तीन रियासतों से तीन माह तक चली लड़ाई की गवाह है लजवाना कलां की खूनी चौपाल

khooni-choopal

एक बेटी ने मार डाले थे किसानों का अपमान करने वाला तहसीलदार और 16 पुलिस वाले (khooni-choopal)

कर्मवीर जुलाना। क्षेत्र के गांव लजवानां कलां की चौपाल जोकि खूनी चौपाल के नाम से मशहूर है। यह चौपाल तीन रियासतों के साथ लड़ाई की गवाह है। घटना 1856 की है, जब सूखा पड़ा था और किसानों के पास लगान देने के लिए भी कुछ नहीं था तो तत्कालीन तहसीलदार कौरसेन पुलिस बल के साथ लगान वसूलने के लिए गांव में पहुंचे तो ग्रामीणों ने 16 पुलिसकर्मी और तहसीलदार को मौत के घाट उतार दिया था। यह पूरी घटना खूनी चौपाल में हुई थी।

किसान के ताने से भड़क गया था तहसीलदार

तहसीलदार कंडेला गांव में लगान लेने के लिए किसानों और नंबरदारों को लताड़ रहा था। एक किसान ने कहा कि ऐसे मर्द हो तो आओ ‘लजवाना’ जहां की धरती कटखानी है (अर्थात् मनुष्य को मारकर दम लेती है)। तहसीलदार ने इस ताने (व्यंग) को अपने पौरुष का अपमान समझा और उसने कंडेलों की चकबन्दी रोक, घोड़ी पर सवार हो लजवाना की तरफ कूच किया। लजवाना में पहुंच, चौपाल में चढ़, सब नम्बरदारों और ठौळेदारों को बुला उन्हें धमकाया। अकड़ने पर सबको सिरों से साफे उतारने का हुक्म दिया।

गांव वाले समझ गए थे आज भलार नहीं

नई विपत्ति को सिर पर देख नम्बरदारों और गांव के मुखिया, भूरा व निघांईया ने एक-दूसरे को देखा। आँखों ही आँखों में इशारा कर, चौपाल से उतर सीधे मौनी बाबा के मंदिर में (जो कि आज भी लजवाना गांव के पूर्व में एक बड़े तालाब के किनारे वृक्षों के बीच में अच्छी अवस्था में मौजूद है) पहुंचे और हाथ में पानी ले आपसी प्रतिशोध को भुला तहसीलदार के मुकाबले के लिए प्रतिज्ञा की। मन्दिर से दोनों हाथ में हाथ डाले भरे बाजार से चौपाल की तरफ चले। दोनों दुश्मनों को एक हुआ तथा हाथ में हाथ डाले जाते देख गांव वालों के मन आशंका से भर उठे और कहा कि आज भूरा निघांईया एक हो गये, भलार (भलाई) नहीं है।

निघांइया ने तहसीलदार को ललकारा

उधर तहसीलदार सब चौधरियों के साफे सिरों से उतरवा उन्हें धमका रहा था और भूरा तथा निघांईया को फौरन हाजिर करने के लिए जोर दे रहे था। चौकीदार ने रास्ते में ही पूरी बात बताई और तहसीलदार का जल्दी चौपाल में पहुंचने का आदेश भी कह सुनाया। चौपाल में चढ़ते ही निघांईया नम्बरदार ने तहसीलदार को ललकार कर कहा कि हाकिम साहब, साफे मर्दों के बंधे हैं, पेड़ के खुंडों (स्तूनों) पर नहीं, जब जिसका जी चाहा उतार लिया।

