102वें पावन अवतार दिवस पर विशेष : नूर से भरपूर नूरानी चेहरा,अनामी से आया ‘शाह सतनाम जी’ मेरा

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अंधकार रूपी मायाजाल से प्रकाश रूपी परमार्थ पर व्यक्ति को लगाने वाली शक्ति का नाम ही गुरु है। गुरु का महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि सतयुग, त्रेतायुग व द्वापरयुग में जितने भी भगवान इस धरा पर अवतरित हुए उन्हें भी ‘गुरु’ धारण करना पड़ा। भगवान ने गुरु के रूप में स्वयं को प्रकट किया, इसलिए गुरु और भगवान में कोई भेद नहीं किया जाता। संत, पीर, फकीर, सतगुरु, परमात्मा का ही स्वरूप होते हैं। वे अपने महान परोपकारों द्वारा लोगों की बहुपक्षीय अगुवाई करके नये समाज की स्थापना करते हैं। ऐसी ही एक इलाही ज्योत सच्चे मुर्शिद-ए-कामिल पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के रूप में प्रकट हुई, जिन्होंने लोगों को नफरत, ईर्ष्या व अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकालकर भगवान को पाने का सच्चा व आसान मार्ग दिखाया। आपजी ने लोगों में भाईचारा, आपसी प्रेम और सौहार्द उत्पन्न करके जात-पात, ऊंच-नीच का भेदभाव मिटाया। डेरा सच्चा सौदा के दूसरे गद्दीनशीन पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने आध्यात्मिक तथा सामाजिक क्षेत्र में ऐसे कई मील पत्थर स्थापित किए जो सदैव मानवता के लिए मार्गदर्शक बने रहेंगे।

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आज ही के दिन 25 जनवरी 1919 को श्रीजलालआणा साहिब में धारण किया अवतार

पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने25 जनवरी 1919 को आदरणीय पिता सरदार वरियाम सिंह जी के घर पूजनीय माता आस कौर जी की पवित्र कोख से अवतार धारण किया। आप जी ने गांव श्रीजलालआणा साहिब तहसील, डबवाली, जिला सरसा (हरियाणा) में अवतार लिया। आप जी के आदरणीय पिता जी बहुत बड़े जमींदार थे तथा पूजनीय दादा सरदार हीरा सिंह जी इलाके के प्रसिद्ध जैलदार थे। पूजनीय माता-पिता जी ने आपका बचपन का नाम आदरणीय हरबंस सिंह जी रखा, परंतु गुरुगद्दी बख्शने के बाद डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी का नाम सतनाम सिंह जी रखा। आप जी सिर्फ 5 वर्ष के ही थे कि पूजनीय पिता जी सचखंड जा विराजे। पूजनीय माता जी की छत्रछाया में आप जी का पालन-पोषण पूजनीय मामा वीर सिंह जी के सहयोग से हुआ।

