भारत की दोहरी शांति सिद्धांत का बजा डंका

Peace Doctrine

तजाकिस्तान की राजधानी दुशांबे में अफगानिस्तान में शांति को लेकर हुई ‘हर्ट आॅफ एशिया’ की बैठक में भारत का डंका बजा। भारत ने जो तर्क दिये और रास्ते सुझाये, उसकी दुनिया की कूटनीति में मील का पत्थर माना जा रहा है। भारत के सुझाये रास्ते पर अफगानिस्तान में शांति आ सकती है, अफगानिस्तान में जारी हिंसा समाप्त हो सकती है, पाकिस्तान की आतंकवादी नीति और अफगानिस्तान को अपना गुलाम समझने वाली बर्बर व घृणित मानसिकताएं दफन होंगी, अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों के सैनिकों को अफगानिस्तान से निकलने का अवसर प्राप्त होगा, अमेरिका और यूरोप को अपनी अर्थव्यवस्था विध्वंस की कीमत पर अफगानिस्तान में धन झोंकने की मजबूरी से मुक्ति मिलेगी, चीन और रूस की अफगानिस्तान में तालिबान और अलकायदा के दहशतगर्दोें को अमेरिका-भारत के खिलाफ मोहरा बनाने की कुदृष्टि और करतूत पर रोक लग सकती है, पडोसी देश जैसे ईरान और तजाकिस्तान को भी शिया-सुन्नी विवाद और आतंकवाद को दमन करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं, अफगानिस्तान में सत्ता के दावेदार विभिन्न गुटों के बीच सहमति बन सकती है, तालिबान को भी पाकिस्तान भक्ति-परस्ती छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है।

सबसे बड़ी बात अफगानिस्तान में लोकतंत्र को गतिमान रखने की है। लोकतांत्रिक व्यवस्था ही अफगानिस्तान के अंदर में शांति स्थापित कर सकती है, विकास के मार्ग पर ले जा सकती है, अफगानिस्तान को परजीवी बने रहने से रोक सकती है, अफगानिस्तान को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरणा दे सकती है। हमें ख्याल रखना होगा कि तालिबान की सत्ता कितनी बर्बर और अमानवीय के साथ ही साथ अलोकतांत्रिक थी, यह किसी से छिपी हुई बात नहीं है। तालिबान की लोकतंत्र के प्रति कोई आस्था नहीं हैै। लोकतांत्रिक व्यवस्था में तालिबान अपनी बर्बरता और अमानवीय करतूत को अंजाम दे ही नहीं सकती है। इसलिए तालिबान को मजहबी तानाशाही वाली शासन व्यवस्था चाहिए और तालिबान को इसी मजहबी तानाशाही वाली व्यवस्था इस्लामिक शासन को स्थापित करने के लिए चाहिए। कल अगर सत्ता में तालिबान की वापसी होगी तो फिर भी अफगानिस्तान के अन्य इस्लामिक गुट विद्रोही हो जाएंगे। तालिबान की तरह हिंसक आतंकवाद के सहचर बन जाएंगे, इसलिए समुचित और चाकचौबंद शांति सहमति की जरूरत है।

तजाकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हर्ट आॅफ एशिया की बैठक आतंकवाद और मजहबी घृणा पर नियंत्रण स्थापित करने के दृष्टिकोण से और अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण समझी जा रही है। पहली बार ऐसा हुआ है कि जब दुनिया की महत्वपूर्ण देश, तालिबान के समर्थक और तालिबान के विरोधी इस बैठक में शामिल रहे हैं। चीन और रूस भी इस बैठक में शामिल हुए। भारत और ईरान भी इस बैठक के हिस्सा बने। खास कर भारत को इस बैठक का हिस्सा बनाना आश्चर्यजनक घटना मानी जा रही है। जानना यह होगा कि हाल के वर्षों में पाकिस्तान की आतंकवादी नीति और तालिबान की बर्बरता को तुष्ट करने के लिए चीन और रूस ने संरक्षण और सहयोग देना शुरू कर दिया है। इस कारण तालिबान और पाकिस्तान को अफगानिस्तान में नयी शक्ति मिली है।

तालिबान को खड़ा होने का अवसर मिला है। अमेरिकी कूटनीति यह कहती रही है कि चीन और रूस ने तालिबान को अप्रत्यक्ष मदद कर अफगानिस्तान में शांति को स्थापित करने के खिलाफ गुनाहगार बन गये हैं। चीन और रूस अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में अमेरिका और भारत की परेशानियां बढ़ाने के लिए तालिबान को एक मोहरे की तरह प्रयोग करने की इच्छा रखते हैं। चीन और रूस के निशाने पर सीधे तौर पर भारत था। हर्ट आॅफ एशिया की बैठक में किसी भी परिस्थिति में भारत को शामिल करने के लिए रूस, चीन, पाकिस्तान विरोध कर रहे थे जबकि तालिबान चुप तो जरूर था पर वह अंदर से भारत को इस बैठक में शामिल करने के खिलाफ था। पर अमेरिका, तजाकिस्तान और अफगानिस्तान की वर्तमान सत्ता यह चाहती थी कि हर्ट आॅफ एशिया की बैठक में भारत को अनिवार्य तौर पर शामिल करना चाहिए।

अमेरिका ने अपने वीटो का प्रयोग किया और यह संदेश दिया कि अगर भारत को इसमें शामिल नहीं किया जायेगा तो फिर इस बैठक का कोई अर्थ ही नहीं रह जायेगा। दोहरी शांति की व्यवस्था पर चीन, रूस और पाकिस्तान जैसे देशों का विरोध था पर भारत की दोहरी शांति के सिद्धांत से न केवल अमेरिका चमत्कृत हुआ बल्कि अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार भी चमत्मकृत थी। ईरान और तजाकिस्तान की इस्लामिक सरकार भी चमत्कृत थी। अब यहां एक अन्य प्रश्न यह है कि भारत की दोहरी शांति सिद्धांत है क्या? भारत का दोहरी शांति का सिद्धांत यह है, पहली शांति अफगानिस्तान के अंदर में होनी चाहिए यानी कि अफगानिस्तान के अंदर सत्ता के जितने भी दावेदार हैं उनके बीच सहमति बननी और आतंकवाद-हिंसा को छोड़ने पर अमल करना है। दूसरा शांति का सिद्धांत अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों में शांति स्थापित होना। अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों में शांति स्थापित करने का अर्थ तालिबान-अलकायदा का समर्थन देना बंद कर देने से है। इसके साथ ही साथ भारत ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था का हर हाल में संरक्षण किया जाना चाहिए, लोकतांत्रिक व्यवस्था का सक्रिय और गतिमान रखा जाना चाहिए।

                                                                                                                       -विष्णुगुप्त

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