मुझे नहीं पता था कि हाकी होती क्या है: सविता पूनिया

  • भारतीय हाकी टीम की कप्तान सविता पूनिया पत्रकारों से हुई रूबरू

  • रेलवे ने किया भारतीय हाकी टीम की कप्तान का स्वागत

सरसा। (सच कहूँ/सुनील वर्मा) भारतीय हाकी टीम की कप्तान सविता पूनिया ने कहा कि जब उसने खेलना शुरू किया था तो उसे किसी भी खेल की कोई नालेज नहीं थी और शुरूआत में मुझे पता भी नहीं था कि हाकी होती क्या है। मुझे कोई भी गेम्स पसंद नहीं था। लेकिन गेम खिलाने के लिए परिवार ने निर्णय लिया। स्पेशल मेरे दादा रणजीत सिंह चाहते थे कि मैं हाकी खेलूं। पूरे परिवार ने खेल के प्रति प्रेरित किया और खेलने के लिए भेजा। साथ ही हमेशा हर समय साथ खड़े रहे। यह बात सविता पूनिया ने सोमवार को रेलवे स्टेशन पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कही। रेलवे विभाग के टीआई अजय गौतम, स्टेशन मास्टर नरेंद्र कुमार, रेलवे के चीफ बुकिंग सुपरवाइजर उमेश कुमार वर्मा व वालीबाल कोच मुकेश कासनियां ने रेलवे स्टेशन पर पहुंचने पर स्वागत किया।

इतने सालों से टीम में बना रहना आसान नहीं

भारतीय महिला हाकी टीम की कप्तान सविता पूनिया ने कहा कि अब जिस मुकाम पर हूं, उस तक पहुंचने के लिए बहुत साल की मेहनत है। 2003 में हाकी खेलना शुरू किया था और 2007 से भारतीय टीम का हिस्सा हूं। टीम में इतने सालों से बना रहना छोटी बात नहीं है। इसके लिए हर दिन बहुत मेहनत करनी पड़ती है। हमारी टीम और कोच बहुत अच्छे है। भारतीय महिला हाकी टीम को बुलंदियों पर पहुंचाने में कोच जेनेके शॉपमैन की विशेष भूमिका है। क्योंकि वो खुद एक ओलंपियन मेडलिस्ट है। टारगेट है जिसको अचीव करने के लिए कोई भी एक्सयूज नहीं है हमारे पास। प्रतिदिन बहुत हार्डवर्क करना पड़ता है। सविता ने कहा कि स्पोट्र्स के कारण उसे जीतनी सफलता मिली है उतनी अच्छी पढ़ लिखकर और जॉब करके भी शायद नहीं मिलती। इसलिए अगर आज मैं किसी की प्रेरणा बन रही हूँ तो यह मेरे लिए भी खुशी की बात है। सविता ने कहा कि मुझे जहां पर बुलाया जाता है, मेरी कोशिश रहती है कि मैं वहां जरूर जाऊ। अगर जिस कार्यक्रम में मैं जाती हँू वहां अगर एक भी लड़की इंस्पायर होकर अपना लक्ष्य बना लेती है कि मुझे उन(सविता) जैसा बनना है तो यह मेरे लिए बहुत खुशी की बात है।

परिवार ने बहुत साथ दिया

सविता पूनिया ने कहा कि कोचिच ने मेरा बहुत साथ दिया, सही रास्ता दिखाया। लेकिन लाइफ बहुत बार ऐसे मौके आए जब मेरी सर्जरी हुई या संघर्ष का टाइम आया तो परिवार ने मेरा बहुत साथ दिया। सविता ने कहा कि जब वह गेम्स नहीं भी खेलती थी तो उसे खुशी होती थी कि हां मैं लड़की हूं। हमारे घर में लड़कियों को बहुत इंपोर्टेंस दी जाती है। पेरेंटस को अपने बच्चों का पूरा साथ देना चाहिए। क्योंकि बेटा-बेटियां दोनों बराबर है। बच्चों को भी अपना लक्ष्य बनाकर कड़ी मेहनत करनी चाहिए। सविता ने कहा कि जब उसने खेलना शुरू किया था तो उनके गांव में कोई लड़की नहीं खेलती थी। लेकिन धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव आने लगा है और लड़कियां आगे आने लगी है। आज के समय में एजुकेशन बहुत जरूरी है। हर एक घर में एजुकेशन होगी तो पता चलेगा कि बेटा-बेटी दोनों बराबर है। आज देश में चाहे बेटा है या बेटी है और वो चाहे किसी भी फील्ड में है, स्पोट्र्स में है या किसी अन्य फील्ड में है। बराबर काम कर रहे है।

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