अनमोल वचन: सच्चे दिल से परमात्मा को आवाज लगाएं वो जरूर सुनता है

Precious words By Saint Dr. MSG
सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु, खुदा, रब्ब का नाम जब इन्सान पुकारता है, तो वह आवाज उस खुदा तक लाजमी पहुंचती है। अगर कोई आपका नाम ले तो आपको सुनेगा और आप बात करेंगे। इसी तरह जब भगवान को उसका नाम लेकर कोई पुकारता है तो उस तक आवाज पहुंचती है, लेकिन उसकी आवाज आप तक नहीं पहुंचती, क्योंकि कामवासना, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार, मन व माया के पर्दे आपकी आंखों पे, कानों में, दिल और दिमाग में लगे हुए हैं। इन पर्दों को हटाना जरूरी है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि ये पर्दे अपने आप नहीं हट सकते। इनको हटाने के लिए निरंतर प्रभु के नाम का सुमिरन करना पड़ता है। मालिक की बनाई सृष्टि की सेवा करनी पड़ती है। ज्यों-ज्यों सेवा करते जाओगे, ईश्वर के नाम का जाप करते रहोगे, ये पर्दे फटने शुरू हो जाएंगे।निरंतर किया गया सुमिरन आत्मा व परमात्मा के बीच में इन विषय-विकारों के पर्दों को जला कर राख कर देगा। तब मालिक की आवाज भी सुनाई देगी और मालिक साक्षात दिखाई भी देंगे। पर इसके लिए साधना करनी पड़ती है। आपने शरीर को साधना है, अपने विचारों को साधना है, दिलो-दिमाग को साधना है, अपने कर्मों को साधना है। साधने के लिए आत्मबल चाहिए और आत्मबल प्रभु के नाम से मिलता है।
आप जी फरमाते हैं किसी डॉक्टर के पास ऐसा टॉनिक नहीं है जो आत्मबल दिला दे, हालांकि आत्मबल, विल पॉवर सबके अंदर मौजूद है। जैसे धरती में पानी है, फूलों में खुशबू है, दूध में घी है, उसी तरह सबके अंदर आत्मबल समाया है। दूध में से घी निकालने के लिए उसे गर्म करके शाम को जाग लगा देते हैं, सुबह बिलोते हैं, मक्खन आता है, गर्म करते हैं फिर छाछ अलग और घी अलग हो जाता है। धरती से पानी निकालने के लिए बोरिंग की जाती है, इससे पानी बाहर आता है। इसी तरह वो आत्मबल, वो भगवान सबके अंदर है। उसको हासिल करने के लिए जो तरीका है उसे गुरुमंत्र, कलमां, मैथड आॅफ मेडिटेशन कहते हैं। इसका निरंतर अभ्यास, निरंतर भक्ति मालिक से मिला देती है। जब आत्मबल होता है तो इन्सान हारी हुई बाजी जीत जाता है और जब आत्मा कमजोर हो तो जीती हुई बाजी हार जाता है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि पीर-फकीर जो वचन करते हैं उन पर अगर कोई रहे तो दोनों जहान की खुशियां हासिल कर सकता है। वचन न माने तो छोटी-सी खुशी भी हासिल नहीं होती। जब इन्सान सत्संग के दायरे में रहता है तो बुरे विचार दबे रहते हैं। जैसे ही सत्संग के दायरे से बाहर गया तो भूल जाता है, सोचता है कौन-सा कोई देख रहा है। आप जी फरमाते हैं कि भगवान तो कण-कण में है, वो तो हर जगह रहता है, लेकिन इन्सान भूल जाता है और ऐसे बुरे कर्म करता है जिसकी कल्पना करना भी गलत है, फिर दोष मालिक को देता है। कर्म खुद बुरे करता है और दोष मालिक को देता है, ये तो बिल्कुल गलत है।

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