टैलेंट नहीं, फिर भी राजा करते थे कप्तानी

Indian cricket's birthday

25 जून 1932 को हुआ था भारतीय क्रिकेट का ‘जन्मदिन’

 भारत क्रिकेट की महाशक्ति है और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड दुनिया के पूरे क्रिकेट तंत्र को अपने इशारों पर नचाने की हैसियत रखता है। एक नहीं, दो-दो विश्वकप भारत के हक में हैं, जबकि आईसीसी चैम्पियन्स ट्रॉफी जीतकर भारत दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बना है। 25 जून 1932 ये वो तारीख है, जिस दिन भारतीय क्रिकेट का जन्म होता है। आजादी से 15 साल पहले, पहली भारतीय टीम इसी तारीख को क्रिकेट के इतिहास में दर्ज हुई थी। इसी दिन इंग्लैंड के खिलाफ आधिकारिक टेस्ट मैच खेलकर भारत टेस्ट खेलने वाला दुनिया का छठा देश बना था।

पहले भारतीय कप्तान कर्नल सीके नायडू

भारतीय क्रिकेट का पहला सुपरस्टार कर्नल सीके नायडू था। 1895 को नागपुर में जन्में और फिर 20 साल की उम्र से फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में कदम रखा भारतीय टीम के उदय के पीछे कर्नल नायडू का बड़ा योगदान है। जब नायडू को भारतीय टीम की कप्तानी मिली, तो उनकी उम्र 37 साल थी। यानी आज जिस उम्र के आस-पास खिलाड़ी संन्यास ले लेते हैं। उस उम्र में कर्नल नायडू ने इंडिया के लिए पर्दापण किया था। कर्नल लंबे-चौड़े कद के अटैकिंग बल्लेबाज थे। छक्के मारना उनकी अलग ही पहचान थी।

कैसे शुरु हुई भारतीय टीम के बनने की चर्चा?

भारत 1932 में क्रिकेट खेलने से पहले घर में ही धर्मों वाली टीमें बनाकर खेलता था। जैसे हिन्दूज, पार्सीज, क्रिश्चयन्स, मुस्लिम्स, लेकिन अंग्रेजों की गुलामी के बीच ही क्रिकेट भारत में पैर पसार रहा था। इसी बीच सन् 1926 में इंग्लैंड के अधिकारियों ने तय किया कि एक टीम भारत में भी भेजी जानी चाहिए। साल 1926 में इंग्लैंड की टीम ने भारत का दौरा किया। इंग्लैंड के पूर्व एशेज कप्तान आर्थर गिलिगन टीम के कप्तान और इस टीम में कई टेस्ट क्रिकेटर भी मौजूद थे। इस टूर पर 26 फर्स्ट-क्लास मैच खेलने आई इंग्लिश टीम का एक मैच एक दिसंबर को बॉम्बे के जिमखाना में हिन्दूज के खिलाफ था। इस मैच में कर्नल सीके नायडू ने छक्कों का वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ा और 11 छक्के लगाए, जबकि 13 चौकों के साथ उन्होंने ऐसी 153 रनों की शानदार पारी खेली।

उस मैच में सी.के. नायडू ने इंग्लिश गेंदबाज मोरिस एस्टल और टेट जैसे खिलाड़ियों के खिलाफ ये प्रदर्शन किया था। इस मैच के तुरंत बाद गिलिगन ने भारतीय क्रिकेट के कर्ता-धर्ता पटियाला के महाराजा भूपेन्द्र सिंह से दिल्ली में इस बारे में बात की और फिर जल्दी ही भारतीय क्रिकेट बोर्ड की स्थापना हुई।

राजा-महाराजाओं के दौर का क्रिकेट

भारतीय खिलाड़ियों ने ये दिखाया था कि अब भारत पहला टेस्ट खेलने के लिए तैयार है। लेकिन इस वक्त ना तो स्पॉन्सर्स होते थे, ना ही कमाई के बाकी साधन। इसलिए बोर्ड को भी क्रिकेट चलाने के लिए महाराजाओं के रहमो-करम पर निर्भर होना पड़ता था। इसलिए उस दौर में किसी टीम का कप्तान भी एक राजा ही होता था। हालांकि टीम बनने की योजना के बीच ऐसी चर्चाएं भी हुई कि भारतीय टीम का कप्तान किसी अंग्रेज को बनाया जाए, जिससे कि टीम में हिन्दू, मुस्लिम या अन्य धर्मों के लोग विद्रोह न कर सकें, लेकिन ये सब बातें तभी नकार दी गई।

