1947 के विभाजन का दर्द-बुजुर्गों की जुबानी: तब तालाबों से मिट्टी लेकर बनाते थे प्राकृतिक वातानुकूलित मकान

natural air-conditioned houses were built by taking mud from ponds sachkahoon

निकट के गाँवों, कस्बों में ही होते थे बेटे-बेटियों के विवाह

  • ईश्वर चन्द बवेजा ने बयां किया हालात-ए-वक्त

सच कहूँ/संजय मेहरा, गुरुग्राम। भारत-पाकिस्तान विभाजन से पूर्व पाकिस्तान में लोग हिन्दू, सिख, मुसलमान सभी प्यार से रहते थे। एक-दूसरे के सुख-दु:ख में शामिल होते थे। कोई साम्प्रदायिक दंगे नहीं होते थे। अपने-अपने धर्म पर चलने, धर्म को मानने की पूरी आजादी थी। जैसे ही बंटवारे की आग लगी तो ना केवल दिलों में दरारें पड़ी, बल्कि पाकिस्तान को छोड़कर भारत आकर रहना पड़ा। बंटवारे के समय की इन सब बातों को सांझा किया ईश्वर चन्द बवेजा ने।

उन्होंने बताया कि तालाबों से मिट्टी निकाल कर मकान बनाते थे, जो वातानुकूलित का भी काम करते थे। बड़ी और ऊंची शिक्षा के अवसर कम ही थे। कॉलेज की पढ़ाई तहसील या जिलों में होती थी। महंगाई कम थी। पड़ोसियों और रिश्तेदारों में प्यार था। बड़ों का आदर था और लोग मर्यादा में रहते थे। सवारी और सामान लाने ले जाने में घोड़े, गधे और ऊंट काम में लाये जाते थे। बसें, रेलगाड़ियां बहुत कम थी। ईश्वर चन्द बवेजा के अनुसार शहर में दो या तीन वैद्य होते थे, जो नाड़ी देख कर ईलाज करते थे। घरों में दादी के नुस्खे चलते थे। दाईयां ही घर पर प्रसव कराती थी। हिन्दुओं की संख्या कम और आने-जाने के साधनों का अभाव होने से युवक-युवतियों के विवाह निकट के गावों या उसी शहर में ही जाते थे। रिश्ते बनाने में ज्योतिष गणना और आपसी आर्थिक स्थिति पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था। अभावों और कम साधनों के होते हुए भी आपसी सौहार्द के कारण लोग संतुष्ट थे।

शासकों के साथ प्रजा की भी हुई अदला-बदली

14-15 अगस्त रात्रि 1947 को देश के बंटवारे की घोषणा कर दी गई। उत्तरी भारत में पंजाब एक बहुत बड़ा प्रान्त था। वह क्षेत्र पाकिस्तान को मिला, पश्चिमी पंजाब के हिन्दू इधर हिंदुस्तान के उत्तरी क्षेत्र में आये और इधर से मुसलमान पाकिस्तान भेजे गये। इतिहास में पहला ऐसा अवसर था कि शासकों के साथ-साथ प्रजा की भी अदला-बदली हुई।

सबकी तलाशी लेकर आभूषण, पैसे छीन लिए गए

वहोबा कस्बे के रहने वाले ईश्वर चंद बवेजा बताते हैं कि उन्हें ट्रकों में भरकर जिला डेरा गाजी खान लाया गया। सारा सामान घर ही छोड़ आए थे। हुकूमत के फैसले के अनुसार उन सबको निकट के रेलवे स्टेशन मुजफ्फरगढ़ भेज दिया गया। वहां भेजने से पहले सबकी तलाशी लेकर पैसे और आभूषण ले लिए। दो-तीन दिन बाद मुजफ्फरगढ़ से रेल के डिब्बों में खचाखच भरकर हिंदुस्तान के लिए रवाना कर दिया गया। लुधियाना रेलवे स्टेशन पहुंचे तो चैन की सांस आई। कुछ दिन बाद निकट में जमालपुर गांव के कैंप में भेज दिया। वहां ढाई साल तक रहे। वहां राशन तो मिलता रहा, लेकिन बच्चे पढ़ाई से वंचित रहे। आखिरकार गुरुग्राम में पहुंचकर बुजुर्गों ने अपनी पीढ़ियों के गुजर-बसर को काम शुरू किये।

पाकिस्तान के रिकॉर्ड अनुसार मिली जमीन व मकान

ईश्वर चन्द बवेजा के अनुसार पाकिस्तान से हमारे मकान और जमीन के रिकार्ड आने पर अनुपात से उन्हें मकान और जमीन स्थाई रूप से दे दिए गये। अपने पैरों पर खड़े होने के लिए सभी छोटे-मोटे धंधों में लग गए। समय के साथ जीवन-स्तर में सुधार होने लगा। आज सब कुछ है। जीवन बेहतर जी रहे हैं।

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