Flood: बाढ़ से बचाव के हों ठोस उपाय

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बाढ़ से बचाव के हों ठोस उपाय

Flood : उत्तर भारत में बारिश से तबाही का आलम है। लोग मानसून (Monsoon) के सुखद आगमन का इंतजार कर ही रहे थे कि 24 घंटे बाद इंतजार हाहाकार में बदल गया। उत्तर भारत में इस भारी बारिश का कारण मौसम विभाग ने हिमालय पर सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ और मानसून की ठंडी हवाओं का संयोग बताया है। जिस कारण उत्तर भारत में सामान्य से 59 फीसदी अधिक बारिश दर्ज की गई। राजस्थान के उपर एक्यूप्रेशर का एरिया बनना भी भारी बारिश का कारण माना जा रहा है। जो भी कारण हों, यह बहुत हद तक मनुष्य के नियंत्रण से बाहर हैं। मनुष्य के हाथ में इतना जरूर है कि वह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ ना करें।

विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, वनों व पहाड़ों का कटाव, प्रदूषण पर अनियंत्रण होना अनेकों ऐसे कारण हैं जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ा है। यदि समय रहते मनुष्य ने अपनी इन गलतियों को नहीं सुधारा तो विकास का उपयोग करने वाला कौन बचेगा? प्रकृति के साथ छेड़छाड़ पर सरकारों को गंभीरता से सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। दूसरा, भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का यह विजन था कि देश के लोग कहीं सूखे से पीड़ित हैं, तो कहीं बाढ़ से, ऐसी दशा से बचने के लिए नदियों को आपस में जोड़ा जाए ताकि अतिवृष्टि वाले क्षेत्र का पानी सूखाग्रस्त इलाकों की तरफ भेजा जा सके। जिससे अतिवृष्टि वाले क्षेत्रों में बाढ़ भी ना आए और सूखाग्रस्त क्षेत्र में पानी की कमी भी ना रहे। Flood

पूर्व प्रधानमंत्री के इस विजन की सभी सरकारों ने सराहना की थी लेकिन इस विजन को अब तक कोई भी सरकार धरातल पर नहीं उतार सकी। सरकारों द्वारा जल संरक्षण के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, प्रचार किया जाता है, पानी बचाने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं लेकिन जब पानी बरसता है तो उसकी संभाल के सरकारों के पास एक प्रतिशत भी प्रबंध नहीं होते। यदि वर्षा के जल संरक्षण और नदियों को जोड़ने की योजनाओं पर गंभीरता से अमल किया जाए तो एक या दो दिन की बरसात से मची हाहाकार से बचा जा सकता है।

हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल की सरकारें अपने-अपने अधिकारियों के साथ आपात बैठकें कर रही हैं, अपने प्रदेश के जनता के जान-माल की सुरक्षा के लिए गंभीर चिंतन और मनन हो रहा है, जोकि सरकारों का कर्तव्य भी है। लेकिन यदि ऐसी गंभीरता केवल मानसून के समय में ही न होकर साल भर हो तो शायद एक-दो दिन की बरसात की आफत से काफी हद तक बचा जा सकता है। यह सत्य है कि प्रकृति के कहर से कोई बच नहीं सकता, लेकिन कहर से पहले ही जो हाहाकार मच जाती है, मनुष्यी प्रयासों द्वारा उससे तो बचा ही जा सकता है। सरकारों को क्षेत्रवाद, प्रांतवाद से ऊपर उठकर प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए गंभीरता से प्रयास करने चाहिए। आपदाओं से बचाव के लिए अल्पकालीन उपायों की बजाए इोस व स्थायी उपाय खोजे जाएं। Flood

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