प्यारे सतगुरू जी ने सुनी जीव की तड़प, दिये दर्शन

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मी लाल सिंह इन्सां पुत्र श्री सचखंडवासी गुज्जर सिंह गांव हमझेड़ी ब्लॉक पातड़ां जिला पटियाला से पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने ऊपर हुई अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:-

सन् 2004 की बात है, मैं अन्य सेवादारों के साथ दरबार में सेवा पर आया हुआ था। उन दिनों मैं एक कोठी में पत्थरों की रगड़ाई कर रहा था। मुझे कुछ दिनों से प्यारे सतगुरू जी के दर्शन नहीं हुए थे। मेरे दिल में ख्याल आया कि मैं अपना घर-बार छोड़कर यहां सेवा पर आया हूं, परंतु दर्शन फिर भी नहीं हो रहे। उस समय सूर्यास्त हो गया था। मेरे हृदय में दर्शन करने की इतनी तड़प बन गई थी कि मुझे वैराग्य आ गया। मैं साथ में सेवा करने वाले सेवादारों को बिना बताए वहां से चल पड़ा कि आज तो दर्शन करने ही करने हैं, चाहे कुछ भी हो जाए। मैंने वहां जो भी मिला उसी से पूछा कि पिता जी, गुरू जी कहां मिलेंगे। प्रेमी भाईयों ने मुझे बताया कि इस समय पिता जी 12 नंबर मोटर पर मिलेंगे। जिसका नाम अब 20 नंबर मोटर है। मैंने सोचा कि मोटर डेढ़-दो किलोमीटर दूर है, परंतु दर्शन तो जरूर ही करने हैं। सोचा कि मेरे वहां जाने से पहले सतगुरू जी कहीं चले न जाएं। बस इसी बात पर मेरी आंखों से वैराग्य के आंसुओं की झड़ी लग गई। मैं बीस नंबर मोटर की तरफ भाग पड़ा। अपने मन ही मन में बातें कर रहा था कि पिता जी आज दर्शन जरूर देना। मैं बिना ऊंची-नीची जगह देखे पूरी गति से भागा जा रहा था। कई बार रास्ते में अटक कर गिरा, फिर उठकर भागा। आंखों में बेतहाशा आंसू बह रहे थे। हृदय में तड़प थी दर्शनों की। जब मैं मोटर पर पहुंचा तो मेरी श्वास रेल के इंजन की तरह चल रही थी। मैंने बड़ी मुश्किल से श्वास रोककर वहां मोटर के एरिया में खड़े लोगों से पूछा कि पिता जी यहां आए थे? अब किस तरफ चले गए। उन प्रेमी भाईयों ने बताया कि पिता जी तो काफी समय पहले यहां से चले गए।

मैं फिर वैराग्य में फूट-फूट कर रोने लगा। मुझे ऐसा लगा कि मुझसे कुछ छिन गया है। मैं निराश होकर वहां से वापिस चल पड़ा। हृदय में इतनी तड़प थी कि पिता जी दर्शन दें तो ही मैं बचूंगा। मैं निराशा के आलम में डूबा हुआ वापिस लौटता हुआ सोच रहा था कि मुझसे कोई गुनाह हो गया है या मुझमें कोई कमी है, जिसके कारण मुझे दर्शन नहीं हो रहे। मैं थका-हारा धीरे-धीरे चल रहा था। परंतु दर्शनों की प्रबल तड़प अभी भी लगी हुई थी, कि सतगुरू जी मिलें तो ही जिंदगी है। मैं चलते-चलते बेरियों वाले रास्ते पर पहुंचा, जहां आरा मशीन लगी हुई है। आरे वाले मोड़ से भी पीछे था कि पीछे से एक गाड़ी आई, जिसका रंग आसमानी था। मैंने सोचा कि गाड़ी आ रही है, मैं साईड पर हो जाऊं। मैं साईड में होकर खड़ा हो गया। गाड़ी की लाईटें बिल्कुल डिम थी। जब मैंने गाड़ी की तरफ देखा तो अंदर वाली लाईट जग पड़ी। मैं देखकर हैरान रह गया कि गाड़ी के अंदर बैठे पूज्य हजूर पिता जी मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे। मैंने सजदा किया, पिता जी ने मुझे आशीर्वाद दिया।

मैं हैरान रह गया कि पिता जी अकेले ही गाड़ी पर आए, न कोई गाड़ी आगे थी और न ही कोई गाड़ी पीछे थी। मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। मैं खुशी में पागलों की तरह हो गया। मुझे अपने आप की सुध न रही। फिर मुझे नहीं पता चला कि गाड़ी किधर गई। उसके बाद मैं सेवा वाली जगह पर आकर सेवा में लग गया। जब कभी मुझे यह रोमांचकारी घटना याद आती है तो मैं खुशी से झूम उठता हूँ।

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