सचखंड व रूहानियत का अजूबा है शाह सतनाम जी धाम सरसा

Shah Satnam Ji Dham
  • परम पिता शाह सतनाम जी धाम की 29वीं वर्षगांठ पर डॉ. एमएसजी ने दी साध-संगत को बधाई
  • एक ऐसा रूहानियत का दर, जहां हर मजहब के लोग करते हैं सजदा
  • परम पिता शाह सतनाम जी धाम की 29वीं वर्षगांठ पर डॉ. एमएसजी ने दी साध-संगत को बधाई
  • …जब 31 अक्तूबर दिन रविवार को परम पिता शाह सतनाम जी धाम में पूज्य गुरु जी ने फरमाया सत्संग
  • वेब डेस्क-विजय शर्मा
    सरसा। पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज और परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के पावन वचनानुसार पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने 29 अक्तूबर 1993 को अपने पवित्र कर कमलों से परम पिता शाह सतनाम जी धाम डेरा सच्चा सौदा, सरसा (Shah Satnam Ji Dham sirsa ) आश्रम का शुभारंभ किया था। पूज्य गुरु जी ने आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से आश्रम के 29 साल पूरे होेने पर समस्त साध-संगत को बधाई दी। आपको बता दें कि इस रूहानियत व आध्यात्मिकता के केन्द्र परम पिता शाह सतनाम जी धाम का निर्माण कार्य दिनांक 24 मई 1993 को आरंभ किया गया और उसी वर्ष अक्तूबर महीने में निश्चित प्रोग्राम के अनुसार निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया और 29 अक्तूबर 1993 को पूज्य गुरु जी ने इसका शुभारंभ किया। तत्पश्चात् 31 अक्तूबर दिन रविवार को पूज्य गुरु जी ने यहां 25 एकड़ में बने पंडाल में रूहानी सत्संग फरमाया, जिसमें साध-संगत के अपने प्यारे मुर्शिद प्यारे के प्रति प्रेम के सामने यह विशाल सत्संग पंडाल छोटा पड़ गया। साध-संगत की बढ़ती संख्या के मद्देनजर बाद में पंडाल का विस्तार किया गया, जो अब लगभग 35 एकड़ में है।

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Shah Satnam Ji Dham sirsa

कभी हुआ करते थे रेत के बड़े-बड़े टीले

वर्तमान में जिस जगह पर परम पिता शाह सतनाम जी धाम डेरा सच्चा सौदा, आश्रम बना हुआ है वहां कभी 18 से 20 फीट के ऊंचे-ऊंचे के विशाल टीले हुआ करते थे। उन टिब्बों को जब पूज्य गुरु जी ने स्वयं संगत के बीच विराजमान रहकर उठवाया तो यहां गड्ढ़ों में ट्रक भी दिखाई नहीं देते थे।

आश्रम निर्माण की सूचना मिलते ही सेवा के लिए उमड़े सेवादार

पहले दिन केवल 20 टैÑक्टर-ट्रॉलियों को ही मिट्टी उठाने पर लगाया गया। कुल मालिक की इस महान उत्तम सेवा का यह पावन सन्देश ज्यों ही साध-संगत को पहुंचा तो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि से बड़ी संख्या में साध-संगत अपने-अपने ट्रकों, ट्रॉलियों आदि के द्वारा बढ़-चढ़कर अगले दिन ही यहां सेवा में शामिल हो गई। इस प्रकार साध-संगत में सेवा के प्रति उत्साह दिन प्रतिदिन बढ़ता ही चला गया। इतने विशाल टीले तरबूज के समान कटने लगे। सेवा का काम इतनी तेजी से हुआ कि उसका किसी को अनुमान तक न था।

