बठिंडा के एडवांस कैंसर इंस्टीच्यूट में जिस प्रकार से मरीजों की रजिस्टेÑशन हुई है, वह बेहद चिंता का विषय है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस सेंटर में 2016 में 11000 मरीजों का नाम दर्ज किया गया था, जो 2021 में 82 हजार तक पहुंच गया। यह केवल बठिंडा पट्टी के आंकड़ें हैं। यदि मालवा के अन्य जिलों, दोआबा और माझा के आंकड़ों को जोड़ा जाए तब इस स्थिति बहुत ही भयावह होगी और इसका अनुमान लगाना मुश्किल हो जाएगा। कैंसर जहां लगातार मानवीय जिंदगीयां निगल रहा है, वहीं आर्थिक बर्बादी का कारण भी बन रहा है। भले ही सरकारों ने उपचार के लिए बीमा योजनाएं भी शुरू की हैं, लेकिन निजी अस्पतालों का उपचार इतना अधिक महंगा है कि मरीजों के परिवारों के घर तक भी बिक रहे हैं।
भले ही सरकारें कैंसर अस्पतालों की स्थापना कर रही हैं और वित्तीय सहायता दे रही हैं लेकिन इस मामले का वास्तविक समाधान तो इसकी जड़ तक पहुंचना है। इस तरफ ध्यान देने की सख्त जरूरत है कि आखिर कैंसर का क्या कारण है? इसके कारणों को ढूंढने, उनको दूर करने और जनता को जागरूक करने की सख्त आवश्यकता है। हमारा स्वास्थ्य सिस्टम बीमारियों का इलाज तो करता है लेकिन निरोग रहने के लिए कोई विधियां या संस्कृति अभी तक नहीं अपनाई गई हैं। भले ही दुनिया भर के वैज्ञानिक कैंसर के कारणों को लेकर एकमत नहीं लेकिन अधिकतर आधुनिक युग की आरामदायक जिदंगी, पौष्टिक तत्वों की कमी के लिए खुराक और कृषि में बढ़ रहा खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कैंसर के मुख्य कारण माने जा रहे हैं। इसी तरह मुंह का कैंसर तम्बाकू इस्तेमाल की वजह से हो रहा है। शराब भी कैंसर का एक कारण है लेकिन देश में शराब और तम्बाकू की रोकथाम के लिए कहीं कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं।
देश की बढ़ रही आबादी के लिए हरित क्रान्ति ने अनाज के अंबार तो दिये, लेकिन स्वास्थ्य को बिल्कुल अनदेखा कर दिया गया। देश के 90 फीसदी से अधिक किसान कृषि के लिए खादों और कीटनाशकों का बेवजह एवं अत्यधिक इस्तेमाल करते हैं। ऐसी परिस्थितियों में स्वस्थ भोजन की उम्मीद कहां से रखी जा सकती है। आधुनिक जीवन पद्धति ने पुरातन और पौष्टिक तत्वों से भरपूर भोजन से किनारा कर लिया है। खाने में बढ़ रहा मसाला, तेल व प्रसंस्करण घटकों का प्रयोग घातक है। इसके साथ ही जिंदगी में कम हो रही शारीरिक मेहनत ने मानवीय शरीर में रोगों के अलावा प्रतिरोधक क्षमता को भी कम कर दिया है।
समय आ गया है कि सरकारें अस्पताल खोलने के अलावा नयी पीढ़ी को पुरातन स्वास्थ्य संस्कृति और शुद्ध खाद्य पदार्थों के साथ जोड़ने का प्रयास करे। सिर्फ खेल मेले करवाकर निरोग नहीं हुआ जा सकता बल्कि सही और शुद्ध खाद्य पदार्थों को भी बढ़ावा देना होगा। खेल मेलों में भी दूध, घी और अन्य पारंपरिक खाने नजर नहीं आते बल्कि तले-भुने हुए खाद्य पदार्थ ही नजर आते हैं। जबकि खेल मेलों में पुरातन खाद्य पदार्थ दिखाई देने चाहिए। इस तरह स्कूलों में नयी पीढ़ी को सही खाद्य पदार्थों के बारे में जानकारी देने की बेहद आवश्यकता है। खानपान बड़ों व छोटों सबको सही करना होगा।
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