गलवान घाटी तनाव में दुनिया देख रही चीन की नीयत

Galwan Valley Tension, world is watching China intention

आखिर गलवान घाटी में चीनी घुसपैठ के महीनों बाद भारत और चीन दोनों देशों की सेनाओं ने पीछे हटने का निर्णय लिया है। इस निर्णय के बाद कुछ लोगों द्वारा भारत सरकार की आलोचना की जा रही है तो कुछ कह रहे हैं कि भारत को अभी अड़िग रहकर चीन पर दबाव बनाकर रखना चाहिए था।

दरअसल इस बात को समझना होगा कि गलवान घाटी वाली घटना घुसपैठ थी न कि कोई युद्ध था। घुसपैठ होने पर भारतीय सैनिकों ने चीन को मुंह तोड़ जवाब दिया था। फिर भारतीय सेना पूरी मजबूती से सीमावर्ती क्षेत्र की रक्षा करती रही। यदि युद्ध के हालात होते तब सेना का पीछे हटना गलत माना जा सकता था। भारतीय सेना ने पीठ नहीं दिखाई, बल्कि बराबर शक्ति के आधार पर पीछे हटने का निर्णय लिया है। सीमा क्षेत्र के मामलों में जोश के साथ-साथ होश भी जरूरी होता है।

राजनीतिक ब्यानबाजी करना बहुत आसान होता है किंतु ऐसे मामलों में दो देशों की स्थिति पर युद्ध के परिणामों की वास्तविक्ता का जानना बेहद जरूरत होता है। एक शक्तिशाली सेना होने के बावजूद भारत की विचारधारा अमन-शांति और लगभग आठ महीनों में अलग-अलग स्तर की बातचीत में भारत ने इतना दबाव जरूर बनाया है कि आखिर चीन को भी पीछे हटना पड़ा है।

यह बात स्पष्ट है कि चीन को भारत की सैन्य ताकत का भी एहसास हुआ है। चीनी सेना की घुसपैठ के मामले को अमन-शान्ति निपटना भी भारत की बड़ी उपलब्धि है। इन परिस्थितियों में छोटी सी चिंगारी भी आग का रूप धारण कर सकती थी। युद्ध होने से बड़े स्तर पर मानवीय व आर्थिक नुक्सान होता है। भारत ने एक बड़े विवाद पर धैर्य से ताकत और बौद्धिकता का सुमेल बनाते हुए प्रभावी कूटनीति अपनाई है।

चीन की सेना का पीछे हटना अपने आप में गलवान में चीनी घुसपैठ को विश्व की नजरों में चीन के गलत कदम के रूप में पेश करता है। सीमा विवाद गंभीर होते हैं लेकिन इनका हल धैर्य से निकलता है, ऐसे में जोशीले ब्यानों से दूर रहना चाहिए। उच्च स्तरीय विचार-विमर्श के पश्चात ऐसे सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं। पैंगोग झील क्षेत्र पर भारत ने कुछ भी नहीं गंवाया बल्कि इन बारे में अपने पक्ष को मजबूती से रखा है इसे भारत की जीत या हार के रूप न देखा जाए।

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