Supreme Court: दिवालिया होने पर कौन चुकाएगा ऋण की रकम? जानें स्टीक जानकारी

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Supreme Court: दिवालिया होने पर कौन चुकाएगा ऋण की रकम? जानें स्टीक जानकारी

नई दिल्ली। Supreme Court: किसी व्यक्ति द्वारा संस्थान बैंक से लिए गए ऋण को चुका पाने चुकाने में जब असमर्थता जताता है तो उसे दिवालिया करार दे दिया जाता है। यह सुनने में तो बहुत ही आसान लग रहा है लेकिन जितना आसान लग रहा है उतना आसान नहीं है। दिवालिया होने की इस पूरी प्रक्रिया को सख्त कानूनी कार्रवाई से होकर गुजरना पड़ता है।

ऐसी स्थिति में जब व्यक्ति बैंक से लिया गए लोन को चुकाने में असमर्थता हो जाता है तो इसके लिए उस संस्थान या व्यक्ति को पहले कोर्ट में अर्जी देनी पड़ेगी, बाद में कोर्ट उस शख्स की दलीलों को सुनेगा और अगर शख्स द्वारा दी गई दलीलें अदालत को सही लगती हैं तो फिर शुरू कर दी जाती है उसे दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया और इस पूरी प्रक्रिया में 180 दिनों के करीब का समय लगता है। ऐसी स्थिति में जब व्यक्ति दिवालिया घोषित हो जाता है तो उस शख्स की संपत्ति जब्त कर ही ली जाती है। साथ ही जिस व्यक्ति ने लोन के समय उसकी गारंटी ली थी उस व्यक्ति पर भी कार्रवाई होती है। बता दें कि भारत में दिवाला और दिवालिया संहिता कानून 2016 में बना था जो हाल ही में आई एक याचिका से फिर चर्चाओं में आ गया है।

याचिका पर बहस? Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट में अभी हाल ही में दिवाला और दिवालियापन संहिता के महत्वपूर्ण प्रावधानों को चुनौती दी गई, जिसमें जो दिवाला घोषित किए गए वो याचिकाकर्ता उस व्यक्ति का गारंटर था, उसे अपना मामला पेश करने की अनुमति नहीं दी गई थी।

इस संबंध में बताया गया है कि व्यक्तिगत गारंटर वो होता है जो लोन लेने वाले व्यक्ति की गारंटी लेता है। इस अवस्था में जब लोन लेने वाला व्यक्ति दिवालिया होता है तो कार्रवाई गारंटर पर भी होती है। मामले में याचिकाकर्ता ने न्यायालय में ये तर्क दिया कि दिवाला और दिवालिया संहिता के चुनौती वाले हिस्से निष्पक्ष सिद्धांतों यानी न्याय प्रक्रिया का पालन नहीं करते हैं तथा संविधान के अनुच्छेद 21, 19(1)(जी) एवं 14 के तहत आजीविका, व्यापार और समानता के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों को प्रभावित करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट की दलील? Supreme Court

आईबीसी की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए न्यायालय ने इस केस की सुनवाई की, जिसमें व्यक्तिगत गारंटर के खिलाफ दिवालिया कार्रवाई की अनुमति भी शामिल थी। मामले में न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि धारा 95 और 100 को सिर्फ इसलिए असंवैधानिक नहीं माना जा सकता क्योंकि वो व्यक्तिगत गारंटरों को लेनदारों की दिवालिया संबंधी याचिकाओं से पहले सुनवाई का मौका नहीं देते। इसके साथ ही न्यायालय ने उन दावों को भी खारिज किया, जिनमें ये कहा गया था कि इन प्रावधानों में निष्पक्षता की कमी है या प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ है। न्यायालय के अनुसार निष्पक्षता का मूल्यांकन अलग-अलग मामलों में अलग-अलग तरह से किया जाना चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर भी सहमति जताई है कि ये कानून देनदारों की अपेक्षा उधार लिए गए रुपयों की रक्षा करते हैं।

प्रभाव? Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा दिवालिया संहिता कानून (आईबीसी) की रक्षा करते हुए गारंटरों के संबंध में लेनदारों के विश्वास में वृद्धि बताया। इसके अलावा ऋणदाता इस कानून के चलते दिवालिया घोषित किए गए व्यक्ति की गारंटरों पर भी कार्रवाई करने में अधिक सुरक्षित महसूस करेगा। इसके साथ ही यह निर्णय उन लोगों को भी सतर्क करेगा जो लोन लेने के लिए किसी संस्था या व्यक्ति की बिना सोचे समझे गारंटी लेते हैं।

दिवालियेपन की प्रक्रिया?

दिवालियापन के संबंध में बताया गया है कि यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें ऋण लेने वाला व्यक्ति अपना ऋण चुकाने में असमर्थ होता है। इसमें कोई विशेष राशि तय नहीं होती यदि कोई व्यक्ति ऋण लिए 500 रुपए भी चुकाने में असमर्थ है तो वह भी दिवालिया हो सकता है। अगर आप मुंबई, कोलकाता या चेन्नई निवासी हैं, तो आप प्रेसीडेंसी टाउन इन्सॉल्वेंसी अधिनियम, 1909 के अन्तर्गत आते हैं, वहीं भारत में अन्य सभी स्थानों के लिए प्रांतीय दिवाला अधिनियम 1920 के अन्तर्गत अपील दायर की जा सकती हैं। दोनों कानून समान हैं और आईबीसी द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने वाले हैं।

दिवालिया होने का आपका आवेदन जब स्वीकार कर लिया जाता है, तो आपकी संपत्ति अदालत द्वारा नियुक्त ‘‘रिसीवर’’ के पास सुरक्षित हो जाती है। यह अधिकारी तब आपकी संपत्ति को लेनदारों के बीच वितरित करता है, जब तक कि आपने जो समझौता प्रस्तावित किया है वो आपके लेनदारों और अदालत स्वीकार नहीं कर लेती। अगर एक बार यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो अदालत द्वारा ‘‘दिवालियापन से मुक्त’’ कर दिया जाता है, जिसके बाद आपको अपने पिछले लेनदारों परेशान नहीं कर पाएंगे और आप अपने जीवन को नए सिरे से जी सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ जब तक दिवालिएपन की कार्यवाई अदालत के समक्ष लंबित है, तब तक ऋण लेने वाला व्यक्ति अपने और अपने परिवार के अस्तित्व के लिए न्यूनतम रखरखाव राशि के लिए अदालत में आवेदन कर सकता है।

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