Reservation: मैं पिछड़ा हूँ, आप कौन?

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महाराष्ट्र में चल रहा आरक्षण तमाशा शिन्दे-फडनवीस-पवार सरकार के लिए बड़ी चुनौती

Reservation: पिछला सप्ताह भारत विश्व मंच पर छाया रहा और कैसे? स्पष्टत: जी 20 शिखर सम्मेलन सफल रहा तथा प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने संपूर्ण विश्व को झुका दिया किंतु सोमवार आते-आते हम पुराने ढर्रे पर पहुंच गए। भारत बनाम इंडिया पर विवाद जिसके लिए अगले सप्ताह संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है से लेकर महाराष्ट्र में चल रहे आरक्षण के बारे में जारी तमाशा शिन्दे-फडनवीस-पवार सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। Reservation

इससे पूर्व पुलिस ने हिंसक प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया। महाराष्ट्र के जालना जिले के अनजान से आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जारंगे जो पिछले दिनों से भूख हड़ताल पर हैं, उन्होंने मराठाओं के लिए आरक्षण की मांग में एक नया मोड़ दे दिया है कि उनहें कुनबी अर्थात अन्य पिछड़े वर्ग का दर्जा दिया जाए। यहां तक कि मुख्यमंत्री शिन्दे भी इस आरक्षण को देना चाहते हैं किंतु वे चाहते हैं कि इससे पहले इस मुद्दे की ठोस कानूनी समीक्षा की जाए और अन्य पिछड़े वर्गों और मराठाओं में किसी तरह का टकराव पैदा न किया जाए। Reservation

शिन्दे का सौभाग्य यह है कि विपक्षी दल मराठाओं के लिए आरक्षण का सम्मान करते हैं किंतु वे अन्य पिछड़े वर्ग के कोटे में सेंध लगाने से चिंतित हैं। राकांपा के शरद पवार चाहते हैं कि मराठाओं को आरक्षण देने के लिए उन्हें 15-16 प्रतिशत अतिरिक्त कोटा दिया जाए और यह शर्त रखी जाए कि अन्य पिछड़े वर्ग का कोटा प्रभावित न हो। यही बात कांगे्रस और ठाकरे की शिव सेना भी कहते हैं। वस्तुत: उन्होंने केन्द्र से आग्रह किया है कि वे आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाए तथापि जारंगे अपनी बात पर अड़े हुए हैं।

मराठा लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहे हैं | Reservation

नि:संदेह राज्य सरकार की दुविधा को समझा जा सकता है क्योंकि राजनीतिक दृष्टि से प्रभावशाली मराठा राज्य की जनसंख्या में 20 प्रतिशत से अधिक है तथा उनका सरकारी तथा अर्ध-सरकारी सेवाओं में बहुत कम प्रतिनिधित्व है अ‍ैर वे लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहे हैं। इसका दूरगामी प्रभाव हो सकता है। अन्य पिछड़े वर्गों के लिए नहीं अपितु यह उन्हें और अलग-थलग करेगा तथा राज्य की राजनीति में मराठाओं की पकड़ और मजबूत करेगा। आरक्षण औसत प्रतिभा की लागत पर नहीं दिया जाना चाहिए।

यह सच है कि मराठाओं की इस नई राजनीतिक आकांक्षाओं का संज्ञान न लेना आत्मघाती होगा किंतु जातीय आधार पर राजनीतिक सत्ता का खेल करना खतरनाक है। निश्चित रूप से सामाजिक न्याय वांछनीय और प्रशंसनीय लक्ष्य है। इसके अलावा सरकार कानून उद्देश्य लोगों को शिक्षित करना और उन्हें समान अवसर तथा जीवन की बेहतर गुणवत्ता प्रदान करना है। तथापि भारत की स्वतंत्रता के बाद के 70 वर्षों में पता चलता है कि आरक्षण प्रदान करने के लिए बनाए गए किसी भी कानून से किसी भी वर्ग, जाति, उपजाति और वंचित वर्ग का उत्थान नहीं हुआ है। उनमें से केवल कुछ लोगों को रोजगार और शैक्षणिक सस्थानों में प्रवेश ही मिल पाया है। Reservation

लोगों के उत्थान का एकमात्र रामबाण आरक्षण नहीं है तथा झूठे आधारों पर विभिन्न वर्गों के बीच प्रतिस्पर्धा पैदा करना खतरनाक है कि यह दलित वंचित लोगों का उत्थान करेगा। वस्तुत: इससे पीड़ित और झूठे विजेता पैदा हुए हैं जहां पर केवल जन्म के आधार पर यह तय किया जाता है कि यह विजेता है या हारने वाला है जो गरीब पैदा हुए हैं वे कष्ट सह रहे हैं और जो उच्च जातियों में पैदा हुए हैं वे विजेता हैं। Reservation

क्या आरक्षण भारत के सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखने का समाधान है

इस बात का अध्ययन करने का कोई प्रयास नहीं किया गया कि क्या आरक्षण मिलने के बाद उन लोगों के मनोबल को बढ़ाने के लिए कोई प्रयास किया गया है जिन्हें आरक्षण दिया गया है ताकि उन्हें मुख्यधारा में लाया जा सके जो इस बात को रेखांकित करता है कि कोटा इस बात का समाधान नहीं करता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में क्या खामी है या यह जीवन की बेहतर गुणवत्ता प्रदान नहीं करता है। प्रश्न उठता है कि क्या आरक्षण अपने आप में एक साध्य है।

