बेअदबी मामला: सीबीआई ने एक नहीं, बल्कि 49 लोगों की लिखाई का करवाया था मिलान

फरीदकोट। बेअदबी मामले में डेरा श्रद्धालुओं और पूज्य गुरू संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां पर आरोप लगाने वाली पंजाब पुलिस की एसआईटी वैज्ञानिक व पेशेवाराना जांच करने की बजाय केवल सत्तापक्ष पार्टी के इशारे पर काम कर रही है। यह कहना है डेरा श्रद्धालुओं के एडवोकेट विवेक गुलबद्धर और एडवोकेट बसंत सिंह सिद्धू का। पेश है वकीलों द्वारा सच-कहूँ के प्रतिनिधि सुखजीत मान से की गई बातचीत के मुख्य अंश:

सवाल: डेरा श्रद्धालुओं के खिलाफ बेअदबी मामले की बुनियाद क्या है?

जवाब: इस मामले की बुनियाद झूठ और पाप है। इस मामले में सबसे बड़ा झूठ महेन्द्रपाल बिट्टू को पुलिस ने गिरफ्तार करने का है जिसे पुलिस मान नहीं रही। महेन्द्रपाल बिट्टू मौत से पहले अपनी डायरी में लिखता है कि पुलिस ने उसे हिमाचल प्रदेश के पालमपुर से उठाया था लेकिन पुलिस ने पर्चे में कहीं भी हिमाचल प्रदेश का जिक्र नहीं किया। इससे बड़ी साजिश, पाप, बेईमानी और झूठ और क्या हो सकता है। बिट्टू कोटकपूरा में रहता ही नहीं था, वह हिमाचल में दुकान कर रहा था जहां से पुलिस उसे अगवा कर पंजाब लेकर आई थी।

सवाल: पुलिस दावा करती है कि बेअदबी की धमकी वाले पोस्टर सन्नी ने लिखे थे और उसकी लिखाई मिल गई?

जवाब: कोरा झूठ है, जब पुलिस ने तय ही कर लिया था कि डेरा श्रद्धालुओं को फंसाना है तो यह होना ही था। सीबीआई ने इस मामले की लंबी व वैज्ञानिक जांच की। पंजाब पुलिस ने केवल सन्नी की लिखाई का ही मिलान किया, जबकि सीबीआई ने इस मामले की बड़े स्तर पर जांच की और सन्नी सहित 49 व्यक्तियों की लिखाई का मिलान किया था, न तो सनी की लिखाई मिली थी और न ही किसी और व्यक्ति की। पुलिस ने अपने निश्चत प्लान के अनुसार केवल सन्नी की लिखाई का ही मिलान करवाया।

सवाल: सीबीआई की जांच को आप कैसे पुख्ता मानते हैं?

जवाब: सीबीआई ने मामले की जांच करते हुए बरगाड़ी और बुर्ज जवाहरसिंह वाला क्षेत्र के 100 से अधिक व्यक्तियों के बयान लिखे। गांव बुर्ज जवाहर सिंह वाला के श्री गुरुद्वारा साहिब के अंदर रहते गं्रथी गोरा सिंह और उनकी धर्मपत्नी सवरनजीत कौर के बयान भी लिखे। श्री गुरुद्वारा साहिब के आसपास बनीं दुकानों के दुकानदारों और ग्रामीणों से भी पूछताछ की। यहां तक कि उस क्षेत्र में आने वाले सब्जी व फल विके्रताओं और गैस वैल्डर के भी बयान लिखे गए जो कुछ घंटों के लिए ही आते हैं । इसी तरह आसपास काम करने वाले मनरेगा मजदूरों के भी बयान लिए गए। उक्त किसी भी व्यक्ति ने किसी भी डेरा श्रद्धालु को श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की चोरी करते हुए नहीं देखा। किसी ने भी इन डेरा श्रद्धालुओं को श्री गुरुद्वारा साहिब के आसपास भी नहीं देखा, यही नहीं उन्होंने कहा कि गांव बुर्ज जवाहर सिंह वाला के दो-चार किलोमीटर दूर तक भी नहीं देखा। कईयों को तो यह भी नहीं पता कि यह गांव है कौन सी तरफ।

सवाल: आजकल अपराधी मोबाइल फोन से पकड़े जाते हैं क्या इस तरह की कोई जांच की गई?

