मर रही इन्सानियत के लिए संजीवनी है, परमात्मा का नाम

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सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि मालिक का नाम इस जलते-बलते भट्ठ इस कलियुग में आत्मा के लिए मृतसंजीवनी है। मर रही इन्सानियत, तड़प रही इन्सानियत को अगर कोई जिंदा रख सकता है तो वो है ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु का नाम। उस ईश्वर का नाम जिसने सारी सृष्टि को साजा है, उस मालिक का नाम जिसने सारी त्रिलोकी को बनाया है, सारी त्रिलोकियों को दोनों जहानों को बनाने वाला वह कण-कण में जर्रे-जर्रे में मौजूद है।

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि उस मालिक का नाम अगर इन्सान जपेगा, भक्ति-इबादत करेगा तो यकीनन इन्सान जीते-जी बहार जैसी जिंदगी जी पाएगा और मरणोपरांत आवागमन से मोक्ष मुक्ति हासिल करके परमपिता परमात्मा की गोद में जा समाएगा। इसलिए ईश्वर के नाम की भक्ति-इबादत अति जरूरी है।

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि ये घोर कलियुग का समय है, इसमें जब तक इन्सान मालिक को याद नहीं करता, उसकी भक्ति इबादत नहीं करता अंत:करण की मैल साफ नहीं होती और जब तक अंदर की मैल साफ नहीं होती संत, पीर-फकीर की कोई भी बात समझ नहीं आती।

जब इन्सान के अंदर मैल होती है, इन्सान के अंदर गलत विचार होते हैं तो वो गलत ही सोचता रहता है, अच्छी बात उसे भाती नहीं। संतों के वचनों को भी तरोड़-मरोड़ कर अपने हिसाब से लोग इस्तेमाल करते हैं जोकि बिल्कुल गलत है। ऐसा नहीं करना चाहिए। ये शैतान दिमाग का काम होता है। संतों के वचनों को जो कोई तरोड़-मरोड़ कर पेश करता है, वो दु:खी रहता है, गमगीन रहता है, रोगों का घर बन जाता है।

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