भारतीय टीम का पहला इंग्लैंड दौरा

1932 में ये बात चली कि टीम इंडिया को इंग्लैंड के दौरे पर जाना है, जहां पर टीम 26 फर्स्ट-क्लास मैच और एक आॅफिशियल टेस्ट मैच खेलेगी। लेकिन अब भी बड़ा सवाल ये कि टीम की कप्तानी कौन करेगा? चर्चा हुई कि इस दौरे की कप्तानी नवाब पटौदी सीनियर को दी जाए। चर्चा में नाम आया कि रणजीत सिंह के भांजे, दिलीप सिंह को भी कप्तान बनाया जा सकता है। लेकिन ये दोनों ही उस दौरे में इंग्लैंड के लिए खेलते थे। इन दोनों के नाम से चर्चा आगे बढ़ी, तो फिर पटियाला के महाराज या विजयानगरम के महाराज को कप्तानी का आॅफर दिया गया। लेकिन भारतीय टीम का जो पूरा दौरा था वो अप्रैल से शुरु होकर अक्तूबर तक चलना था। इसलिए पटियाला और विजयानगरम के महाराजाओं ने अपने राज्यों को नहीं छोड़ने के इरादे से दौरे पर जाने से इनकार कर दिया।

पहले दौरे के लिए 2 अप्रैल 1932 को बॉम्बे के पोर्ट से ‘स्ट्रेथनेवर’ जहाज से टीम निकली। इस टीम में सात हिन्दू, पांच मुस्लिम, चार पारसी और दो सिक्ख खिलाड़ियों
को शामिल किया गया, जबकि कप्तानी का जिम्मा मिला पोरबंदर के महाराजा को। हालांकि उन्हें ये जिम्मेदारी उनके खेल की वजह से नहीं, बल्कि अच्छा बोलने की वजह से मिली थी। लेकिन जैसे ही टीम ब्रिटेन पहुंची और प्रैक्टिस या वार्मअप मैच खेले गए, तो ये साफ हो गया कि टीम को संभालना या कप्तानी पोरबंदर के महाराज के बस की बात नहीं है। उन्हें लेकर उस समय कई तरह के मजाक भी उड़ाए गए।

मैच से एक दिन पहले 24 जून 1932

ऐतिहासिक टेस्ट से ठीक एक दिन पहले पोरबंदर के महाराजा ने फैसला लिया कि वो कप्तानी से पीछे हटेंगे। साथ ही साथ उन्होंने कप्तानी का जिम्मा टीम के सदस्य कर्नल सी.के. नायडू को सौंप दिया। टीम के ज्यादातर खिलाड़ियों को आॅल इंडिया टीम के कप्तान के रुप में एक महाराजा या नवाब ही स्वीकार थे। फिर सी.के. तो एक आम आदमी थे। टीम के खिलाड़ियों ने मैच से पहले वाली रात बगावत कर दी और इस टीम के बागियों ने पटियाला के महाराजा से अपनी नामंजूरी जाहिर की। लेकिन पटियाला के महाराजा भूपेंदर सिंह ने कड़ा आदेश देकर कहा, टीम का नेतृत्व नायडू ही करेंगे और जो भी इसके विरोध में है, वो फिर कभी भारत के लिए नहीं खेलेगा।

ऐतिहासिक तारीख 25 जून 1932

फिर आई वो सुबह, जिसने भारतीय क्रिकेट टीम को जन्म दिया। लॉर्ड्स के मैदान पर डगलस जॉर्डिन के साथ पहले भारतीय कप्तान कर्नल सी.के. नायडू पवेलियन से निकले और सिक्का उछाला। इसके साथ ही भारत टेस्ट स्टेट्स हासिल करने वाला दुनिया का छठा देश बन गया।

हारकर भी ऐतिहासक है वो तारीख

भले ही भारतीय टीम उस मैच को हार गई, लेकिन उस दौरे से भारतीय क्रिकेट को बहुत से पॉजिÞटिव्स और खिलाड़ी मिले। 1932 के पहले टेस्ट की इस हार का बदला 25 जून के ही दिन भारतीय टीम ने 50 साल बाद लॉर्ड्स के मैदान पर लिया, जब कपिल देव की टीम ने इंग्लैंड में पहला विश्वकप खिताब जीता। आजादी से पहले इकलौते आम आदमी की कप्तानी में भारतीय टीम पहला टेस्ट हार गई। लेकिन उसकी कहानी आज भी भारतीय क्रिकेट को प्रेरणा देती है।

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