जवाब: सौ प्रतिशत हुई है, सीबीआई गांव बुर्ज जवाहर सिंह वाला के गांवों के फोन डंप प्राप्त कर फोन कॉल की जांच की गई जिसमें कहीं भी ऐसी कोई काल नहीं मिली।

सवाल: क्या सीबीआई ने जांच बंद करने की याचिका अदालत में डाली?

जवाब: नहीं, पंजाब पुलिस ने डेरा श्रद्धालुओं को किसी अन्य मामला में गिरफ्तार कर उनसे धक्केशाही से बेअदबी मामले में बयान लिखवा लिए और फिर यह सभी कागजात सीबीआई को सौंप दिए। पुलिस के पास बेअदबी की जांच नहीं थी। इसकी जांच सीबीआई कर रही थी, इसीलिए पुलिस ने राजनीतिक इशारे पर बस एक मामले का बहाना बनाकर डेरा श्रद्धालुओं पर अंधा अत्याचार कर उनसे जबरन बेअदबी के बयान लिखवा लिए। फिर पंजाब पुलिस ने यह रिकार्ड सीबीआई को सौंप दिया। सीबीआई ने डेरा श्रद्धालुओं के ब्रेन मैपिंग, वायस टैस्ट करवाकर हर तरह की जांच की, जिसमें डेरा श्रद्धालू निर्दोष साबित हुए। सीबीआई ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट केवल डेरा श्रद्धालुओं के खिलाफ मामला बंद करने के लिए पेश की थी न कि मामले की जांच बंद करने के लिए।

सवाल: सीबीआई ने किस-किसका ब्रेन मैपिंग और लाई डिटेक्टर टैस्ट करवाया?

जवाब: सीबीआई ने महेन्द्रपाल बिट्टू, शक्ति सिंह और सुखजिन्द्र सन्नी का ब्रेन मैपिंग, पोलीग्राफ, फिंगर प्रिंट, लाई डिटेक्टर टेस्ट समेत दर्जनों वैज्ञानिक टैस्ट करवाए थे। सीबीआई ने इन टेस्टों के लिए अदालत में याचिका डाली तो तीनों ने अपनी सहमति देकर टेस्ट करवाया था। यदि डेरा श्रद्धालु झूठे होते तो टेस्ट करवाने से भागते, आम मामलों में आरोपी ऐसे टेस्ट नहीं करवाते। कई बार अदालतें भी आरोपी की सहमति न देखकर जांच एजेंसी द्वारा दी गई टेस्ट करवाने की मांग की याचिका रद्द कर देती हैं। कई मामले में आरोपी के सहमत नहीं होने के बावजूद भी अदालतें ऐसे टेस्टों की मंजूरी दे देती हैं लेकिन डेरा श्रद्धालु सच्चे थे उन्होंने अदालत को टेस्ट करवाने के लिए हामी भरी, फिर ही उनके टेस्ट हुए तो उनमें कहीं भी वह दोषी साबित नहीं हुए।

सवाल: क्या डेरा श्रद्धालुओं के खिलाफ कोई चश्मदीद गवाह है?

जवाब: एक भी नहीं, यह तो राजनीति है। सत्तापक्ष पार्टी ने राजनीतिक बदलेखोरी के हित और डीआईजी रणबीर खटड़ा ने बिट्टू के सामने अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए बिट्टू को फंसाने के लिए सारा जाल बुना था।

सवाल: आप बेअदबी की घटना को साजिश कैसे मानते हैं?

जवाब: बेअदबी की घटना केवल बरगाड़ी में घटी। इसके अलावा 300 जगहों पर बेअदबी की घटनाएं घटी थी। हमारे देश में राजनीतिक जोड़-तोड़ के लिए नेता किसी भी हद तक भी पहुंच जाते हैं। विदेशी ताकतें भी देश का माहौल, भाईचारा खराब करने के लिए ऐसी साजिश रचती हैं। पुलिस के पास तो खाली पर्चे ही होते हैं, उसमें उन्हीं व्यक्तियों के नाम भरे जाते हैं, जिन्हें फंसाना होता है। इस तरह सत्तापक्ष पार्टी के लिए एक तीर दो निशाने वाली बात होती है।

सवाल: पुलिस की जांच इतनी संदिग्ध क्यों है?