हाथी पर चढ़कर भी मौज के मुश्किल से दर्शन हुआ करेंगे

पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज के समय की बात है कि पूज्य बेपरवाह जी ने सन् 1948 में डेरा सच्चा सौदा कायम करके इसमें अपने मुर्शिद पूज्य हजूर बाबा सावण सिंह जी की सच्ची भक्ति का प्रचार आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे ज्यों-ज्यों पूजनीय बेपरवाह जी का यश दूर-दूर तक होने लगा, त्यों-त्यों डेरा सच्चा सौदा में संगत की संख्या भी दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी और डेरा सच्चा सौदा का विस्तार तथा साध-संगत के उमड़ते उत्साह का इशारा करते हुए पूज्य बेपरवाह जी ने एक बार अपने पवित्र मुख से फरमाया, ‘‘देखो बई! सरसा शहर की तरफ से कितनी संगत सच्चा सौदा में आ रही है। ऐसे लगता है जैसे सरसा और डेरा एक हो गए हैं।’’ पूजनीय बेपरवाह जी उस दिन सख्त दोपहरी में डेरे के मुख्य द्वार के बाहर एक दो विशेष सेवादारों के साथ खड़े थे। अपने आप में मगन थे। पूज्य बेपरवाह जी के उन वचनों की किसी को भी समझ नहीं आई। उन्होंने देखा कि उस भीषण धूप में संगत का कोई प्रेमी जीव तो क्या कहीं कोई परिन्दा भी दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ता था। परंतु वे अपने प्यारे मुर्शिद के उन ईलाही वचनों को बराबर गौर से सुनते जा रहे थे। खुद-खुदा ने दोबारा फिर फरमाया, ‘‘नहीं बई नहीं। इतनी संगत आ रही है कि सरसा डेरा और बेगू गांव एक हो गए हैं।’’ इसी प्रकार वाली दो जहान पूजनीय बेपरवाह जी ने तीसरी बार फिर ईलाही वचन फरमाया, ‘‘नहीं बई नहीं! सरसा से नेजिया तक संगत ही संगत दिखाई पड़ती है। ऊपर से थाली फेंके तो नीचे ना गिरे। संगत के सिरों पर ही रह जाए। हाथी पर सवार होकर भी संगत को मुश्किल से दर्शन हुआ करेंगे। सरसा शहर तो इतनी संगत की धूड़, से ही तर जाएगा।’’

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी के वचन हुए सच |

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पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने रेत के उन बड़े-बड़े टीलों को अपनी पावन रूहानी दृष्टि से निहारते हुए फरमाया था कि यहां बाग-बहारें होंगी और सचखण्ड का नमूना बनेगा। आपजी ने वचन किए कि आने वाले वक्त में आश्रम दिन दोगुनी, रात चौगुनी तरक्की करेगा।

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रेत के टीलों की जगह खिली बाग बहारें

तत्पश्चात साध-संगत की बढ़ती तादाद और संगत की सुविधाओं के लिए उन रेत के टीलों के स्थान पर पूज्य गुरु जी ने अपनी अपार रहमत के द्वारा यह दरबार बनवाया। जहां आज बाग-बहारें हैं। इस प्रकार अद्वितीय तथा अलौकिक कला का यह जो सुन्दर नमूना हमारे सामने है, इसे देखकर आज कोई इन्सान बेशक यह बात मानने को तैयार नहीं है कि यहाँ पर ऊँचे-ऊँचे रेत के विशाल टीले हुआ करते थे। लेकिन वास्तव में रूहानी खुशबू बिखेरता ये आश्रम पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत से सचखंड-अनामी-धाम का साक्षात् नमूना है। इतने कम समय में यह विशाल शहनशाही धाम बनवा कर पूज्य गुरु जी ने दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया। अगर इस प्रत्यक्ष सच्चाई को कुल मालिक, प्रभु-परमात्मा की रहमत का करिश्मा कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी।

अपने ही शामियाने और अपना ही सब कुछ होगा | Shah Satnam Ji Dham sirsa 

सच्चे दाता रहबर ने साध-संगत को पावन वचन फरमाते हुए कहा कि ‘‘मौज किसी की मोहताज नहीं। अपने शामियाने राशन आदि का सारा सामान और अपना ही अन्य सब कुछ होगा। किसी के ऊपर जरा भी बोझ नहीं होगा। यह मौज जयपुर, जोधपुर, महाराष्टÑ, गुजरात और इससे भी बहुत दूर-दूर के देशों प्रदेशों में घूमेगी और यह मौज सब को सुख पहुँचाएगी और रत्ती भर भी किसी को दु:ख नहीं देगी और डेरे का नक्शा ऐसे बदल जाएगा कि कोई सोच भी नहीं सकेगा।’’ आज ये पावन वचन सत्य हो चुके हैं। परम पिता शाह सतनाम जी धाम डेरा सच्चा सौदा, आश्रम जब विदेशी देखने आते हैं तो दांतों तले अंगुलियां दबा लेते हैं। रूहानियत का ये दर एक ऐसा आध्यात्म का केन्द्र हैं जहां हर धर्म के लोग सजदा करते हैं।

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