किसी का हाल जानने के लिए क्या सरकारी मंजूरी लेनी होगी

Will government approval be required to know someone's well being
देश में राह चलते किसी मजदूर से आप उसकी पीड़ा जानकर उसे कुछ हौसला या मदद देना चाहते हैं तब शायद आपको इसके लिए सरकार की अनुमति लेनी होगी, अनुमति नहीं भी लेनी पड़े तब भी शायद आपको सरकार से कुछ सुनना पड़ सकता है, कि मजदूरों का वक्त बर्बाद ना करिये, उन्हें भूखे-प्यासे चलते रहने दें। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कुछ मजदूरों के साथ बैठकर उनका हालचाल क्या जान लिया, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को गुस्सा आ रहा है। निर्मला सीतारमण खुद क्यों नहीं सड़क पर किसी मजदूर का हाल चाल जानने गई? देश के लाखों-करोड़ों प्रवासी मजदूर भूखे-प्यासे, तपती धूप में बच्चे-महिलाएं, बुजुर्ग, अपंग सड़कों पर भटक रहे हैं, सरकार घोषणाएं व आंकड़ों को पेश करने में लगी है। राहुल गांधी ही नहीं बल्कि इस वक्त हर नेता को इन गरीबों की मदद के लिए आगे आना चाहिए।
कितना अच्छा होता सरकार राहुल से जान लेती कि मजदूरों के उनसे क्या कहा? जवाब देना चाहिए था कि राहुल हम सरकार के लोग मजदूरों की मदद करेंगे। मजदूर हकों की बात करने वाले, उनकी मजदूरी से भी चंदा वसूल लेने वाले आज वामपंथी नेता भी गायब हैं। सरकार व नेताओं से ज्यादा धार्मिक व समाजसेवी संगठन गरीब-लाचारों की मदद कर रहे हैं। सरकार को भी ये धर्मस्थान व समाजसेवी संगठन मदद कर रहे हैं। हरियाणा में भाजपा की सरकार मजदूरों पर लाठियां बरसा रही है, कर्नाटक की भाजपा सरकार ने बिल्डर व उद्योग लॉबी की फिक्र में मजदूरों को जबरदस्त रोकने का प्रयास किया। यूपी सरकार मजदूरों के लिए अपनी सीमा बंद कर लेती है, क्यों? क्या निर्मला सीतारमण व उनके राज्य स्तीय नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बात भूल गए जब लॉकडाउन के शुरू में ही उन्होंने राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर देश के लिए एक होने का आह्वान किया था। अब विपक्षी नेता देश हित में डटे हैं तब वित्तमंत्री क्यों राजनीति कर रही हैं? देश का गरीब तबका वास्तव में बहुत गंभीर संकट से गुजर रहा है, सरकार को थोड़ा संवेदनशील होना होगा।
सरकार को खुद सड़क पर उतर कर जमीनी सच्चाईयां देखनी चाहिए कि किस तरह अफसरशाही सरकार को बेवकूफ बनाने में लगी है। कोरोना महामारी में पुलिस, चिकित्सा, विभाग व धार्मिक-सामाजिक संस्थानों ने देश को संभाला है। सरकार व सिविल प्रशासन इसमें पीछे रह गया है, सरकार को अपनी कमियां देखनी होंगी। सोचिये, अगर सड़कों पर बेवस लोगों की भीड़ नहीं होती तो राहुल किसका वक्त बर्बाद करते? सरकार को राहुल का नोटिस लेने की बजाय प्रशासन का नोटिस लेना चाहिए कि क्यों प्रशासन ने गरीबों की बेवसी को अनदेखा कर सरकार से ट्रेन व यातायात की व्यवस्था की आज्ञा नहीं ली। हर जिले से यही दावे किए गए कि गरीबों को यहां रखा गया है वहां पूरी सरकारी सुविधाएं हैं। सरकार को मानना होगा कि उसकी व्यवस्थाएं व उसके सारे आकलन कागजी साबित हुए हैं। सरकारी प्रबंध कागजी क्यों साबित हो रहे हैं, इसका जवाब ढूढ़ा जाए।

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