निशाना चूकने पर बालम कालिया ने बेटे को मारा ताना

तहसीलदार बाघ की तरह गुर्राया। दोनों ओर से विवाद बढ़ा। विवाद को लेकर बीच-बचाव करने के लिए कुछ आदमियों को बीच में आया देख भयभीत तहसीलदार प्राण रक्षा के लिए चौपाल से कूद पड़ोस के एक कच्चे घर में जा घुसा। वह घर बालम कालिया का था। भूरा, निघांईया और उनके साथियों ने घर का द्वार जा घेरा। घर को घिरा देख तहसीलदार बुखारी में घुस गया। बालम कालिया के बेटे ने तहसीलदार पर भाले से वार किया, पर उसका वार खाली गया। बेटे के वार को खाली जाता देख बालम कालिया साँप की तरह फुफकार उठा और बेटे को लक्ष्य करके कहने लगा, ‘‘जो जन्मा इस कालरी, मर्द बड़ा हडखाया। तेरे तैं यो कारज ना सध, तू बेड़वे का जाया।’’
अर्थात् जो इस लजवाने की धरती में पैदा होता है, वह मर्द बड़ा मर्दाना होता है। उसका वार कभी खाली नहीं जाता। तुझसे तहसीलदार का अन्त न होगा, क्योंकि तेरा जन्म यहां नहीं हुआ, तू बेड़वे में पैदा हुआ था। (बेड़वा लजवाना गांव से दस मील दक्षिण और कस्बा महम से पाँच मील उत्तर में है। अकाल के समय लजवाना के कुछ किसान भागकर बेड़वे आ रहे थे, यहीं पर बालम कालिए के उपरोक्त बेटे ने जन्म लिया था)।

‘सेर बाजरा झोली में 16 मारे भोली न।’

भाई को पिता द्वारा ताना देते देख बालम कालिए की लड़की भोली ने तहसीलदार को पकड़कर बाहर खींचकर बल्लम से मार डाला। तहसीलदार के साथ आए 16 पुलिसकर्मियों को भी लड़की ने मौत के घाट उतार दिया। तभी से गांव में एक कहावत है कि ‘सेर बाजरा झोली में 16 मारे भोली न।’

राजा ने फौज को दिया गाँव को खत्म करने का हुक्म

मातहतों द्वारा जब तहसीलदार के मारे जाने का समाचार महाराजा जीन्द को मिला तो उन्होंने लजवाना गाँव को तोड़ने का हुक्म फौज को दिया। उधर भूरा-निघांईया को भी महाराजा द्वारा गाँव तोड़े जाने की खबर मिल चुकी थी। उन्होंने राज-सैन्य से टक्कर लेने के लिए सब प्रबन्ध कर लिए थे। स्त्री-बच्चों को गांव से बाहर रिश्तेदारियों में भेज दिया गया। बूढ़ों की सलाह से गाँव में मोर्चे-बन्दी कायम की गई। इलाके की पंचायतों को सहायता के लिए चिट्ठी भेज दी गई। वट-वृक्षों के साथ लोहे के कढ़ाये बांध दिये गए, जिससे उन कढ़ाओं में बैठकर तोपची अपना बचाव कर सकें और राजा की फौज को नजदीक न आने दें। इलाके के सब गोलन्दाज लजवाने में आ इकट्ठे हुए। महाराजा जीन्द की फौज और भूरा-निघांईया की सरदारी में देहात निवासियों की यह लड़ाई छह महीने चली। गांव के चारों ओर खाई खोदी गई कि कोई भी बाहर का आदमी गांव में प्रवेश न कर सके।

महाराजा जीन्द को ब्रिटिश फौज की लेनी पड़ी थी मदद

जब महाराजा जीन्द (सरदार स्वरूप सिंह) किसी भी तरह विद्रोहियों पर काबू न पा सके तो उन्होंने नाभा और पटियाला रियासतों से मदद मांगी, लेकिन वो भी कामयाब नहीं हो पाए तो ब्रिटिश फौज को सहायता के लिए बुलाया। ब्रिटिश फौज का उस समय देश पर ऐसा आतंक छाया हुआ था कि तोपों के गोलों की मार से लजवाना चन्द दिनों में धराशायी कर दिया गया और लजवाना कलां गांव में से आस-पास के 7 गांव बने। स्वतंत्रता के बाद 1947 में सरदार पटेल ने रियासतें समाप्त कर दीं।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramlink din , YouTube  पर फॉलो करें।