सच्चे सतगुरु जी की रहमत शिष्य का पक्का किया दृढ़ विश्वास

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पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा , जिसको मालिक पर विश्वास है, मालिक उसका जिम्मेवार है तथा उसके सारे काम स्वयं ही करता है। जो मालिक का हो जाता है, मालिक भी उसका हो जाता है।’’

एक दिन मैं अर्द्धजागृत अवस्था में सोया हुआ था। अचानक मुझे पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के दर्शन हुए। मुझे आशीर्वाद देते हुए पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा, कल तेरी बस के नीचे आकर एक आदमी ने मरना है, तुझे डरने की कोई जरूरत नहीं, उसकी मौत इसी प्रकार होनी है। हम तेरे साथ हैं।’’ इसी के साथ सारी घटना का दृश्य भी दिखा दिया। मैं डर गया परंतु मैंने इसे मात्र सपना ही समझा। अगले दिन मैं चंडीगढ़ से सरसा के लिए बस लेकर चला तो रास्ते में जीरकपुर पहुंचकर रात वाला सारा दृष्टांत मेरे सामने था। बस सवारियों से भरी हुई थी। बस स्टैंड पर पहुंचने से पहले ही एक आदमी चलती बस पर लटक गया और दूसरे वाहन की चपेट में आकर बस के पिछले टायर के नीचे आकर कुचला गया। बस में शोर मच गया। मैंने बस रोकी तो सवारियों ने कहा कि कोई व्यक्ति बस के नीचे आ गया है। मैंने देखा कि वह व्यक्ति खून से लथपथ सड़क पर पड़ा कराह रहा था। मैंने उसी बस में उसे पीजीआई अस्पताल पहुंचाया लेकिन वह दम तोड़ गया।

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तब तक पुलिस भी वहाँ पहुंच गई। मैंने उस पुलिस अधिकारी को समझाया कि इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है। उसने बस में लगे पूजनीय परम पिता जी के पावन स्वरूप की तरफ देखा तो उसके बोलचाल व स्वभाव में जमीन-आसमान का अंतर आ गया। उसने मुझसे पूछा कि क्या तूू इन संतों का सेवक है? मैंने कहा कि जी हां, ये सच्चा सौदा, सरसा वाले संत हैं। उस पुलिस अधिकारी ने मुझे हौंसला दिलाया कि तू बिल्कुल न घबरा, तेरा कोई नुक्सान नहीं होने दिया जाएगा। बस को थाने ले जाया गया। वहां मृतक व्यक्ति के परिवार वाले भी आ गए। उस पुलिस अधिकारी ने इस प्रकार रिपोर्ट तैयार की कि उस मृतक को भी सर्विस लाभ, पैंशन व बकाया बीमा मिल सके क्योंकि वह भी एक सरकारी कर्मचारी था और मेरे बारे में लिखा कि बस ड्राईवर न तो नशा करता है और न ही बस लापरहवाही से चला रहा था। उसने हमारा राजीनामा करवा दिया। फिर उस पुलिस अधिकारी ने मुझे बताया कि रिपोर्ट लिखते समय मेरे सामने एक सफेद वस्त्र धारण किए लम्बे कद, सुंदर व आकर्षक स्वरूप में एक बाबा जी हाथ में लाठी लिए तब तक खड़े रहे, जब तक कि मैंने सब कुछ लिख नहीं दिया। उन्होंने मुझे कहा कि हमारे बच्चे का कोई नुक्सान नहीं होना चाहिए। आप पर तो बाबा जी बहुत ही मेहरबान हैं।

मैंने अपने दिल से पूजनीय परम पिता जी का शुक्राना किया और सोचा कि किस प्रकार पूजनीय परम पिता जी ने मेरी जान छुड़ाई। फिर मैंने उस पुलिस अधिकारी का शुक्राना किया और सीधा सरसा आश्रम में पहुंच गया। उस समय पूजनीय परम पिता जी शाम की मजलिस में विराजमान थे। मैंने सारी घटना पूजनीय परम पिता जी को सुनाई। पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा , जिसको मालिक पर विश्वास है, मालिक उसका जिम्मेवार है तथा उसके सारे काम स्वयं ही करता है। जो मालिक का हो जाता है, मालिक भी उसका हो जाता है।’’              श्री गुरमेल सिंह, गांव गरचा, नवांशहर

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