World Population Day : जनसंख्या शिखर : उपलब्धि नहीं चुनौती

World Population Day

World Population Day: चीन को पछाड़कर भारत जनसंख्या (Population) का सिरमौर देश बन गया है। ऐसी संभावनाएं पहले से ही जाहिर की जा रही थीं कि भारत जल्द ही चीन को जनसंख्या वृद्धि के मामले में पीछे छोड़ देगा पर यह संभावना 2028 के आसपास जाहिर की जा रही थी मगर भारत ने यह काम 2023 में ही कर दिया है। भारत में जनसंख्या का ग्राफ जिस तेजी से बढ़ा है वह हैरतअंगेज है और सुरसा की तरह बढ़ती हुई विशाल जनसंख्या ने हर उपलब्धि को बौना साबित कर दिया है।

जनसंख्या संबंधित समस्याओं पर वैश्विक चेतना जागृत करने के लिए प्रतिवर्ष 11 जुलाई को ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ मनाया जाता है। भारत के संदर्भ में देखें तो तेजी से बढ़ती आबादी के कारण ही हम सभी तक शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों को पहुंचाने में पिछड़ रहे हैं। बढ़ती आबादी की वजह से ही देश में बेरोजगारी की समस्या विकराल हो चुकी है। अशिक्षा, गरीबी, रूढ़िवादिता, धार्मिक कट्टरता और अपने संप्रदाय विशेष को हावी करने की कुटिल इच्छा जैसे कारण हैं, जो जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ और भी चुनौतीपूर्ण होते जा रहे हैं। यह समस्या प्रत्येक भारतीय के हिस्से में आने वाली वस्तुओं को कम कर रहा है। World Population Day

1947 में आजाद हुआ 36 करोड़ लोगों का देश महज 75 साल में ही 142.86 करोड़ जनसंख्या वाला दुनिया के सबसे बड़े जनसंख्या राष्ट्र में बदल गया। इन 75 सालों में भारत की जनसंख्या तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ी है। जनसंख्या वृद्धि दर इतनी ऊंची है कि प्रतिवर्ष न्यूजीलैंड व आॅस्ट्रेलिया जैसे देशों की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा लोग हमारी आबादी में जुड़ रहे हैं। स्वाभाविक रूप से सुरसा के मुख सी बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाने, पहनने और रहने की समस्याएं भी विकराल रूप लेती गई।

राष्ट्रीय सरकारों में जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को लागू करने के लिए जो प्रतिबद्धता चाहिए थी वह हर सरकार से गायब रही है। इसके पीछे सबसे बड़ी राजनीतिक मजबूरी थी देश के एक खास वर्ग का वोट पैकेज में तब्दील हो जाना। जब तक देश में कांग्रेस की सरकारें रही यह वोट पैकेज उसको सत्ता दिलाता रहा और इसी सत्ता के लालच ने जनसंख्या नियंत्रण कानून को अस्तित्व में आने से रोके रखा।

जहां हिंदू धर्म के उच्च वर्गों में ‘हम दो हमारे दो’ के नारे से जन जागृति आई, वहीं डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां द्वारा दिया गया नारा ‘बच्चा एक ही सही दो के बाद नहीं’ के सिद्धांत पर एक बहुत बड़ा वर्ग चल रहा है। इस वर्ग ने अपनी जनसंख्या की वृद्धि पर काफी हद तक नियंत्रण कर लिया है। हालांकि हिंदू समाज के भी निचले तबकों में अभी वह जागृति देखने को नहीं मिलती जो होनी चाहिए। अब समय आ गया है कि समय के साथ केंद्र एवं राज्य सरकारों को निष्पक्ष तरीके से ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे को धरातल पर उतारते हुए, पूरी प्रतिबद्धता के साथ पूरे देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू कर ही देना चाहिए। World Population Day

जनसंख्या नियंत्रण कानून के अंतर्गत इस प्रकार के प्रावधानों का होना आवश्यक हो कि एक सीमित संख्या तक ही परिवार बढ़ने पर लोगों को सब्सिडी, लोन या राशन आदि की सुविधा मिले। निर्धारित संख्या से ऊपर संतान उत्पत्ति पर प्रतिबंधात्मक प्रावधानों का होना जरूरी है। ऐसी नीति के क्रियान्वयन में धार्मिक एवं सामाजिक प्रतिरोध भी खड़ा किया सकता है अत: जनसंख्या नियंत्रण कानून को चरण दर चरण लागू करने की नीति अपनाई जा सकती है। जिस प्रकार से कई दूसरे देशों में संतान उत्पत्ति के नियम हैं उसी प्रकार से देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हमारी सरकारों को भी ऐसे प्रावधान अस्तित्व में लाने ही चाहिए। World Population Day

