंसियां लगता है मिलकर काम नहीं कर रही हैं क्योंकि उनकी खुफिया जानकारी और समन्वय में अंतर है जो कि भारत की सुरक्षा हितों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। लगता है भारत ने पाकिस्तान के कारनामों से सबक नहीं सीखा है। भारत सरकार को अपने सैनिक खुफिया तंत्र साधनों और विवेक तथा संयम को बनाए रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि यह मामला भारत और पाक के बीच तक सीमित रहे। इसके लिए एक उपाय यह हो सकता है कि इज्रराइल की रक्षा सेनाओं की रणनीति अपनाई जाए जिसमें दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया जाता है। दंडात्मक कार्यवाही के भय से अगले हमले में समय लगेगा और दुश्मन की महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगेगा।

किसी भी रणनीति चाहे वह सीमित युद्ध हो या संघर्ष राष्ट्रीय इच्छा शक्ति, त्वरित कार्यवाही और सजग रहने की आवश्यकता होती हैं युद्ध के विकल्प के लिए हर राष्ट्र तैयार रहता है किंतु इसमें खतरा रहता है और उस खतरे से निपटने के लिए आपकी क्या तैयारियां हैं यह महत्वपूर्ण होता है। इसलिए आतंकवादी रोधी कार्यवाही की सफलता जैश-ए-मौहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा की क्षमताओं को समाप्त करने में निहित है और उन्हें अपने इरादों में बदलाव करने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए।

किसी भी आतंकवाद रोधी कार्यवाही की सफलता के लिए आवश्यक है कि बुनियादी तत्वों पर ध्यान दिया जाए और सभी विकल्पों पर विचार किया जाए। इस खेल में शक्ति का प्रदर्शन, युद्ध की बातें आदि तब तक चलती रहेंगी जब तक कश्मीर के मूल मुद्दे का समाधान नहीं किया जाता है और कुल मिलाकर भारत पाकिस्तान को नजरंदाज नहीं कर सकता है न ही पाकिस्तान भारत को एक मूक दर्शक बना सकता है। भारत को यह स्पष्ट करना होगा कि पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों को संरक्षण देना अस्वीकार्य है। उन्हें बाहर निकाल कर मारना होगा जैसा कि अमरीका ने एबोटाबाद में ओसामा बिन लादेन और भारत ने म्यांमार में एनएससीएन के आतंकवादियों को मार गिराया था।

हमारे नेताओं को खतरे की प्रकृति को समझना होग और स्थिति के अनुसार रणनीति अपनानी होगी। विदेश नीति, सैनिक नीति और रणनीति योजनाएं यकायक नहीं बनती हैं उसके लिए दीर्घकालिक नियोजन, कूटनीति आदि की आवश्यकता होती है। सैनिक टकराव तब तक नहीं टलेगा जब तक आतंकवाद का खात्मा नहीं होगा और तब तक मोदी हमें उस बारे में कोई विकल्प नहीं दे सकते हैं। नमो अच्छी तरह से जानते हंै कि इस ख्ोल में आगे रहना ही होगा। केवल उसी देश का अस्तित्व बचता है जो स्थिति का मुकाबला करता है, जो खतरे को भांपता है और उस खतरे को दुश्मन की ओर पलटा देता है ओर ऐसा समय रहते करता है। मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी को भी भारत पर हमले कर उस पर हजार घाव करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। क्या पाकिस्तान इस ओर ध्यान देगा?

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