सवालों के घेरे में आईटी कंपनियां

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ट्विटर और केंद्र सरकार के बीच पहले से तनातनी का माहौल है। इन दिनों सोशल मीडिया की राजनीतिक पार्टियों की तरह चर्चा हो रही है। आए दिन कोई न कोई विवाद सामने आ रहा है। कुछ दिन पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का ट्विटर अकाउंटर ब्लॉक कर दिया था, उसके बाद ट्विटर ने लेह लद्दाख को एक अलग देश के रूप में पेश किया, फिर उस नक्शे को भी हटाया। देश के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का ट्विटर अकाउंट भी 12 घंटों के लिए ब्लॉक किया गया। नक्शे जैसी कोताही कोई साधारण मामला नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय विवाद पैदा होने का कारण बन सकते हैं। मनमर्जी से अकाउँट बंद करने का प्रयास कई सवाल खड़े करता है। प्रशात भूषण ने तो यहां तक भी कह दिया कि आईटी और फार्मा कंपनियां आपस में मिली हुई हैं। उनके आरोपों में कितनी सच्चाई है इस बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन जिस प्रकार की कार्रवाईयां सामने आ रही उससे देशों के राजनीतिक मामलों से संंबंधी चिंता बढ़ गई है।

दरअसल ये कंपनियां इसलिए सरकार को आंखें दिखा रही हैं, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारें तथा अपनी छवि चमकाने के लिए इनका मनचाहा इस्तेमाल करते रहे हैं। चुनाव में भी इनका उपयोग.दुरुपयोग खूब होता है। जबकि देश के नेतृत्वकर्ता भलीभांति जानते है कि इन कंपनियों का मकसद केवल मोटा मुनाफा कमाना है। देश को नहीं भूलना चाहिए कि व्यापार के बहाने ही देश को फिरंगी हुकूमत ने गुलाम बना लिया था। सोशल मीडिया का मुख्य सिद्धांत ही अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन अकाउंट ब्लॉक करना अपने-आप में दूसरों की स्वतंत्रता छीनने जैसा गुनाह है। राजनेताओं और उनकी पार्टियों की गतिविधियों पर आईटी कंपनियों का प्रभाव किसी भी रूप में नहीं पड़ना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपने आप में एक गंभीर विषय है।

स्वतंत्रता और बर्बादी के बीच अंतर को पहचानना जरूरी है। लोगों को गुमराह करने वाली सामग्री पर रोक आवश्यक है लेकिन यह केवल राजनीतिक व सरकारी क्षेत्र तक सीमित हो गया है। करोड़ों की संख्या में देश के नागरिकों को प्रभावित करने वाला सोशल मीडिया जब बेलगाम, निरंकुश और अश्लील हो जाए तो उस पर लगाम लगाना ही देशहित है। वास्तविक्ता व अन्य अनैतिक सामग्री को सोशल मीडिया के प्लेटफार्मों से हटाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं उठाए जा रहे। आईटी कंपनी कहीं अंतरराष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा न बन जाएं, इसके प्रति सावधान रहें। आईटी कंपनियां स्वतंत्रता का प्रचार करने से पहले विभिन्न देशों की विचारधारा, समझ, राजनीति व विभिन्न देशों के संबंधों के प्रति अपनी जिम्मेवारी पूरी गंभीरता से निभाएं।

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