क्या पार्टी में बदलाव की लहर चलेगी?

Congress Party

सोनिया पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं। उनकी उम्र बढ रही है। राहुल अनिश्चित नेता हैं जिनमें विश्वसनीता का अभाव है और प्रियंका के साथ वाड्रा उपनाम जुडा हुआ है। वस्तुत: कांग्रेसी नेता गुपचुप रूप से सोनिया के इरादों पर हर कीमत पर अपने बेटे को बचाने की नीति पर प्रश्न उठा रहे हैं। पार्टी के प्रवक्ता ने कहा है कि 99.99 नेता राहुल को चाहते हैं फिर 100 प्रतिशत क्यों नहीं। ये 0.1 प्रतिशत नेता कौन हैं? इस पर विचार किया जाना चाहिए। दूसरा, इस समस्या के समाधान में कोई भी इस बात को महसूस नहीं कर रहा है कि समस्या का समाधान घर से ही किया जाना चाहिए।

राजनीतिक दिल्ली एक युद्ध का मैदान सा दिख रही है। किसानों के आंदोलन से लेकर राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं और एक दूसरे पर उंगली उठा रहे हैं। सरकार अपने रूख पर कायम है और विपक्ष को चुनौती दे रही है। इस संकट के बीच कांग्रेस की स्थिति बिल्कुल अलग है। पार्टी में चल रही सर्कस पर किस तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करें। पार्टी के 23 बागी नेताओं ने शनिवार को मां-बेटा सोनिया-राहुल से मुलाकात की। इससे पार्टी में हलचल और बढ गयीे है। इस मुलाकात के बाद यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि इससे पार्टी में व्यापक बदलाव आएंगे और पार्टी मरणासन्न अवस्था से पुर्नजीवित होगी तथा पार्टी में एक प्रभावी और पूर्णकालिक नेतृत्व होगा। पार्टी में सभी स्तरों पर स्वतंत्र, निपष्क्ष और लोकतांत्रकि चुनाव होंगे और एक संस्थागत नेतृत्व की स्थापना होगी जो पार्टी को सामुहिक रूप से मार्ग निर्देश देगा।

वर्तमान स्थिति को देखकर लगता है पार्टी को अंशकालिक, मध्यमकालिक और दीर्घकालिक राहत मिलने की संभावना नहीं है। विशेषकर इसलिएभी कि दो आम चुनावों में पार्टी की भारी हार और उसके बाद हाल ही में बिहार विधान सभा चुनावों में पार्टी की हार से नेताओं ने कोई सबक नहीं लिया है। पार्टी फिलहाल युद्ध बंधकों की पार्टी सी लगती है जो पराजित हैं, जिनका मनोबल टूटा हुआ है और जो एक सुदृढ विपक्ष के रूप में सरकार की जवाबदेही निर्धारित करने के बजाय अपने स्वर्णिम दिनों का रोना रो रही है। व्यावहारिक दृष्टि से देंखें तो पार्टी पर गांधी परिवार की पकड ढीली हो गई है।

प्रश्न उठता है कि एक ऐसे वातावरण में जहां पर सब कुछ पार्टी के विरुद्ध है, वह कैसे प्रासंंिगक बनीे रहे। धीरे-धीरे पार्टी अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है और उसके समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। पार्टी के नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, पार्टी में अनुशासनहीनता है, पार्टी के वरिष्ठ नेता नाराज हैं जिसके चलते बडेÞ-छोटे सभी नेताओं के बीच गतिरोध बना हुआ है। पुराने नेता अपना प्रभाव खोना नहीं चाहते हैं और राहुल ब्रिगेड पार्टी पर अपना वर्चस्व बढाना चाहती है। विभिन्न स्तरों पर यह समस्या स्वयं पैदा की गयी है और इसके लिए गांधी परिवार जिम्मेदार है।

वरिष्ठ नेता जैसे चिदंबरम, आजाद, आनंद शर्मा, सिब्बल, मोइली आदि पार्टी में अपना प्रभाव खोना नहीं चाहते हैं और वे युवा नेताओ को आगे आने देना नहीं चाहते हैं। एक युवा नेता के शब्दों में ये लोग हमें तब पार्टी का नेतृत्व करने का अवसर नहीं देंगे ताकि पार्टी आगे बढ़ सके। उनमें से अधिकतर आर्म चेयर, बुजुर्ग और थके हुए नेता हैं या कुछ ऐसे नेता हंै जो निष्ठा के कारण पार्टी में बने हुए हैं जिन्होंने कभी भी अपने बलबूते पर चुनाव नहीं लड़ा है। वे पार्टी कार्यकतार्ओं या मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर सकते हैं। परिणामस्वरूप वरिष्ठ नेता राहुल की इस चकडी की आलोचना करते हैं और एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं और कहते हैं कि वे नमो के हिंदुत्व और राष्ट्रवादी उत्साह का सामना नहीं कर सकते हैं।