जनसंख्या नियंत्रण प्रावधानों को लागू एवं क्रियान्वित करते समय सबसे अधिक जरूरी है अभिप्रेरक तरीके से जन जागरण अभियान चलाए जाएं। खास तौर पर कम शिक्षित या अशिक्षित एवं धार्मिक विचारों से अधिक प्रभावित होने वाले लोगों के लिए ऐसे ही धार्मिक संस्थानों की सहायता ली जा सकती है जो उन्हें बताएं कि संतान ईश्वर की देन तो है ही अपितु यह एक शारीरिक प्रजनन क्षमता का परिणाम भी है। Population

लोगों को समझाया जाए कि जितने अधिक बच्चे होंगे उसी अनुपात में उन्हें उतना ही कम खाना-पीना, पहनना एवं रहने का स्थान उपलब्ध हो पाएगा जिसके परिणाम स्वरूप वे हमेशा नीचे के पायदान पर ही रहेंगे और उनका जीवन स्तर भी निम्न श्रेणी का ही रहेगा। उन्हें यह भी समझाया जाए कि अधिक संख्या में बच्चे पैदा करना कोई सबाब का काम नहीं अपितु पाप का सबब है क्योंकि ऐसे जीव उत्पन्न करना जिनका हम सही तरीके से शिक्षण एवं पालन पोषण भी न कर पाए एक पाप ही है। विभिन्न पाठ्यक्रमों में भी जन वृद्धि के दुष्परिणाम एवं उन्हें रोकने की व्यवहारिक उपायों की जानकारी दी जानी जरूरी है। यह कार्य केवल सरकारी स्कूलों वह कॉलेजों में ही नहीं अपितु धार्मिक स्कूलों व महाविद्यालय में भी लागू किया जाए। World Population Day

साथ ही साथ कम बच्चे पैदा करने वाले लोगों के लिए मुफ्त शिक्षा एवं अन्य सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिए इससे भी एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यदि सरकारों में प्रतिबद्धता हो तो बिजली, पानी जैसी आवश्यक आपूर्ति वाली वस्तुओं की दरें भी एकल परिवारों के सदस्यों की संख्या के आधार पर तय करने में भी कोई बुराई नहीं है। जनसंख्या नियंत्रण की ढुलमुल नीति और प्रतिबंधात्मक व नकारात्मक प्रेरणा देते उपायों से हम चीन को पछाड़कर जनसंख्या में सर्वोच्च स्थान पर तो आ गए पर चीन जैसी सख्त जनसंख्या नियंत्रण नीतियां हम कभी भी नहीं अपना सके। हमें जनसंख्या पर नियंत्रण करना ही होगा कैसे भी और किसी भी तकनीक से। अब उसके लिए चाहे जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना पड़े या लोगों में जन जागरण करके एक चेतना लानी पड़े अथवा कुछ और करना पड़े। Population

वैसे भारत अभी भी युवाओं का देश है एवं यदि दूरगामी नीति के साथ चला जाए तो इस बढ़ती हुई जनसंख्या का उपयोग देश के विकास के लिए किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि कम से कम 2054 तक भारत बूढ़ो का देश नहीं होने जा रहा है। आज समय की मांग है कि देश की शिक्षा को दक्षता एवं प्रवीणता की शिक्षा बनाया जाए। स्कूलों में किताबी ज्ञान से अधिक तकनीकी एवं उत्पादकता का व्यवहारिक ज्ञान दिया जाए। बच्चों का स्कूल में बिताए जाने वाला कम से कम 50% समय उत्पादक कार्यों में लगाया जाना चाहिए। ज्यादा नहीं तो नवीं कक्षा के बाद इस प्रकार की शिक्षा होनी चाहिए कि बच्चे की शिक्षा का आंशिक खर्च उसके द्वारा बनाए गए उत्पादों से निकलना शुरू हो जाए।

12वीं एवं उसके बाद की शिक्षा के लिए प्रावधान होना चाहिए कि अपनी शिक्षा का खर्च शिक्षार्थी ही अपने उत्पादक कार्यों से पूरा करे। इसके लिए विद्यालय के भवनों को विस्तार देना होगा एवं उन्हें अपडेट करना होगा। हर महा विद्यालय एवं उच्च माध्यमिक विद्यालय में उत्पादक कक्षों का होना अनिवार्य किया जाना चाहिए जहां बच्चे दक्ष प्रशिक्षकों के निर्देशन में समय की मांग के अनुसार वस्तुओं का उत्पादन करें एवं विद्यालय में एक सेल एंड परचेज जैसा विभाग भी होना चाहिए जो कच्चे माल की आपूर्ति तथा बनाए गए माल की बिक्री की दक्षता पूर्वक व्यवस्था करे। जिस तरह निजी महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों को अनुमति दी जा रही हैं उन्हें कड़े मानकों द्वारा नियंत्रित करना बहुत जरूरी है अन्यथा ये संस्थान कागज के टुकड़ों के रूप में डिग्रियां बांटते रहेंगे और भारत का युवा बेरोजगार होकर सड़कों पर घूमता रहेगा। बेशक, जनसंख्या के शिखर पर पहुंचना उपलब्धि नहीं अपितु बहुत बड़ी चुनौती है और इससे निपटने के रास्ते हमें हर हाल में खोजने होंगे। World Population Day

डॉ. घनश्याम बादल, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)