क्या प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का परिणाम है कोरोना और तूफान, जानें प्रसिद्ध पर्यावरणविद् की जुबानी

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नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अनिल प्रकाश जोशी ने मंगलवार को कहा कि विलासितापूर्ण जीवन के लिए पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ के कारण ही कोरोना महामारी और बार बार चक्रवाती तूफानों का लोगों को सामना करना पर रहा है। पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित डॉक्टर जोशी ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् की ओर से आयोजित एक व्याख्यान में कहा कि मनुष्य ने अपने जीवन को सरल बनाने और विलासितापूर्ण जीवन के लिए प्रकृति के साथ अत्याचार किया है जिसके कारण बीमारियां तथा प्राकृतिक आपदा बार बार आ रही है। इस अवसर पर परिषद् के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा भी उपस्थित थे।

विकास के नाम पर वनों को समाप्त कर दिया गया

उन्होंने कहा कि आज इकोलॉजिकल असुरक्षा कि स्थिति पैदा हो गई है। इकोलॉजी को ध्यान में रखकर अर्थ व्यवस्था की रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए। वन से हमें जीवन, पानी, भोजन और स्वच्छ हवा मिलती है लेकिन विकास के नाम पर वनों को समाप्त कर दिया गया जिसके कारण मिट्टी और हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो गई। कोरोना संक्रमण के दौरान लोगों को जीवन बचाने के लिए प्राकृतिक ऑक्सीजन की जगह कृत्रिम ऑक्सीजन का सहारा लेना पड़ा ।

देश में 19 प्रतिशत वन क्षेत्र होने का दावा

माउंटेन मैन के नाम से विख्यात डॉक्टर जोशी ने कहा कि मनुष्य को सर्वोपरी नहीं समझना चाहिए प्रकृति से ऊपर कुछ भी नहीं है। कोरोना एक जगह फैला और पूरी दुनिया में फैल गया। उन्होंने सवाल किया कि देश में 19 प्रतिशत वन क्षेत्र होने का दावा किया जाता है लेकिन इसमें प्राकृतिक वन कितना है। जिस जंगल में आग लगने से पेड़ जल जाते हैं वह क्षेत्र वन की परिभाषा में नहीं आता है।

जोशी ने गलेशियर की स्थिति पर चिंता जाहिर की

उन्होंने कहा कि प्रकृति ने एक केमिकल सिस्टम दिया है जो एक दूसरे पर निर्भर है। अब इसका उल्लंघन हो रहा है । उन्होंने ग्लेशियर की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि हिमालय क्षेत्र में सालाना चार पांच मीटर की दर से ग्लेशियर काम हो रहा है। लद्दाख में तो यह दर पांच छह मीटर सालाना है। पहले ग्लेशियर से 70 प्रतिशत जल मिलता था। नदियां सूख गई है, यमुना रो रही है और गंगा पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

पर्यावरणविद् ने कहा कि समुद्र में ग्लेशियर टूट कर बह रहे हैं। समुद्र में प्लास्टिक कचड़ा विचलित करने वाली है। उन्होंने कहा कि विज्ञान की परिभाषा में विकल्प की तलाश की गई। विज्ञान ने कुछ अविष्कार किए जिससे नई-नई समस्याएं पैदा हुई। लोग चांद और मंगल पर जाने की बात कर रहे हैं और पृथ्वी के साथ अत्याचार किया जा रहा है।

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