बिल्कुल नहीं। क्या कभी इस बात का आकलन किया गया है कि जिन लोगों को आरक्षण दिया गया है उन्हें लाभ हुआ है या हानि हुई है। बिल्कुल नहीं। क्या आरक्षण भारत के सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखने का समाधान है? बिल्कुल नहीं क्योंकि यह लोगों में मतभेद पैदा करता है और राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाता है। क्या यह बात समझ में आती है कि इंजीनियंरिग में 90 प्रतिशत लाने वाला कोई छात्र दवाई बेचता है जबकि 40 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाला दलितत डॉक्टर बन जाता है और इन सब का कारण आरक्षण है। Reservation

2023 का भारत 1989 का भारत नहीं है जब 18 वर्षीय छात्र राजीव गोस्वामी ने सार्वजनिक रूप से स्वयं को आग लगा दी थी। उस समय राजनेताओं द्वारा उत्पन्न मंडल आग उन्हें ही सताने लगी है। हमारे नेतागणों को समझना होगा कि वे आज जनरेशन एक्स और जनरेशन वाई का सामना कर रहे हैं और जिनकी जनसंख्या 50 र्प्रतिशत से अधिक है और वे कार्यवाही में विश्वास करते हैं न कि प्रतिक्रिया में। वे भीड़भाड़ भरे रोजगार बाजार में गुणवत्ता के आधार पर रोजगार की मांग करते हैं जहां पर श्रम शक्ति में प्रति वर्ष 3 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है और रोजगार में केवल 2.3 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है जिसके चलते बेरोजगारी 7.1 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है।

रोजगार बाजार में प्रति वर्ष ड़ेढ करोड़ नए लोग प्रवेश कर रहे | Reservation

मोदी सरकार द्वारा हाल ही में संयुक्त सचिव के 10 पदों के दिए गए विज्ञापन के प्रत्युत्तर में 7 हजार से अधिक लोग आवेदन करते हैं। किसी ने भी इस बात पर विचार नहीं किया कि रोजगार बाजार में प्रवेश कर रहे नए लोगों को रोजगार देने की चुनौती का कैसे सामना किया जाए। रोजगार बाजार में प्रति वर्ष ड़ेढ करोड़ नए लोग प्रवेश कर रहे हैं और ऐसी स्थिति में आरक्षण कहां फिट बैठता है। आरक्षण का दायरा निरंतर बढ़ाना व्यावहारिक नहीं है।

सामाजिक रूप से प्रभावशाली समूह हमेशा आरक्षण प्राप्त करने के लिए आंदोलन करते रहेंगे और जिसके चलते सभी लोगों को अच्छी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए यह अदूरदर्शी उपाय अपनाया जाता है और इसके चलते विभिन्न समूहों की पहचान का मुद्दा और बढ़ जाता है। फलत: ऐसी स्थिति बन गयी है जहां पर चुनावी सत्ता की राजनीति के चलते संख्या की दृष्टि से प्रभावशाली समूह अन्य समूहों की कीमत पर लाभ प्राप्त करता है। Reservation

अन्याय तब बढ़ता है जब समान लोगों के साथ असमान व्यवहार किया जाता है और तब भी बढ़ता है जब असमान लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाता है। इसके दो उदाहरण हैं। शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलत है कि आईआईटी से 48 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के छात्रों ने पढ़ाई बीच में छोड़ दी और आईआईएम से ऐसे छात्र 62 प्रतिशत थे क्योंकि उन्हें ये पाठ्यक्रम बहुत कठिन लगे।

असमानताएं हैं और उन्हें दूर किया जाना चाहिए | Reservation

आईआईटी गोहाटी का रिकार्ड बहुत खराब है। उसके बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले 25 छात्रों में से 88 प्रतिशत आरक्षित वर्ग के हैं। उसके बाद आईआईटी दिल्ली का स्थान है जहां पर ऐसे छात्रों की संख्या 76 प्रतिशत है। देश के 23 आईआईटी के 6043 शिक्षकों में से 149 अनुसूचित जाति, 21 अनुसूचित जनजाति के थे जो उन शिक्षकों में से थे जिनकी संख्या 3 प्रतिशत से कम है तथा 40 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में से अधिकतर में अन्य पिछड़े वर्गों के शिक्षक न के बराबर हैं।

हमारे नेताओं को इस बात को स्वीकार करना होगा कि असमानताएं हैं और उन्हें दूर किया जाना चाहिए। केवल शिक्षा में आरक्षण देने से या रोजगार में आरक्षण देने से उत्कृष्टता नहीं आएगी। उन्हें नए प्रयोग करने होंगे जिसके चलते वे शिक्षा और रोजगार में परीक्षाओं को पास करे और वे सामान्य श्रेणी के छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करे। हमारे नेताओं के लिए आवश्यक है कि वे सभी लोगों के लिए समान अवसर प्रदान करे क्योंकि आरक्षण विभाजनकारी है। समय आ गया है कि केन्द्र और राज्य सरकारें संपूर्ण आरक्षण नीति पर पुनर्विचार करे और उसे पुनर्निर्धारित करें और उसे आंख मूंदकर लागू न करें अन्यथा भारत शीघ्र ही अक्षम और औसत दर्जे के लोगों का देश बन जाएगा। Reservation

पूनम आई कौशिश, वरिष्ठ लेखिका एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
(यह लेखिका के अपने विचार हैं)

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