दंगों की साजिश

Patiala Violence Case

देश लम्बे समय से शांत था, एकाएक एक वर्ग-विशेष एवं कतिपय राजनीतिक दलों को यह शांति, साम्प्रदायिक सौहार्द एवं अमन-चैन की स्थितियां रास नहीं आई और उन्होंने साम्प्रदायिक भाईचारे एवं सौहार्द को खंडित करने का सफल षड्यंत्र रच दिया। जहांगीरपुरी मामले में में टकराव और गिरफ्तारियां हो रही हैं। इसके अलावा अयोध्या की मस्जिदों में आपत्तिजनक वस्तुएं फेंक कर दंगे भड़काने की कोशिश की गई। ताजा मामला पंजाब के शहर पटियाला का है जहां दो विभिन्न संगठन हथियारों से लैस होकर आमने-सामने हो गए। यहां तक की पटियाला में कर्फ्यू लगाने की नौबत आ गई। उपरोक्त घटनाएं एक गंभीर संकेत दे रही हैं, जिन पर विचार करने के बाद ऐसा लगता है जैसे देश में कोई बड़ी साजिश काम कर रही है, जिसे हर हाल में नाकाम करना होगा। विदेशों में पनाह लेकर बैठे आतंकी भारत के नेताओं पर हमले करने की खुलकर धमकियां दे रहे हैं। कई संगठन तो मुख्यमंत्रियों के नाम तक लेकर धमकियां दे चुके हैं। इन परिस्थितियों में देश की सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क होने की आवश्यकता है।

पटियाला में भी हालात काबू में किए जा सकते थे, क्योंकि तनाव बढ़ने का कारण एक मार्च बना। मार्च निकालने की चर्चा शहर में कई दिनों से हो रही थी, लेकिन जब तक पुलिस के उच्च अधिकारी जागे, तब तक दोनों संगठनों के लोगों में टकराव काफी बढ़ चुका था। दिल्ली और उत्तर प्रदेश के हालातों से सबक लेकर पटियाला पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी कार्रवाई कर मामले को निपटा सकते थे लेकिन बात पटियाला के टकराव तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। पंजाब के साथ-साथ देश के सभी राज्य सरकारों, पुलिस और प्रशासन को रणनीति बनानी चाहिए। अब 2024 में लोक सभा चुनाव होंगे और कई राज्यों में भी विधान सभा चुनाव हैं। देश पहले ही दंगों की आग में झुलस चुका है। दंगों के मामलों में कहीं बड़ी पार्टियों के नेता अदालतों के चक्कर काट रहे हैं।

यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि सामाजिक उथल-पुथल देश की आर्थिक तरक्की को प्रभावित करती है। उत्तर भारतीय राज्यों के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण सांप्रदायिक तनाव रहा है। इसलिए सरकारों को ऐसे मामलों को गंभीरता से लेना चाहिए। राष्ट्रीय एकता-अखण्डता, साम्प्रदायिक सौहार्द एवं शांति-व्यवस्था को किसी भी जाति एवं धर्म का व्यक्ति आहत करे, उसकी निन्दा ही नहीं, कठोर कार्रवाई भी होनी चाहिए। ऐसी घटनाओं के प्रति न्यायालय जागरूक हो, उससे पहले समाज को जागरूक होना चाहिए। व्यक्तिगत, सामुदायिक व राष्ट्रीय उत्कर्ष में सहायक धार्मिक आयोजनों से भला किसी को क्यों गुरेज होगा, पर उन्हें सामाजिक भाईचारे और देश के विकास में बाधक बनने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट से पहले तो समाज को ही खड़ा होना चाहिए।

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