किसान मुद्दों के हल की उम्मीद बनी कमेटी

Farmers Issues

आंदोलनरत किसानों के लिए उनके हकों की लड़ाई भले ही अब उनके हाथों से कानून के हाथों में पहुंच गई है परन्तु आगे जो भी फैसला होगा वह देश की भावी कृषि का चेहरा बनेगा, जिसे पूरे देश को समझना होगा और उसके अनुसार ही अपना भविष्य तय करना होगा।

उच्चतम न्यायालय ने कल किसानों द्वारा किसान विरोधी बताए जा रहे बिलों पर फिलहाल अस्थाई रोक लगाकर चार सदस्यीय कमेटी का गठन कर किसानों की पीड़ा को समझा है, भले ही सरकार हाल ही में पारित किसान बिलों पर पीछे नहीं हटना चाह रही थी। हालांकि किसान अभी तक संतुष्ट नहीं हैं। किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी, कॉन्ट्रैक्ट खेती को लागू नहीं करने एवं कॉर्पोरेट एवं किसानों के बीच खेती कॉन्ट्रैक्ट में विवाद होने पर कार्यकारी मजिस्ट्रेट के पास जाने को लेकर चिंतित हैं। किसानों की उक्त तीनों मांगों में आखरी मांग पर सरकार संशोधन पर सहमत हुई, बाकी की दो मांग पर सरकार पीछे नहीं हटी। यहां तक उच्चतम न्यायालय द्वारा जो कमेटी का गठन किया गया है, ऐसी कमेटी की कोशिश सरकार कर चुकी है, जिस पर किसानों को आशंका थी कि कमेटी ने अगर सरकार द्वारा पारित बिलों को स्वीकार लिया तो वह क्या करेंगे? किसानों का कमेटी पर भरोसा नहीं होना, अब उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित कमेटी पर भी हो सकता है।

परन्तु उच्चतम न्यायालय आंदोलन कर रहे किसान संगठनों को साफ कर चुका है कि उसके द्वारा बनाई गई कमेटी राजनीति नहीं बल्कि न्यायिक कार्यवाही का हिस्सा है। न्यायिक कार्यवाही का यहां सवाल आ जाता है तब किसानों को उसका सम्मान करना पड़ेगा। उच्चतम न्यायालय के फैसले में अब सरकार एवं किसानों में जो विवाद रहे हैं, उस पर सहमति बनानी होगी चूंकि न्यायिक प्रक्रिया से होकर निकले फैसलों को सरकार को भी मानना पड़ता है। अत: अब उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित कमेटी के समक्ष किसानों को अपनी चिंताओं को ठोस तरीके से रखना चाहिए ताकि उच्चतम न्यायालय किसी फैसले पर पहुंचने से पहले यह अच्छी तरह जान ले कि वास्तव में किसानों की तकलीफें क्या हैं? एवं किसानों की तकलीफ में कितनी सच्चाई है? यहां प्रश्न यह भी है कि सरकार ने जो भी कृषि बिल पास किये हैं आखिर वह देश की संसद के दोनों सदनों में बहुमत से पारित हैं और देश की संसद पूरे देश का प्रतिनिधित्व करती है। अत: पारित बिलों को पारित करना पूरे देश की बहुमत आबादी की इच्छा है।

यहां सवाल देश की इच्छा का आ जाता है, तब अगर कोई वर्ग नहीं भी सहमत तब उसे या तो सहमत होना पड़ेगा या बहुमत के निर्णय अनुसार अपना आप बदलना पड़ेगा। अभी किसान विरोध की वजह यही है कि देश का बहुमत कृषि व्यवस्था को बदलना चाहता है जबकि किसान कृषि व्यवस्था के पुराने ढांचे को ही रखना चाह रहा है। किसान को समझना होगा कि उसके पास निवेश नहीं है और बिना निवेश के भविष्य में आगे कृषि क्षेत्र का कायाकल्प नहीं हो सकता। उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति में हालांकि आंदोलनरत किसानों ने हिस्सा बनने से इन्कार कर दिया है, लेकिन अब किसानों को मान लेना चाहिए कि उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित कमेटी कानूनन किसानों की उम्मीद व आवाज बन चुकी है। आंदोलनरत किसानों के लिए उनके हकों की लड़ाई भले ही अब उनके हाथों से कानून के हाथों में पहुंच गई है परन्तु आगे जो भी फैसला होगा वह देश की भावी कृषि का चेहरा बनेगा, जिसे पूरे देश को समझना होगा और उसके अनुसार ही अपना भविष्य तय करना होगा।

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