फकीर के वचन: आपका बेटा एक अद्भुत शक्ति है, ये आपके पास चालीस वर्ष तक ही रहेंगे

पूज्य पिता वरियाम सिंह जी धार्मिक विचारों के धनी थे, गरीबों, जरूरतमंदों की मद्द करना अपना प्रथम कर्तव्य समझते थे। एक बार पूज्य माता-पिता जी की मुलाकात रब्ब के सच्चे फकीर से हुई। वो फकीर पूज्य माता-पिता जी के साधु स्वभाव और सच्चाई व ईमानदारी की सेवा भावना से बहुत खुश थे। वो जब तक गांव श्री जलालआणा साहिब में रहे भोजन-पानी इसी घर से ही लिया करते थे। उस फकीर ने पूज्य माता-पिता जी से कहा भाई भगतो! आपकी सेवा परमेश्वर को मंजूर है। परमेश्वर आपकी मनोकामना जरूर पूरी करेंगे। आपके घर कोई महापुरूष ही जन्म लेगा और इस तरह पूज्य माता-पिता जी के विवाह के 17-18 वर्ष के बाद पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के रूप में पुत्र रत्न की दात प्राप्त हुई और पुत्र रत्न भी ऐसा कि प्रत्यक्ष ईश्वर का नूर। शहनशाही नूरी बाल मुखड़े को जो भी देखे बस देखता ही रह जाए। वहीं पूरे गांव में खुशियां मनाई गई। गुड़, शक्कर, मिठाइयां थाल भर-भर कर बांटी गई तथा अन्न-वस्त्र भी जरूरतमंदों को वितरित किए गए। वो फकीर भी इस शुभअवसर पर आए। उन्होंने आदरणीय सरदार वरियाम सिंह जी को बधाई देते हुए कहा कि ‘‘आपका बेटा एक अद्भुत दिव्य शक्ति हैै, ये आपके पास करीब चालीस वर्ष तक ही रहेंगे और फिर अपने असल उद्देश्य (मानवता व समाज के उद्धार) के लिए चले जाएंगे।’’ दिव्य बाल्यकाल से ज्यों-ज्यों आप जी बड़े होते गए। आप जी के दिव्य प्रकाश का दायरा और बड़ा होता चला गया। बाल्यकाल में आप जी के खेल भी ईश्वरीय ही थे। आपजी की बोलवाणी, हाव-भाव, चाल-ढाल, खेल-कूद हर क्रिया व हर कार्य में ईश्वरीय अनूभूति साफ झलकती थी।

बचपन से ही आप जी में दिखने लगी परमार्थ व दयालुता की झलक

एक बार किसी परिवार में बेटी की शादी थी। आर्थिक तंगी के कारण परिवार चिंतित था कि ये कैसे संभव हो पाएगा। आखिर वह परिवार भी पूज्य माता जी के पास मद्द के लिए आया कि शादी का दिन नजदीक है और घर में कुछ भी नहीं हो पाया है। पूजनीय परम पिता जी भी उस समय घर पर ही मौजूद थे, पूज्य माता जी अभी कुछ कहते, इससे पहले ही आप जी ने पूज्य माता जी से आग्रह किया कि माता ये लोग कितने रुपए चाह रहे हैं, इन्हें उनसे दो सौ रुपए ज्यादा ही दे देना, कार्य पूरा होने पर बच गए तब वापिस दे जाएंगे। नहीं भी लौटाएं तो माता जी, यह समझ लेना कि यह मेरी बहन की शादी है। आप जी की इस दयालुता व हमदर्दी से उस परिवार को कितना सुकून कितनी खुशी मिली होगी, वो ही जानते हैं?

परमात्मा प्राप्ति के लिए की पूर्ण गुरु की तलाश

बचपन से ही आप जी के अंदर प्रभु-परमात्मा को मिलने की सच्ची तड़प थी। इसी के चलते आप जी अपना ज्यादातर समय पवित्र धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन तथा साधु-संतों की संगत करने में गुजारते। आप जी ने परमात्मा की प्राप्ति के लिए पूर्ण गुरु की तलाश करनी चाही, जिसके लिए आप जी कई स्थानों पर गए तथा अनेक साधु-महात्माओं से मिले, परंतु कहीं भी आप जी को इस बारे में पूरी तसल्ली नहीं मिली। इसी दौरान आप जी का मिलाप परम पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज से हुआ। बेपरवाह शाह मस्ताना जी के दर्शनों तथा रूहानी सत्संग के इलाही वचनों से आप जी को बहुत संतुष्टि हुई। जिसकी आप जी को तलाश थी, वे सब नजारे प्रत्यक्ष रूप से बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के रूप में दिखाई दिए। आप जी को दृढ़ विश्वास हो गया कि पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ही पूर्ण सतगुरु हैं। बस उसी दिन से ही आप जी ने अपने आप को पूर्ण तौर पर पूजनीय बेपरवाह जी को अर्पण कर दिया। जहां भी बेपरवाह जी का सत्संग होता आपजी अपने साथियों सहित हर सत्संग में पहुंचते। इसके बाद आप जी ने पूरे तीन वर्ष लगातार बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के सत्संग सुने। इस दौरान आपजी ने कई बार नाम-शब्द लेना चाहा, परंतु बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज यह कहकर नाम वाले जीवों में से उठा देते कि ‘आप जी को अभी नाम लेने का हुक्म नहीं है। जब समय आएगा तो बुलाकर नाम देंगे।’

