40 साल पहले तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने एसवाईएल की खुदाई को चलाई थी कस्सी

PM Indira Gandhi sachkahoon

8 अप्रैल 1982 को किया था शुभारंभ, लेकिन आज बनकर रहे गई सिर्फ एक मुद्दा

  • सुप्रीम कोर्ट से हरियाणा की जीत के बाद भी नहर की खुदाई नहीं कर रहा पंजाब

सच कहूँ/संजय मेहरा, गुरुग्राम। सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर पिछले 40 साल से राजनीति का केन्द्र बिंदू रही है। 8 अप्रैल 1982 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (PM Indira Gandhi) ने एसवाईएल नहर की खुदाई के लिए पंजाब के गाँव कपूरी में जाकर कस्सी चलाते हुए काम की शुरूआत की थी। वर्तमान में एसवाईएल की स्टेट्स रिपोर्ट देखें तो पता चलता है कि पंजाब में एसवाईएल का अस्तित्व ही मिटाया जा रहा है। केन्द्र और हरियाणा-पंजाब में सरकारें भी एक ही पार्टी की रही हैं, मगर एसवाईएल पर कोई भी पार्टी काम पूरा नहीं कर सकी है।

बता दें कि सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर की लंबाई 212 किलोमीटर है। इस 212 किलोमीटर में से 121 किलोमीटर का हिस्सा पंजाब राज्य में आता है और 91 किलोमीटर का हिस्सा हरियाणा में। पंजाब की तरफ से नहर की खुदाई के लिए जब इंदिरा गांधी (PM Indira Gandhi) ने शुरूआत की थी, तब कुछ समय के लिए राजनेताओं में जोश जरूर रहा, लेकिन बाद में सब ठंडे हो गए। हालांकि हरियाणा राज्य की ओर से इससे पूर्व ही यानी 1980 में अपने हिस्से की 91 किलोमीटर लंबी नहर बनाकर तैयार कर दी थी।

बड़े-छोटे भाई पंजाब व हरियाणा के बीच एसवाईएल के विवाद को समाप्त करने के लिए इंदिरा गांधी ने 31 दिसंबर 1981 को उस समय के सिंचाई मंत्री राव बिरेंद्र सिंह की मौजूदगी नए सिरे से समझौता भी करवा दिया था। इस समझौते के बाद विवाद के समाप्त होने की उम्मीदों को पंख लगे थे। लेकिन पंजाब में इस पर विरोध के स्वर उठने लगे। खूब विवाद हुए। एसवाईएल नहर के विवाद में कहने को तो सुप्रीम कोर्ट ने भी दो बार हरियाणा के पक्ष में निर्णय दिया है, लेकिन इसे लागू करने में आज भी सरकारें सफल नहीं हो पाई हैं।

अलग राज्य बनने के दौरान हुआ था जल समझौता

अंतरराज्यीय (इंटर स्टेट) जल समझौते के तहत वर्ष 1966 में हरियाणा का अलग राज्य के रूप में गठन होने पर सतलुज नदी के पानी को यमुना में लाने के लिए लिंक (जोड़) नहर बनाने पर सहमति बनी थी। यानी यह जल समझौता हुआ था। उस समय हरियाणा ने 7.2 मीलियन एकड़ फुट पानी में से 4.2 एकड़ फुट पानी पर अपना अधिकार जताया था। पंजाब इस पर राजी नहीं हुआ। इसके बाद वर्ष 1976 में केन्द्र सरकार द्वारा हस्तक्षेप किया गया।

उस समय हरियाणा को 3.5 एमएएफ आवंटित किया गया। इसी पानी को हरियाणा की धरती तक लाने के लिए एसवाईएल नहर बनाने का निर्णय हुआ था। वर्ष 1980 में हरियाणा की ओर से पानी लाने के लिए अपने हिस्से की 91 किलोमीटर लंबी नहर को बनाकर तैयार कर दिया। इसके बाद भी पंजाब ने एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया। आखिरकार मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया।

वर्ष 1985 में हुआ राजीव-लोंगोवाल समझौता

आंदोलन के बीच 31 दिसंबर 1981 को इंदिरा गांधी (PM Indira Gandhi) ने हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों के साथ मीटिंग करके नए सिरे से समझौता कराया और सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस लेने पर सहमति बनाई गई। समझौते में उस समय के केन्द्रीय सिंचाई मंत्री राव बिरेंद्र सिंह को विशेष रूप से शामिल किया गया। तत्पश्चात 8 अप्रैल 1982 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पंजाब के हिस्से में नहर का काम पूरा करने के लिए खुद कदम बढ़ाए। वे पंजाब के गांव कपूरी पहुंची और वहां खुद कस्सी चलाकर इस काम की पहल की।

पंजाब के लोगों ने इंदिरा गांधी (PM Indira Gandhi) के इस काम से असहमति जताई और वहां कुछ काम होने से पहले ही संत हरचंद सिंह लोंगोवाल के नेतृत्व में शिरोमणी अकाली दल ने आंदोलन छेड़ दिया। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। साल 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी व संत हरचंद सिंह लोंगोवाल के बीच समझौता हुआ। इसे राजीव-लोंगोवाल समझौता के नाम से जाना जाता है। इसके अगले साल यानी अगस्त 1986 में एसवाईएल नहर का काम पूरा करने पर सहमति बनाई गई।

उग्रवादियों ने की दो इंजीनियर व 35 मजदूरों की हत्या

इसी बीच पंजाब में उग्रवादियों ने सिर उठाया और नहर के निर्माण काम में जुटे दो वरिष्ठ अभियंताओं (सीनियर इंजीनियर) व 35 मजदूरों की हत्या कर दी। सरकार ने नहर निर्माण का काम इस घटना के बाद बंद कर दिया। इसके 10 साल बाद साल 1996 में हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।

सुप्रीम कोर्ट में वर्षों तक यह मामला चलता रहा। कई दौर की सुनवाई हुई। आखिरकार वर्ष 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के हक में फैसला सुनाया। बात फिर भी नहीं बनी। इसमें फिर से सुनवाई को आगे बढ़ाया गया। साल 2004 में फिर से सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय सुनाया। इस बार भी निर्णय हरियाणा के ही पक्ष में सुनाया गया। यानी पंजाब सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट से भी हार चुका था, वह भी दो बार।

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