जवाब: देखो पांच साल पुराने मामला में कुछ भी नहीं होता है लेकिन इतने गंभीर और पुराने मामले की जांच जुलाई 2020 में केवल दो दिन की गिरफ्तारी दौरान चालान पेश किया जाता है। देश के इतिहास में पुलिस का सबसे घटिया कारनामा इससे कोई और नहीं होगा। इसे कहते हैं राजनीतिक बदलेखोरी की सुपर रफ्तार।

सवाल: क्या इस मामले में कोई राजनीति भी है?

जवाब: यह पूरा मामला राजनीति से प्रेरित है। देखो! बेअदबी की घटनाएं कब हुई हैं, जब चुनावों में केवल डेढ़ साल का समय रह गया था। इस मामले को चुनावों में पूरी तरह इस्तेमाल किया गया, उस वक्त की अकाली-भाजपा सरकार को हराने के लिए। अब भी देखो मामला जुलाई 2020 में एकदम उठता है, पुलिस धड़ाधड़ गिरफ्तारियां कर चालान पेश करती है और चुनावों में तब (2020 में) भी डेढ़ साल का समय रह गया था। सब कुछ वोटों की खातिर हो रहा है।

सवाल: अदालत में आप क्या उम्मीद करते हैं?

जवाब: पुलिस के हाथ बिल्कुल खाली हैं, पुलिस के पास केवल झूठों की गठरी है यह केवल राजनीतिक खेल है। डेरा श्रद्धालुओं के खिलाफ कोई आरोप नहीं? झूठ की करारी हार होगी।

सवाल: डेरा श्रद्धालुओं को सीबीआई अदालत से जमानत मिल चुकी थी तो पंजाब पुलिस ने 2020 में डेरा श्रद्धालुओं को किस आधार पर गिरफ्तार किया?

जवाब: धक्केशाही से पकड़ा। पंजाब पुलिस ने धक्केशाही करते हुए अदालतों के आदेशों का भी ध्यान नहीं रखा, जिस बात के लिए पुलिस को फरीदकोट अदालत में शर्मिंदा भी होना पड़ा। देश के इतिहास में यह पहली बार होगा जब एक अदालत ने जिस मुकदमे में आरोपी को जमानत दी गई हो और उसी मुकदमे में पुलिस जमानत ले चुके आरोपी को गिरफ्तार कर ले। और सुनो, पुलिस अधिकारी कितने मचले हुए हैं जब अदालत ने पूछा तो पुलिस ने जवाब दिया कि हमें पता नहीं था कि सीबीआई की विशेष अदालत मोहाली से डेरा श्रद्धालुओं को जमानत मिली हुई थी। आखिर अदालत के आदेशों पर पुलिस ने डेरा श्रद्धालुओं को रिहा कर दिया।

सवाल: क्या यह अदालत की अवमानना का मामला बनता है?

जवाब: बिल्कुल, अदालत के आदेशों की अवमानना का मामला बनता है और यह केस हाईकोर्ट में लगाने की तैयार की जा रही है। इस मामले में संविधान के तहत जो भी प्रावधान हैं, उनके आधार पर पूरी कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी। हमें अदालत पर पूरा भरोसा है और झूठ का पर्दाफाश होगा।

सवाल: डेरा श्रद्धालुओं के खिलाफ पुलिस ने कोई बरामदगी दिखाई है?

जवाब: नहीं, किसी भी बरामदगी का संबंध डेरा श्रद्धालुओं के साथ नहीं। पुलिस ने धक्केशाही करने में कोई कसर ही नहीं छोड़ी। पुलिस ने 2015 में जिस गाड़ी को डेरा श्रद्धालुओं की गाड़ी बताया है वह संबंधित डेरा श्रद्धालु ने 2016 में खरीदी थी, सारी बात साफ है। डेरा श्रद्धालु निर्दोष हैं।

सवाल: डेरा श्रद्धालुओं का बेअदबी में नाम क्यों जोड़ा जा रहा है?

जवाब: यह तो कोई साजिश है, जो बेनकाब होनी चाहिए लेकिन डेरा श्रद्धालुओं के साथ इस मामले का कोई लेना-देना नहीं बनता। कई डेरा श्रद्धालू सिख ही हैं और जो सिख नहीं भी, वे भी सिख धर्म में विश्वास रखते हैं। एक सिख व्यक्ति या सिख धर्म में विश्वास रखने वाला अपने धर्म के पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी क्यों करेगा, लेकिन राजनीति में सबकुछ संभव है।

 

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