धुंध से दुर्घटनाओं का कहर

The fog has caused dozens of road accidents in the country.

गत कई दिनों में उत्तरी भारत कड़ाके की ठंड से दो-चार हो रहा है। देश में धुंध के कारण दर्जनों सड़क दुर्घटनाएं हो चुकी है। ऐसी दुर्घटनाएं हरियाणा तथा अन्य राज्यों में भी हो रही हैं। धुंध के कारण सड़कों पर आमने-सामने भिडंÞत होने से असंख्य जानें जा रही हैं। लगभग प्रत्येक वर्ष ही धुंध के कारण दुर्घटनाएं होती रहती हैं परंतु यातायात विभाग द्वारा कोई खास कदम नहीं उठाए जा रहे। एक-दो दिन राष्टÑीय राजमार्ग पर चालान काटने से आवागमन की व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो सकती। दुर्घटनाओं की संख्या कम करने के लिए जहां यातायात विभाग को सुस्ती छोड़नी होगी, वहीं लोगों में यातायात नियमों को मानने की आदत डालनी होगी। सघन धुंध के बावजूद अधिकतर लोग आवश्यकता से तेज गति से गाड़ियां चलाते हैं।

गलत ओवरटेक तथा कई अन्य गलतियों के कारण दुर्घटनाएं होती रहती हैं। लोगों को यह बात समझनी होगी कि कभी न पहुंचने से देर भली है। दूसरी ओर सरकार को भी सड़कों व पुलों की हालत में भी सुधार लाना होगा। नहरों और माइनरों के असंख्य पुल टूटे हुए हैं। खास करके ग्रामीण क्षेत्र में पुलों की टूटी हुई रैलिंग की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता। शहरी क्षेत्र में मंत्रियों के गुजरने के कारण या किसी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के शिरकत के कारण मजबूरन प्रशासनिक अधिकारी सड़कों की मरम्मत या नवनिर्माण करवा देते हैं परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को अपनी जान अपनी ही सावधानी से बचानी पड़ती है।

ग्रामीण लोग प्रत्येक दिन आने-जाने के कारण पुलों की दयनीय हालत से रूबरू होते हैं परंतु जब कोई नया व्यक्ति देर-सवेर उधर से गुजरता है तो जानकारी न होने के कारण दुर्घटना का शिकार हो जाता है। बढ़ रही दुर्घटनाओं के कारण यात्रा पर जा रहे व्यक्ति को यह विश्वास नहीं रह गया कि वह सुख-शांति से वापस घर लौट भी आएगा या नहीं। आश्चर्य यह है कि चीन हमारे देश से कई गुणा बड़ा है, वहां दुर्घटनाओं में कमी हुई है परंतु हमारे देश में दुर्घटनाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है।

हम सड़क सुरक्षा सप्ताह भी हंसी के रूप में मनाते हैं। सड़क सुरक्षा सप्ताह समस्या कम करने की बजाय स्वयं समस्या बनता जा रहा है। लोगों को जागरूक करने के लिए सड़क पर दी जाने वाली जानकारी जाम का कारण बन रही है। दशकों से चली आ रही रेलवे की मानव रहित फाटकों की समस्या ज्यों की त्यों है। खुले फाटकों के कारण प्रत्येक वर्ष दुर्घटनाएं होती हैं परंतु रेलवे विभाग पैसे की कमी का बहाना बनाकर फाटक मैन का पद नहीं भर रहा।

यह भी देखा जा रहा है कि मंत्रियों या सरकार के चहेतों की निजी बसों के लिए कोई कानून नहीं है, मौसम साफ हो या खराब वह सड़क के बीचों-बीच बस खड़ी कर सवारी चढ़ाएं या उतारे तब भी उनको कोई पूछने वाला नहीं। दरअसल नियमों और कानूनों को खूंटी पर टांगने की शुरुआत राजनीतिक व प्रशासनिक पहुंच वाले लोगों से ही शुरू होती है। यातायात व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए जहां देश भर में यातायात विभाग को स्वयं नेतृत्व देने की आवश्यकता है, वहीं आम लोगों को जागरूक होना चाहिए अन्यथा ट्रैफिक नियमों की अनदेखी के चलन के कारण कानून का आम लोगों की नजर में कोई महत्व नहीं रह जाएगा।

 

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