पूजनीय परम पिता जी का रहमो-कर्म

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने 23 सितम्बर 1990 को पूज्य मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को स्वयं डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह गुरगद्दी पर विराजमान किया। आप जी ने साध-संगत की सारी जिम्मेवारी पूज्य गुरु जी को सौंप दी। आप जी ने साध-संगत को वचन फरमाए, ‘‘अब हम अपनी युवा बॉडी (पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) में कार्य करेंगे, हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे’’। आप जी का यह अपार रहमो-कर्म साध-संगत कभी भुला नहीं सकती। आप जी की पावन शिक्षाओं का प्रसार करते हुए पूज्य गुरु जी ने रूहानियत के साथ-साथ समाज व मानवता भलाई के कार्यों से डेरा सच्चा सौदा को बुलंदियों पर पहुंचाया। पूज्य गुरु जी की पावन परमार्थी शिक्षाओं को आज देश व दुनिया के करोड़ों श्रद्धालु अपना ध्येय मानते हैं। आप जी ने डेरा सच्चा सौदा में मानवता व समाज-भलाई के 134 कार्य चलाए हुए हैं। आज देश ही नहीं पूरे विश्व में 6 करोड़ की साध-संगत व सेवादार इन कार्यों के माध्यम से दीन-दुखियों की मद्द करने में लगे हुए हैं। पूज्य गुरु जी की पावन-प्रेरणाओं से डेरा सच्चा सौदा का नाम पूरे विश्व-भर में जाना जाता है

कठीन परीक्षा: सार्इं जी के हुक्म पर आप जी ने तोड़ डाला अपना हवेलीनुमा घर

पूजनीय परम पिता जी जब से पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज की पावन दृष्टि में आए, उस दिन से ही सार्इं जी ने आप जी को अपना उत्तराधिकारी मान लिया था। इसलिए पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी की बहुत कठिन परीक्षा ली। पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी को अपना मकान गिराने तथा घर का सारा सामान डेरे लाने का हुक्म फरमाया। पूजनीय परम पिता जी ने दुनिया की लोक-लाज की जरा भी परवाह किये बिना अपने सच्चे मुर्शिद के वचनों पर फूल चढ़ाए। अपने हाथों से अपना हवेलीनुमा घर तोड़कर उस का सारा सामान र्इंटें, गार्डर, लकड़ी के शहतीर, बड़े-बड़े गेट तथा घर का सारा सामान ट्रकों तथा ट्रॉलियों पर लाद कर पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी की हजूरी में ले आए। इससे भी कठिन परीक्षा अभी बाकी थी। पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज ने फरमाया कि अपना सारा सामान डेरे से बाहर ले जाओ तथा इसकी रखवाली भी आप करो।

पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज के अनोखे रंगों के समक्ष आप जी ने सिर झुकाया तथा सारा सामान डेरे से बाहर ले आए। कड़ाके की ठंड में आप जी ने सारी रात बाहर गुजारी परन्तु आप जी के दिल में अपने मुर्शिद के प्रति दृढ़-विश्वास रत्ती भर भी नहीं डोला। अगले दिन आप जी ने घर के सामान की रक्षा से अधिक सेवा को उत्तम माना और सारा सामान सत्संग पर आई साध-संगत को अपने पवित्र कर-कमलों से बांट दिया। अपने गुरु के लिए आप जी के इस महान त्याग की मिसाल दुनिया में कहीं भी नहीं मिलती। आप जी की कठिन परीक्षा के बाद बेपरवाह सार्इं जी ने अपनी रहमत बरसाते हुए फरमाया कि हमने आप जी की कठिन परीक्षा भी ले ली परन्तु आप जी को पता नहीं लगने दिया। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी को अपने उत्तराधिकारी का खिताब बख्शा और आप जी का नाम सरदार हरबंस सिंह से ‘शाह सतनाम सिंह जी महाराज’ कर दिया। पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज ने फरमाया कि दुनिया जिस ‘सतनाम’ को ढूंढ़ती मर गई हमने उसे सबके सामने प्रकट कर दिया है।

