मेरे लाल को कोई बुरी नजर न लग जाए

बचपन से ही पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का अलौकिक नूरानी स्वरूप इतना सुंदर था, जो भी देखता बस देखता ही चला जाता। परम पिता परमात्मा का ईलाही नूर आप जी के नूरानी मुखड़े से ऐसे झलकता जैसे सूर्य का सुनहरी प्रकाश हो। गांव का एक झींवर भाई घर में पीने का पानी भरने आया करता था। एक दिन पूजनीय माता जी ने उसे अपने लाल के पालने के पास टकटकी लगाए आप जी को निहारते हुए देख लिया। माता का हृदय बहुत कोमल होता है। पूजनीय माता जी ने उस भाई से कहा कि तू यहां खड़ा इतनी देर से क्या देख रहा है, अपना काम कर ले। पूजनीय माता जी के मन में आया कि कहीं मेरे लाल को कोई बुरी नजर ही न लग जाए।

Shah-Satnam-ji

पूजनीय माता जी ने समाज में प्रचलित काला टिक्का अपने लाल के चेहरे पर एक साइड में लगा दिया। उस भाई ने पूज्य माता जी से विनम्र भाव से कहा, माता जी, मेरे अंदर कोई ऐसी बुरी भावना या बुरी नजर के ख्याल नहीं हैं। आप के लाल में मुझे हमारे पूजनीय महापुरुषों के दर्शन होते हैं। इसलिए मेरा नजर हटाने को दिल नहीं करता। पूजनीय माता जी ने अपने लाल को तुरंत अपने आंचल में छिपा लिया।

आप जी अभी चार-पांच वर्ष के थे, जब आप जी के पूज्य पिता जी मालिक की गोद में सचखण्ड जा समाए। आप जी का पालन-पोषण आप जी की पूज्य माता तथा आप जी के पूज्य मामा सरदार वीर सिंह जी के उत्तम आदर्शाें के आधार पर हुआ। पूजनीय माता जी के भक्ति भाव तथा परोपकारी संस्कार बचपन से ही आप जी के अंदर भरपूर थे। आप जी अपने पूज्य माता-पिता जी की इकलौती संतान थे।

आप जी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही स्कूल से पूरी हुई। उसके बाद की शिक्षा आप जी ने मण्डी कालांवाली के सरकारी स्कूल से प्राप्त की। आप जी अपने सहपाठियों के प्रति हमेशा विनम्रता व हमदर्दी के भाव रखते और गरीब बच्चों की हर संभव मदद करते। एक बार स्कूल में आप जी के एक सहपाठी को बुखार हो गया। आप जी ने उसे डॉक्टर से दवाई दिलाई और अपनी साईकिल पर बैठाकर उसे उसके घर पर छोड़कर आए। दूसरों के प्रति आपजी की हमदर्दी की भावना से हर कोई परिचित था।

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