वैज्ञानिक नजरिया ही समाधान

SYL Canal

सतलुज-यमुना लिंक नहर ( SYL Canal ) का मामला एक बार फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार पंजाब व हरियाणा दोनों राज्यों की सरकारों ने 14 अक्टूबर को बैठक करने का निर्णय लिया है। भले ही पहले भी कई बैठकें हुई, जिनमें कोई समाधान नहीं निकल सका लेकिन बातचीत का सिलसिला शुरू होना एक शुभ संकेत है। यह प्रक्रिया न्यायालय के बाहर बातचीत से समस्या के समाधान की है। मामला भले ही पानी का है, लेकिन इससे पहले भी बात नहर के निर्माण की है। नहर का हरियाणा वाला हिस्सा बन चुका है, दूसरी तरफ पंजाब में नहर का निर्माण अभी अधूरा है। तकनीकी तौर पर नहर का निर्माण व पानी अलग-अलग मुद्दे बने हुए हैं।

लंबे समय तक यह नहर विवाद व राजनीतिक फायदे-नुक्सान का कारण बन रही है। विवाद ना सुलझने का कारण यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। निर्माण मामले में पंजाब अपना केस हार गया था लेकिन पंजाब में पिछले तीन दशकों में कोई भी सरकार पानी देने को तैयार नहीं थी इसीलिए पंजाब सरकार नहर के निर्माण के लिए तैयार ही नहीं हुई। दूसरी तरफ हरियाणा नहर के पानी पर अपने हक जता रहा है। हरियाणा के लिए यह संतुष्टिजनक बात है कि नहर के निर्माण संबंधी फैसला उसके समर्थन में आ चुका है। दरअसल, इस मामले में राजनीति ही इतनी हो चुकी है कि कोई भी सरकारें या राजनीतिक पार्टी अपने पुराने रूख को बदलने के लिए तैयार नहीं थी। वास्तव में इस पेचीदे मामले का वैज्ञानिक नजरिये से समाधान निकाला जाना चाहिए। दोनों राज्य पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। भू-जल स्तर लगातार गिरता रहा है।

दोनों राज्यों में कृषि में ऐसे कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं आए, जिससे कम पानी से बड़े स्तर पर फसलों की बिजाई शुरू हुई हो या पानी की बचत के लिए किसी तकनीक को इजाद किया हो। घरेलू पानी का भारी स्तर पर दुप्रयोग हो रहा है। जहां तक संवैधानिक व्यवस्था व कानून क्षेत्र का जिक्र है जल स्त्रोतों के प्रयोग संबंधी कोई ठोस कानून न होने के कारण यह मामला इतना पेचीदा हो गया है। पंजाब जहां रायपेरियन सिद्धांतों का तर्क देता है वहीं हरियाणा पंजाब का अंग रहा होने के कारण पंजाब के प्राकृतिक स्त्रोतों में अपने हिस्से का दावा करता है। फिर भी दोनों सरकारों को राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर वैज्ञानिक व देश हित की भावना से मामले के समाधान के लिए पहल करनी चाहिए। वैज्ञानिक विचारधारा से ही हर समस्या का समाधान संभव है। यदि दोनों पक्ष सकारात्मक रवैये से आगे बढ़ें, तब समस्या की कठोरता काफी हद तक घट सकती है।

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