चाचा-भतीजे की जोड़ी ने खोजा ठहरे पानी से बिजली बनाने का फार्मूला

Chacha Bhatija
चाचा-भतीजे की जोड़ी ने खोजा ठहरे पानी से बिजली बनाने का फार्मूला

पहले भी कई सफल प्रयोग कर चुके मेवात के स्वर्ण सिंह व अंजू | Chacha Bhatija

सच कहूँ/संजय कुमार मेहरा
गुरुग्राम। अभी तक तो बहते पानी से, हवा से, सोलर पैनल से, कोयला से, डीजल-पेट्रोल से मुख्यत: ऊर्जा पैदा की जाती रही है। कोयला, डीजल-पेट्रोल से प्रदूषण फैलता है। लेकिन अब प्रदूषण रहित ठहरे हुए पानी से भी ऊर्जा पैदा की जा सकेगी। इसका सफल प्रयोग किया है हरियाणा के अति पिछड़ा क्षेत्र कहे जाने वाले मेवात के रहने वाले चाचा-भतीजा स्वर्ण सिंह व अंजू ने। इस प्रयोग को सिरे चढ़ाने के लिए उन्हें एक-दो नहीं, बल्कि 17 साल लगे हैं। अब उन्होंने इस प्रोजेक्ट को पेटैंट कराने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री को भेजा है।

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वर्ष 1983 में दसवीं पास करने के बाद संसाधनों के अभाव में पढ़ाई छोड़ देने वाले स्वर्ण सिंह अपने हर प्रोजेक्ट की सफलता में भतीजे अंजू को बराबर का श्रेय देते हैं। अंजू मात्र 14 साल की उम्र से ही उनके साथ कुछ नया करने के प्रयोग में जुटा है। वह भी दसवीं पास ही है। ये दोनों शुरू से ही कुछ नया करने के लिए प्रयोग करते रहते थे। कई प्रोजेक्ट पर उन्होंने काम किया और सफलता भी पाई।

वर्ष 2006 में शुरू किया था प्रयोग | Chacha Bhatija

उन्होंने पानी के स्टोरेज से बिजली उत्पन्न करने का प्रयोग 17 साल पहले वर्ष 2006 में शुरू किया था। उनकी शिक्षा भले ही कम थी, लेकिन दिमाग में विजन बड़ा था। इसलिए उन्होंने एक के बाद एक विफलताओं के बाद भी हार नहीं मानी। हर बार गिरे यानी हारे और फिर उठकर चले। स्वर्ण सिंह के मुताबिक स्टोरेज यानी खड़े पानी से बिजली बनाने के उनके 10 बार के प्रयोग फेल हुए और 11वीं बार कामयाबी हासिल हुई। इस प्रोजेक्ट के बारे में उन्होंने बताया कि उनके द्वारा बनाया गया ग्रेवटी फोर्स इंजन पानी में अप-डाउन यानी ऊपर-नीचे होते हुए ऊर्जा पैदा करती है। एक मशीन पानी के बाहर रहती है और दूसरी पानी के भीतर। इस मशीन को उन्होंने नाम दिया है-ग्रेप्टी फोर्स इंजन। इसके माध्यम से ही उन्होंने बिजली पैदा करने के प्रयोग को सिरे चढ़ाया है। इसमें जीरो प्रतिशत प्रदूषण है।

दो सफल प्रयोग का हो चुका है पेटैंट | Success

चाचा-भतीजे की इस जोड़ी के दो सफलतम प्रयोगों को सरकार की ओर से पेटैंट भी दिया जा चुका है। इसमें एक है इंजन का चौकीदार और दूसरा मैकेनिकल वाटर ओवरफ्लो का कंट्रोल सिस्टम। स्वर्ण सिंह व अंजू बताते हैं कि खेतों में जब किसान इंजन से ट्यूबवैल चलाकर पानी देता है तो कई दिक्कतें आती हैं। कभी पट्टा उतर जाता है, कभी डीजल खत्म हो जाती है। ऐसे में किसान की भागदौड़ बनी रहती है। किसान निश्चिंत होकर खेत में काम करते रहे, इसके लिए उन्होंने एक उपकरण की खोज की। इसे इंजन का चौकीदार नाम दिया गया।

इंजन में लगने वाला यह उपकरण जब भी कोई गड़बड़ी होती है तो इंजन को बंद कर देता है। इससे इंजन क्षतिग्रस्त होने से बच जाता है। वर्ष 2004 में इसे बनाया गया था, जिसकी कीमत भी मात्र 1000 रुपये रखी गई। हरियाणा, यूपी, राजस्थान, पंजाब समेत कई राज्यों में यह उपकरण किसानों ने इंजन में लगाया है। इसी तरह से मैकेनिकल वाटर ओवरफ्लो का कंट्रोल सिस्टम नामक उपकरण भी तैयार किया। इसकी खासियत यह है कि यह बिना बिजली के ही काम करता है। जब भी टैंक भर जाता है तो यह मोटर को बंद कर देता है।

स्कूल, इंजीनियरिंग कालेज के छात्रों, शिक्षकों ने भी सराहा | Chacha Bhatija

अपने इस प्रयोग की सफलता के बाद स्वर्ण सिंह ने स्कूल, इंजीनियरिंग कालेज से विज्ञान के अध्यापकों, विद्यार्थियों और प्रशासनिक अधिकारियों को प्रोजेक्ट देखने के लिए आमंत्रित किया। सभी ने उनके इस प्रोजेक्ट को सराहा और इसे भविष्य के लिए बेहतर बताया। स्वर्ण सिंह दावे के साथ कहते हैं कि इस प्रोजेक्ट को विश्वभर में कोई फेल नहीं कर सकता। उनका कहना है कि यह प्रोजेक्ट फिजिक्स के दायरे से बाहर है, लेकिन यह अपने आप में 100 फीसदी सत्य भी है। इस प्रयोग से सोलर पैनल से चार गुणा कम कीमत पर चार गुणा अधिक पावर मिलेगी। 24 घंटे इससे ऊर्जा का उत्पादन होगा। उन्होंने अपने इस सिद्धांत को पेटैंट कराने यानी सरकार की मान्यता दिलाने के लिए प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखा है। जहां से रिसीविंग का पत्र उन्हें भेजा गया है। इस पर आगामी कार्यवाही का इंतजार है। उन्होंने दावा किया है कि विश्व में इस तरह का प्रयोग पहली बार हुआ है।

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