‘‘आप को जिन्दाराम का लीडर बनाएंगे जो दुनिया को नाम जपाएगा’’

पूजनीय बेपरवाह जी ने एक बार रास्ते पर पूजनीय शाह सतनाम जी महाराज के पदचिन्ह पर अपनी लाठी से गोल दायरे का निशान बनाकर फरमाया ‘‘देखो भई ये रब्ब की पैड़ है। तभी एक सेवादार ने कहा कि ये पैड़ (पद चिन्ह) तो श्री जलालआणा साहिब के जैलदार वरियाम सिंह जी के बेटे सरदार हरबन्स सिंह जी की हैं। तब सार्इं जी ने अपने इलाही अंदाज में फरमाया, न हम किसी जैलदार को जानते हैं न किसी सरदार को जानते हैं। हम तो यह जानते हैं कि ये पैड़ (पद चिन्ह) रब्ब की है। पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने डेरा सच्चा सौदा ‘अनामी धाम’ गांव घूकांवाली में 14 मार्च 1954 को सत्संग फरमाने के बाद उसी सत्संग वाले चबूतरे पर खड़े होकर पूजनीय परम पिता जी को स्वयं आवाज लगाकर आदेश फरमाया, ‘हरबन्स सिंह!’ (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज का पहले का नाम) दरगाह से आज आप जी को भी नाम-शब्द लेने का हुक्म हो गया है। आप अंदर जाकर (नाम अभिलाषी जीवों में) हमारे मूढ़े के पास बैठो, असीं अभी आते हैं। आप जी ने अपने मुर्शिदे-कामिल के वचनों को सत्वचन कहकर अंदर चले गए, लेकिन मूढ़े के पास जगह खाली न होने के कारण आपजी उन नाम-अभिलाषी जीवों में पीछे ही बैठ गए। पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी को आवाज देकर अपने मूढ़े के पास बिठाया और ये ईलाही वचन फरमाया, ‘‘आप को जिन्दाराम का लीडर बनाएंगे जो दुनिया को नाम जपाएगा।’’ सच्चाई तो हमेशा अटल है, पता समय आने पर चलता है। तब ही नाम शब्द देने के बहाने बेपरवाह जी ने पूजनीय परम पिता जी की ईलाही ताकत को पूरी दुनिया के सामने प्रकट कर दिया।

रामनाम का बजाया डंका, नशों का किया खात्मा

पूजनीय परम पिता जी ने डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही के रूप में गद्दीनशीन होकर लगभग 30 वर्षों तक साध-संगत की सेवा संभाल की। आप जी ने साध-संगत को हक-हलाल की करके खाना, किसी का दिल न द:ुखाना व बुराइयों से दूर रहकर मालिक-प्रभु की सच्ची भक्ति करने, मालिक का नाम जपने और इंसानियत की सेवा में समय लगाना, सच के रास्ते पर दृढ़ता से चलने का साध-संगत को पाठ पढ़ाया। आप जी ने बेसहारों को सहारा प्रदान करके उन्हें सामाजिक घृणा का शिकार होने से बचाया और अच्छे नागरिक होने का अधिकार उन्हें वापिस दिलवाया। आप जी ने प्रचलित बाहरी दिखावा, रूढ़िवादी प्रथाओं का खंडन किया। आप जी ने सीधी-सादी लोक प्रचलित भाषा में राम-नाम का प्रचार किया। घर-परिवार व समाज के हर कार्य में संयम बरतने, सीमित परिवार में रहकर बच्चों की अच्छी तरह से देखभाल करना, उन्हें अच्छी शिक्षा देकर बुराइयों से रोककर प्रभु-भक्ति में लगाना आप जी का संदेश रहा। आप जी ने 11 लाख लोगों को नाम की अनमोल दात प्रदान करके नशों व अन्य बुराइयों से बाहर निकाला। आप जी ने कई ग्रंथों व भजनों की रचना की जिनकी भाषा इतनी सरल, साधारण है कि कोई भी साधारण व्यक्ति पढ़कर समझ सकता है।