लोक सभा में पार्टी के केवल 52 सदस्य हैं और राज्यों में भी पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं है। इसलिए कांग्रेसी नेता हमेशा गांधी पविार के गुलाम बने रहेंगे। अब पार्टी इस तरह का संगठन नहीं रह गया जिसमें विभिन्न तरह के विचार फल-फूल सकते हैं क्योंकि पार्टी में जमीन से जुडे और वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा हो रही है और उसका स्थान सामंती कार्यशैली, दृष्टिकोण तथा पाटी नेतृत्व को अन्नदाता मानने वाले चमचों ने ले लिया है जो पार्टी नेतृत्व की दया पर निर्भर करते हैं तथा पार्टी में फलफूल रही नामांकन की संस्कृति में वहीं नेता आगे बढते हैं जो निष्ठावान होते हैं। पार्टी में असहमति और बहस को धोखे के रूप में देखा जाता है।

विडंबना देखिए जहां एक ओर राहुल अपने नाना नेहरू की जयंती पर उनके भाईचारे, सामंतवादी समाज और आधुनिक दृष्टिकोण के मूल्यों का आह्वान करते हैं और सुझाव देते हैं कि पार्टी को इन मूल्यों को अपनाना चाहिए लेकिन उन्हें स्वयं इन नेहरू-गांधी आदर्शों को लागू करना चाहिए तथा पार्टी में विचारों की विविधता, खुली बहस, चर्चा आदि को स्थान देना चाहिए। 23 बागी नेताओं द्वारा सोनिया को लिखा गया पत्र इसका उदाहरण है। इस पत्र में इन नेताओं ने पार्टी के पूर्णकालिक अध्यक्ष, कांग्रेस कार्य समिति के चुनाव और पार्टी की स्थिति में सुधार के लिए व्यापक बदलावों की मांग की है। किंतु इस पत्र को गांधी खानदान के निष्ठावान नेताओं और जी हुजूरों ने धोखा कहा है। किंतु बिहार विधान सभा चुनावों के परिणाम पार्टी की स्थिति को दर्शा देते हैं और इससे पार्टी में मतभेद के स्वर और बढे हैं।

वर्ष 2015 के बिहार विधान सभा चुनावों में पार्टी ने 70 सीटों पर चुनाव लडा था और 27 सीटें जीती थी किंतु इस बार केवल 20 सीटें जीती हैं। यही नहीं राहुल ने बिहार में तीन दिन तक चुनाव प्रचार किया और तीन रैलियों को संबोधित किया। जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने पांच रैलियों को संबोधित किया और उसके बाद राहुल अपनी बहन प्रियंका के साथ शिमला में पिकनिक मनाने चले गए। वर्तमान स्थिति को देखते हुए लगता है कि पार्टी 2024 के आम चुनावों में भी सत्ता में वापसी नहीं करेगी। किंतु पार्टी कम से कम जमीनी स्तर पर काम करना शुरू कर सकती है। युवाओं को आगे बढने का मौका दे सकती है और संगठनात्मक चुनाव करवा सकती है और ऐसे निर्वाचित नेताओं को कांग्रेस कार्य समिति तक सभी स्तरों पर पदाधिकारी बना सकती है।

राहुल ने इस दिशा में सही कदम उठाया है कि उन्होंने पार्टी में प्राथमिक स्तर पर उम्मीदवारों के चयन और निर्णय लेने में विकेन्द्रीकरण की आश्यकता पर बल दिया है। वे बदलावों को लागू कर सकते हैं। अब पार्टी में उन्हें पुन: अध्यक्ष बनाए जाने की मांग की जा रही है। किंतु पार्टी चाहती है कि वह गांधी ब्रांड से जुडी रहे और यदि राहुल पुन: पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए सहमत होते हैं तो उन्हें दृढता के साथ पार्टी में सुधार शुरू करने चाहिए। उन्हें संगठनात्मक चुनावों से शुरूआत करनी चाहिए और हर स्तर पर निर्वाचित नेताओं को पदाधिकारी बनाना चाहिए। साथ ही पार्टी में युवा, महत्वाकांक्षी और पार्टी को जीत दिलाने के लिए उत्सुक नेताओं को महत्व दिया जाना चाहिए। साथ ही वरिष्ठ नेताओं को पार्टी के कार्यों से मुक्त कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निर्णय लेने में उनकी भूमिका न हो। यदि वे ये कदम नही उठाते हैं तो पार्टी के लिए मुश्किल होगी और यदि ऐसा करने में सफल रहते हैं तो 2024 के चुनावों में पार्टी के लिए कुछ आशा की किरण दिख सकती है।

कुल मिलाकर समय आ गया है कि अब कामचलाऊ कदम उठाने से काम नहीं चलेगा। जब तक मेहनत नहीं करेंगे तक तक सफलता नहीं मिलेगी। पार्टी को आत्मावलोकन करना पडेगा और आंतरिक विरोधाभासों को दूर करना होगा तथा पार्टी के नेताओं के बीच सौहार्द बनाने का प्रयास करना होगा। पार्टी को सोनिया-राहुल से परे देखकर इस समस्या का समाधान करना होगा क्योंकि कोई भी नेता चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो अपरिहार्य नहीं होता है।

                                                                                                             -पूनम आई कौशिश

 

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