गुरुगद्दी बख्शिश: आत्मा से परमात्मा

सच्चे पातशाह सार्इं बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने सरेआम संगत में वचन फरमाया कि ‘‘सरदार हरबंस सिंह जी को आज से सरदार सतनाम सिंह जी पूजनीय (परम पिता शाह सतनाम जी) किया। उन्हें आत्मा से परमात्मा बना दिया है। सतनाम वो ताकत, जो खंडों, ब्रह्मांडो को सहारा दिये खड़ी है। सारे खंड-ब्रह्मंड जिनके सहारे हंै ये वो ही सतनाम हैं।’’ दिनांक 28 फरवरी 1960 को बेपरवाह सार्इं जी ने आपजी को पूर्ण गुरु मर्यादा पूर्वक डेरा सच्चा सौदा में दूसरे पातशाह के रूप में अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। आपजी को सिर से पांवों तक नोटों के लम्बे-लम्बे हार पहनाए गए और एक सुंदर गाड़ी (जीप) में विराजमान कर पूरे सरसा शहर में प्रभावशाली जुलूस के रूप में घुमाया।

तमाम साध-संगत उस बेपरवाही जुलूस में साथ थी ताकि दुनिया को भी पता चले कि पूजनीय बेपरवाह जी ने पूजनीय परम पिता जी को गुरूगद्दी प्रदान कर डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरे पातशाह विराजमान किया है। उपरांत पूज्य बेपरवाह जी ने आपजी को डेरा सच्चा सौदा में विशेष तौर पर बनाई गई तीन मंजिला शहनशाही ‘अनामी गुफा’ में सुशोभित कर वचन फरमाये कि ‘न ये हिल सके और न ही कोई हिला सके। सार्इं जी ने फरमाया, असीं अपने प्यारे मुर्शिद सार्इं सावण शाह दातार के हुकुम से सरदार सतनाम सिंह जी को आत्मा से परमात्मा कर दिया है। ये अनामी गुफा सरदार सतनाम सिंह जी को असीं इनकी कुर्बानी के बदले ईनाम में दी है, वरना हर कोई यहां रहने का अधिकारी नहीं है और उसी दिन से बेपरवाह जी ने आपजी को अपने साथ ही शाही स्टेज पर बिठाया।

ज्योति-जोत: बदला चोला

पूर्ण पीर फकीर की ज्योति अजर-अमर होती है और पूर्ण संत महात्मा जन्म-मरण के बंधन से आजाद होते हैं। वह स्वयं इस काल के देश में रहकर भी उसके बंधन में नहीं होते क्योंकि वे खुद ही खुदा का रूप होते हैं। काल को बनाने वाला भी वह परम पिता परमात्मा है। चोला बदलने से एक दिन पहले पूज्य परम पिता जी ने सभी सत ब्रह्मचारी सेवादारों को गुफा में बुलाया। जहां पूजनीय परम पिता जी कुर्सी पर खूबसूरत कंबल ओढ़कर शांतमय तरीके से विराजमान थे। आप जी के पास ही कुर्सी पर पूजनीय गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां विराजमान थे। सभी सेवादार अपने पूर्ण मुर्शिद के बड़े ही शांत भाव से दर्शन कर रहे थे। सभी सेवादारों के मन में एक अटूट वियोग सा पैदा हो रहा था क्योंकि पूज्य गुरु जी का दो दिन पहले इशारा हो चुका था। जिससे यह प्रतीत हो रहा था कि पूजनीय परम पिता जी हमारे बीच अब शारीरिक स्वरूप में कुछ ही दिन हैं और हुआ भी ऐसा ही। अगले ही दिन 13 दिसम्बर-1991 दिन शुक्रवार समय 12 बजकर 13 मिनट पर पूजनीय परम पिता जी ने अपनी रूहानी यात्रा पूरी करके चोला बदला।

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